चीन में शी जिनपिंग के विरुद्ध लोगों में आक्रोश : उद्यमी देश से भागने लगे

Edited By ,Updated: 03 Dec, 2022 04:22 AM

outrage among people against xi jinping in china

चीन में पिछले कुछ समय के दौरान राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा उठाए गए विभिन्न पगों और कोरोना महामारी का प्रसार रोकने के लिए ‘जीरो कोविड’ नीति के अंतर्गत मनमाने कठोर प्रतिबंधों के कारण लोगों में उनके विरुद्ध भारी जनाक्रोश भड़क उठा है।

चीन में पिछले कुछ समय के दौरान राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा उठाए गए विभिन्न पगों और कोरोना महामारी का प्रसार रोकने के लिए ‘जीरो कोविड’ नीति के अंतर्गत मनमाने कठोर प्रतिबंधों के कारण लोगों में उनके विरुद्ध भारी जनाक्रोश भड़क उठा है। गत 24 नवम्बर को ङ्क्षझजियांग-उईघुर प्रांत की राजधानी ‘उरुमकी’ में कोविड प्रतिबंधों के विरुद्ध प्रदर्शनों के दौरान 10 लोगों के मारे जाने के बाद करोड़ों चीनी लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। 

परिणामस्वरूप लाकडाऊन से आजादी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक सुधारों व जिनपिंग को पद से हटाने की मांग पर बल देने के लिए चीनी नागरिक सड़कों पर उतर कर जिनपिंग और सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के विरुद्ध ‘जिनपिंग गद्दी छोड़ो’, ‘कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता छोड़ो’ और ‘चीन को अनलॉक करो’ जैसे नारे लगाते हुए प्रदर्शन कर रहे हैं।

यह विरोध शंघाई, बीजिंग, वुहान और चेगदू जैसे शहरों के अलावा बीजिंग और नानजिंग विश्वविद्यालयों तक पहुंच चुका है। इस दौरान हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया है जबकि शिक्षण संस्थानों से छात्रों को जबरन जेल भेज दिया गया है। इन प्रदर्शनों ने जून, 1989 में बीजिंग के तिनानमिन चौक पर देश में लोकतंत्र की बहाली के लिए किए गए प्रदर्शनों की याद दिला दी है जिनमें 10,000 से अधिक छात्रों की मौत हो गई थी।

अब लोगों ने देश में लागू सैंसरशिप और बोलने की स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों के विरुद्ध भी एक दर्जन से अधिक शहरों में रोष के प्रतीक कोरे कागज लहराते हुए प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। इसे ‘श्वेत पत्र क्रांति’ कहा गया है। सफेद कागज की खाली शीट लहरा कर यह संदेश दिया जाता है कि अमुक व्यक्ति के पास कहने के लिए कुछ है जो उसने अभी तक नहीं कहा है। दूसरी ओर एक रिपोर्ट के अनुसार जिनपिंग की दमनकारी नीतियां इतनी खराब सिद्ध हो रही हैं कि लगातार दरपेश चुनौतियों के कारण चीन के गण्यमान्य व अमीर लोगों का वर्तमान सरकार से मोह भंग होता जा रहा है। 

अब वहां कारोबार चलाना मुश्किल हो जाने के कारण चीन की सबसे अमीर महिला ‘यांग हुईयान’ सहित लगभग 500 बड़े चीनी उद्योगपतियों  तथा व्यापारियों ने साइप्रस के ‘गोल्डन पासपोर्ट’ खरीद कर यूरोपियन संघ की नागरिकता ले ली है क्योंकि उन्हें डर है कि आने वाले दिनों में वहां उद्योग और कारोबार के लिए माहौल और भी खराब हो जाएगा। 

चीन के अमीर अपनी व्यापारिक गतिविधियां चलाने के लिए हांगकांग को एक मजबूत ठिकाने के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे। वहां चीन के सर्वाधिक अमीर व्यक्ति और ‘अली बाबा ग्रुप’ के संस्थापक ‘जैक मा’ सहित अनेक उद्यमियों ने प्रापॢटयां खरीदी थीं परंतु बीजिंग द्वारा हांगकांग पर हाथ डालने के बाद इस शहर में मिलने वाली सुरक्षा का भ्रम टूट गया है। अत: अब चीन के अमीरों ने सिंगापुर से भी अपनी सम्पत्तियां दूसरे स्थानों पर स्थानांतरित करनी शुरू कर दी हैं। चीन सरकार द्वारा तरह-तरह की पाबंदियां लगा कर परेशान करने से तंग आकर देश छोड़ कर भागे ‘जैक मा’ इन दिनों जापान में राजधानी टोक्यो के किसी इलाके में परिवार सहित छिप कर रह रहे हैं।

इसी प्रकार चीन के बड़े रियल एस्टेट कारोबारी पति-पत्नी ‘पैन शी’ तथा ‘झांग शिन’ भी अमरीका में रहने चले गए हैं जबकि इन दोनों के नजदीकी एवं एक अन्य रियल एस्टेट कारोबारी ‘रेन झिकियांग’ को जिनपिंग की आलोचना करने पर 18 वर्ष के लिए जेल में डाल दिया गया है। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि जिनपिंग द्वारा इसी अक्तूबर माह में कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस में बेशुमार शक्तियां स्वयं में केंद्रित कर लेने के कारण तथा नौकरियां चली जाने और जीरो कोविड नीति के अंतर्गत लगाए गए कठोर प्रतिबंधों के परिणामस्वरूप लोगों की तकलीफें बहुत बढ़ गई हैं।

इन प्रदर्शनों और देश के अमीरों द्वारा विदेशों को पलायन से इस बात के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि चीन में सब ठीक नहीं और वर्तमान शासन से चीन वासी बेहद दुखी हैं। अत: यदि चीन के शासकों ने अपनी वर्तमान जन विरोधी नीतियों को जारी रखा तो उनके विरुद्ध लोगों का गुस्सा और बढ़ेगा जिससे वहां के हालात और खराब हो सकते हैं।—विजय कुमार

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