हमारा संविधान सुरक्षा कवच है यह डराता नहीं

Edited By Updated: 29 Nov, 2025 04:58 AM

our constitution is a protective shield it does not scare us

भारत का संविधान दुनिया में सबसे बड़ा लिखित दस्तावेज है जो विस्तृत है, लचीला है और उसमें कभी भी संशोधन करने की मजबूत प्रक्रिया है। देश के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ की 75वीं वर्षगांठ पर गंभीर चर्चा, कार्यशाला, वार्तालाप और संवाद होना चाहिए था लेकिन सरकारी...

भारत का संविधान दुनिया में सबसे बड़ा लिखित दस्तावेज है जो विस्तृत है, लचीला है और उसमें कभी भी संशोधन करने की मजबूत प्रक्रिया है। देश के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ की 75वीं वर्षगांठ पर गंभीर चर्चा, कार्यशाला, वार्तालाप और संवाद होना चाहिए था लेकिन सरकारी खानापूर्ति और संवाद साधनों द्वारा मामूली खबर के रूप में लेना अचरज का विषय है। इस विशेष अवसर पर अनेक सप्ताह तक विचारमंथन होना चाहिए था क्योंकि संविधान प्रत्येक भारतीय के जीवन, व्यवहार और उसके आचरण का निर्णायक होता है। उसके प्रावधानों का दुरुपयोग न हो सके इसलिए निगरानी और सतर्कता आवश्यक है। अनेक संशोधन होने के बावजूद मूलभूत समस्याओं से प्रत्येक नागरिक जूझ रहा है, इसका विश्लेषण होना चाहिए।

संविधान ने हमारे मौलिक अधिकार तय कर दिए हैं लेकिन वे सब को मिलते क्यों नहीं, यह जानना आवश्यक है। समता यानी बराबरी का अधिकार है और उसके साथ ही धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव न करने का निर्देश भी है। कानून के सामने सब बराबर हैं, सही है लेकिन इसे सिद्ध करना लंबी कानूनी प्रक्रिया है जिसमें पीढिय़ां तक गुजर जाती हैं। कहने को सभी के लिए समान अवसर हैं लेकिन व्यवहार में पैसा, पहुंच और ताकत का इस्तेमाल करने की सामथ्र्य रखने वाला ही उपयुक्त पाया जाता है। इसी तरह शेष सभी अधिकार हैं जो संविधान में बड़े सुंदर और प्रभावशाली शब्दों में लिखे गए हैं लेकिन उन्हें पाना हिमालय की चोटी पर चढऩे जैसा है जो हरेक के बस का नहीं है। कुछ नए संशोधन आवश्यक हैं।

भ्रष्टाचार मुक्ति संशोधन: महत्वपूर्ण विषय है। रिश्वतखोरी रोकने की सजावटी कोशिशें की जाती हैं और इसीलिए इसका बोलबाला कम नहीं होता बल्कि महिमा मंडन होता है। भ्रष्टाचारी की पहचान हो जाने और आरोप सिद्ध होने पर भी उसे दंड नहीं मिलता या कानूनी प्रक्रिया के मुताबिक कितने भी दोषी छूट जाएं लेकिन एक भी निर्दोष को सजा न हो, के आधार पर सभी आरोपी धीरे-धीरे मुक्त होकर वही करने लगते हैं जिसके वे आरोपी थे। जेल में रहे भी तो जी भर कर सभी सुविधाओं का उपभोग करते हैं। ऐसे में संविधान के अनुसार कानून का क्या मतलब है, इसके लिए ऐसा संशोधन जरूरी है कि जिस व्यक्ति को भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध होकर सजा मिली हो और सभी कानूनी विकल्प समाप्त हो गए हों, उसे मोहलत दिए बिना कम से कम उम्रकैद या फांसी की सजा हो।

