लोग कुर्सी का सम्मान करते हैं न कि उस पर बैठे व्यक्ति का

Edited By Updated: 15 Nov, 2025 05:16 AM

people respect the chair not the person sitting on it

कल रात एक सेवानिवृत्त सरकारी उप-सचिव के साथ भोजन किया और जब हम उनकी सेवा के वर्षों के बारे में बात कर रहे थे तो मैंने उनसे एक ऐसा सवाल पूछने का फैसला किया जिससे कई शक्तिशाली लोग चुप-चाप डरते हैं। मैं आगे झुका और पूछा कि सेवानिवृत्ति के बाद सत्ता न...

कल रात एक सेवानिवृत्त सरकारी उप-सचिव के साथ भोजन किया और जब हम उनकी सेवा के वर्षों के बारे में बात कर रहे थे तो मैंने उनसे एक ऐसा सवाल पूछने का फैसला किया जिससे कई शक्तिशाली लोग चुप-चाप डरते हैं। मैं आगे झुका और पूछा कि सेवानिवृत्ति के बाद सत्ता न होने का कैसा अनुभव होता है। एक पल के लिए उन्होंने मेरी ओर एक ऐसी दयालुता से देखा जो जीवन को डैस्क के दोनों ओर से देखने से ही आती है। फि र वे हंसे, किसी कड़वाहट या पछतावे से नहीं बल्कि एक ऐसे व्यक्ति की शांत संतुष्टि के साथ जिसने कुछ ऐसा समझ लिया है जो उच्च पदों पर बैठे कई लोग कभी नहीं समझ पाते।

उन्होंने मुझे बताया कि जितने साल वे उस सीट पर रहे, उन्होंने हर दिन खुद को याद दिलाया कि लोग सीट का सम्मान करते हैं और उसे प्रणाम करते हैं, न कि उस पर बैठे व्यक्ति का। उन्होंने खुद से यही बात तब कही जब उनके लिए गाडिय़ां रुकीं, जब लोग सभाओं में खड़े हुए, जब उनके घर पर निमंत्रणों की बाढ़ आई और जब उनके फोन की घंटी लगातार बजती रही और आवाजें शहद से भी मीठी लग रही थीं। वे जानते थे कि हर अभिवादन और हर सम्मानपूर्ण इशारा उनके पद के लिए था न कि उनके लिए। और उन्होंने कहा कि इस एक विचार ने सेवानिवृत्ति के बाद उनकी मदद की। जब वे बोल रहे थे, मुझे अहसास हुआ कि उन सरल शब्दों में कितनी बुद्धिमता छिपी है।

कल्पना कीजिए कि अगर हमारे शक्तिशाली नेता यह समझ जाते तो हम कितने दुख से बच सकते थे। कल्पना कीजिए कि कितने गुस्से पर काबू पाया जा सकता था और कितने अहंकार अपने सामान्य आकार में सिमट जाते, अगर उन्हें याद रहे कि उन्हें जो सम्मान मिलता है वह सिर्फ उस कुर्सी से उधार लिया गया है जिस पर वे बैठते हैं। कुर्सी का अधिकार होता है। कुर्सी की पहुंच होती है। कुर्सी का महत्व होता है। व्यक्ति बस कुछ देर के लिए उस पर बैठता है। चारों ओर देखिए, आपको हर जगह विपरीत ही दिखाई देगा। सत्ता में बैठे लोग यह मानने लगते हैं कि वे ही सत्ता हैं। उन्हें लगता है कि उन्हें जो सम्मान मिलता है, वह उनकी प्रतिभा, उनके आकर्षण या उनके व्यक्तित्व के कारण है। वे भूल जाते हैं  कि अगर कुर्सी छिन जाए, तो भीड़ गर्मियों में बर्फ  से भी तेजी से पिघल जाती है। फोन की घंटी बजना बंद हो जाती है। अंतहीन आगंतुक गायब हो जाते हैं। उनके घर के बाहर गेट पर अब चिंतित याचकों की लंबी कतारें नहीं दिखतीं। अचानक वे अकेले हो जाते हैं और सन्नाटा चौंकाने वाला होता है क्योंकि उन्होंने पद को स्नेह समझ लिया था।

काश हमारे और भी नेता, अधिकारी और कुर्सीधारी इस सच्चाई को समझते। किसी व्यक्ति की असली पहचान उसके कार्यकाल के आखिरी दिन के बाद शुरू होती है। यही वह क्षण होता है जब आप देखते हैं कि क्या लोग अब भी आपसे मिलने आते हैं, आपकी राय को महत्व देते हैं, गर्मजोशी से आपका स्वागत करते हैं और क्या आपको लगता है कि आपके पास देने के लिए कुछ है। यही वह क्षण होता है जब वह पुरुष या महिला कुर्सी से अलग हो जाता है। जब सेवानिवृत्त उप-सचिव ने अपनी बात समाप्त की तो वे फिर से मुस्कुराए और कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद का जीवन शांतिपूर्ण था क्योंकि उन्होंने कभी कुर्सी और व्यक्ति को भ्रमित नहीं किया। इसी समझदारी ने उन्हें निराशा के बजाय गरिमा के साथ विदा होने दिया। और शायद यही सबसे बड़ी ताकत है!-दूर की कौड़ी राबर्ट क्लीमैंट्स
 

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