शिक्षा, इंटरनैट और डिजिटल संसाधन तक पहुंच सकने का मौलिक अधिकार हो: देश की गरिमा के लिए हरेक व्यक्ति का शिक्षित होना जरूरी है और शिक्षा भी कैसी जो भारतीय पारंपरिक ज्ञान विज्ञान पर आधारित होने के साथ आधुनिक ज्ञान का भंडार हो। इसके लिए इंटरनैट, डिजिटल संसाधन और आधुनिक टैक्नोलॉजी तक पहुंच सकने का मौलिक अधिकार पाने के लिए संविधान में संशोधन होना चाहिए। अभी तक इस पर धनपतियों और वैश्विक कंपनियों का कब्जा है और भारत में बनी टैक्नोलॉजी और तकनीक या हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर उनका नियंत्रण है। हरेक व्यक्ति को इनका इस्तेमाल का अधिकार बिना किसी शुल्क के होना चाहिए। यह ऐसा क्रांतिकारी संशोधन होगा जो विश्व की बौद्धिक संपदा के साथ भारतीय समाज के विकास में अभूतपूर्व योगदान करेगा। आज की युवा पीढ़ी यानी जेन-जी के लिए वरदान होगा और अपना देश छोड़कर विदेशों में प्रतिभा का पलायन करने की रोकथाम करेगा।

प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल का यह स्वर्र्णिम अध्याय होगा और वे 2047 की बजाय 2030 तक ही अपनी घोषणाओं को साकार कर सकेंगे। देश भर में इंटरनैट और डिजिटल माध्यमों का उपयोग आसानी से करने के अधिकार से हरेक व्यक्ति इनसे अपनी और पूरे देश की सुरक्षा कर सकेगा। विदेशी या यहां तक कि कोई आतंकवादी भी भारतीय नागरिकों द्वारा स्वयं बनाए सुरक्षा चक्र को भेद नहीं सकेगा। ऐसी कोई भी गतिविधि तुरंत सार्वजनिक हो जाएगी और किसी विरोधी संगठन की हिम्मत नहीं होगी कि वह देश में किसी अनहोनी को अंजाम दे सके। प्रत्येक व्यक्ति का अपना सुरक्षा चक्र होगा और किसी भी क्षेत्र में इंटरनैट सेवाएं बंद करने की जरूरत नहीं रहेगी क्योंकि चोरी छिपे वारदात करने वाले देश या विदेश में कहीं भी हों, उन्हें हरेक नागरिक पहचान सकेगा।

राजनीतिक सुधार संशोधन: राजनीतिक उथल-पुथल रोकने के लिए संविधान में संशोधन किया जाए ताकि कोई भी सजायाफ्ता व्यक्ति किसी भी स्थिति में चुनाव न लड़ सके। दल बदल कानून की खामियों को दूर किया जाए और जो नेता या दल सत्ता में रहते हुए किसी भी तरह का घोटाला करते पाए जाएं वे सार्वजनिक रूप से अपमानित और दंडित हों तथा भविष्य में चुनाव लडऩे के अयोग्य हों। एक देश-एक चुनाव लागू हो और चुनाव आयोग पर किसी भी सरकारी कर्मचारी का अपने किसी भी चुनाव संबंधी कार्य में उपयोग करने पर कानूनी प्रतिबंध हो। जब चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है तो वह अपने कार्य के लिए स्वयं अपना कैडर बनाए चाहे सीमित अवधि जैसा कि सेना में किया गया है, उस तरह कर्मचारियों की नियुक्ति करे, उन्हें प्रशिक्षित करे और स्पष्ट करे कि जिसे नियुक्त किया गया है वह पद अस्थायी या निश्चित अवधि के लिए ही है।

निष्कर्ष यह है कि यदि संविधान को समझना है तो उसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर वर्कशॉप, लर्निंग और ट्रेनिंग सैंटर हों। 75 वर्षों में 106 संशोधन होना संविधान का लचीलापन नहीं है, यह उसकी शक्ति है कि वह जरूरत के अनुसार बदलाव कर सकता है कह सकते हैं हमारा संविधान डराता नहीं है बल्कि सुरक्षा कवच है और लोगों को मूल अधिकारों को समझना आसान बनाता है।-पूरन चंद सरीन 
 

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