चुनावों का राजनीतिक अपराधीकरण, क्या बाहुबली नेता धूल चाटेंगे?

Edited By Updated: 05 Nov, 2025 05:21 AM

political criminalisation of elections will strongmen leaders bite the dust

इस राजनीतिक मौसम में दाग अच्छे हैं, जहां पर बिहार में चल रही चुनावी सर्कस में सैंकड़ों अपराधी से राजनेता बने व्यक्ति अपनी बुलेट प्रूफ जैकेटों की प्रदर्शनी कर रहे हैं। इस कटु सच्चाई पर तब सही निशाने पर तीर लगा, जब मोकामा से 5 बार विधायक रह चुके जनता...

इस राजनीतिक मौसम में दाग अच्छे हैं, जहां पर बिहार में चल रही चुनावी सर्कस में सैंकड़ों अपराधी से राजनेता बने व्यक्ति अपनी बुलेट प्रूफ जैकेटों की प्रदर्शनी कर रहे हैं। इस कटु सच्चाई पर तब सही निशाने पर तीर लगा, जब मोकामा से 5 बार विधायक रह चुके जनता दल (यू) के बाहुबली अनंत सिंह उर्फ छोटे सरकार को राजद के दुलारचंद यादव की हत्या के लिए गिरफ्तार किया गया। 

बिहार अपने जटिल जातिगत गणित के लिए जाना जाता है और वहां पर दशकों से उन बाहुबलियों को वोट दिया जा रहा है, जिनके पास धन-बल, जन-बल और बुद्धि-बल है। 90 के दशक में लालू के राजद के डॉन शहाबुद्दीन, जो 3 बार सांसद रहे, से लेकर राजपूत नेता आनंद मोहन सिंह, मुन्ना शुक्ला, राजन तिवारी, दद्दन पहलवान, सूरजभान आदि बिहार के बड़े बाहुबली नेता रहे हैं। कुछ बाहुबली सीधे चुनाव लड़ते हैं और अन्य अपनी पत्नियों या संबंधियों को चुनावी मैदान में उतार कर अपने राजनीतिक प्रभाव का प्रदर्शन करते हैं। 

बिहार और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों में जो अपराध की दुनिया से आगे बढ़कर सत्ता के गलियारों तक पहुंचे हैं, उन्हें गंभीर आरोपों के होने के बावजूद मंत्री तक बनाया गया है। अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ, राजू पाल उर्फ अंसारी बंधु से लेकर राजा भैया, जिन्होंने लोगों के घर तक जलाए हैं और विधायक विजय मिश्रा, जिन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र से अधिक समय जेल में बिताया है, वे चाहे किसी भी पार्टी में रहे हों, उन्होंने चुनाव जीता है। धन-बल और बाहु-बल के प्रभाव के बढऩे के साथ बाहुबलियों ने राजनीतिक दलों से संबंध बनाकर वैधता प्राप्त की और वे अपनी पहचान गरीब और कमजोरों के मसीहा के रूप में बनाते हैं। वे लोगों की दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करते हैं, उनके विवादों को सुलझाते हैं, राज्य प्रशासन में जातीय नैटवर्क को सक्रिय करते हैं और इस तरह अपनी सामाजिक लोकप्रियता का प्रदर्शन और यह स्पष्ट करते हैं कि उनके विरुद्ध किसी भी तरह की कार्रवाई महंगी पड़ेगी। 

इसका कारण क्या है? आज सत्ता संख्या खेल में बदल गई है। पार्टियां बाहुबलियों को इसलिए उम्मीदवार बनाती हैं कि वे अपने बाहुबल का इस्तेमाल अक्सर बंदूक की नोक पर वोट प्राप्त करने के लिए करते हैं और विजयी हो जाते हैं तथा इस व्यवस्था में पारस्परिक लेन-देन होता है। पार्टियों को चुनाव लडऩे के लिए बेशुमार पैसा मिलता है और अपराधियों को कानून से संरक्षण और समाज में सम्मान। नेता का टैग राजनीतिक सत्ता का इस्तेमाल कर जबरन वसूली और प्रभाव बढ़ाने का टिकट बन जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि उनके विरुद्ध मामले हटा दिए जाएं। कानूनी विलंब के चलते ऐसे बाहुबलियों के विरुद्ध दोषसिद्धि कम होती है। घावों पर नमक लगाने का कार्य तब होता है जब अपराधी सांसद-विधायक जनता की ओर से कानून बनाते हैं। हैरानी की बात यह है कि 22 राज्यों में 2556 विधायकों के विरुद्ध गंभीर अपराधों के आरोप हैं। एक कांग्रेस विधायक के विरुद्ध आपराधिक 204 मामले हैं। विधायकों के विरुद्ध विभिन्न अदालतों में 5000 मामले लंबित हैं। हालांकि न्यायालयों ने निर्देश दिया है कि उनका त्वरित निपटान किया जाए। 

अपराधियों और पार्टियों की सांठगांठ में पारस्परिक लाभ और भाईचारा हमारे नेताओं का मूलमंत्र है। कुछ ठगों, दस नंबरियों, अपराधियों और माफिया डॉनों का कब्जा होने के चलते केवल यह महत्वपूर्ण रह गया है कि अपराधी किसके साथ हैं, उनके साथ या हमारे साथ। हैरानी की बात यह है कि अपराधी राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर ईमानदार उम्मीदवारों को चुनावी दौड़ से बाहर कर रहे हैं। हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार 45.5 प्रतिशत अपराधी उम्मीदवारों ने 24.7 प्रतिशत साफ-स्वच्छ वाले उम्मीदवारों को हराया। इसलिए, इस प्रणाली में आज भारतीय मध्यम वर्ग भी अपराधियों को चुनने से परहेज नहीं करता बशर्ते कि वे उनके संरक्षक बनें। कमजोर पुलिस और कानूनी प्रणाली के चलते माफिया नेता हत्या के मामलों से भी बच जाते हैं।  

इसके अलावा हमारे यहां कानूनी प्रक्रिया बहुत लंबी है। हमारे कानून केवल उन व्यक्तियों को चुनाव लडऩे से रोकते हैं, जो न्यायालय द्वारा दोषसिद्ध हों और इसमें अक्सर कई बार दशकों लग जाते हैं। हाल ही में इस संबंध में न्यायालय ने कहा कि उसके द्वारा विधानसभा चुनावों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को खड़ा न करने के निर्देश देने के बावजूद अपराध जारी हैं। न्यायालय ने कहा कि हमने विधान मंडलों से कहा है कि उन उम्मीदवारों के विरुद्ध कार्रवाई करें जिनके विरुद्ध आरोप निर्धारित हो गए हैं किंतु कुछ भी नहीं किया गया और कुछ भी नहीं किया जाएगा। दुर्भाग्यवश हम कानून नहीं बना सकते हैं। 

एक ऐसे वातावरण में जहां पर हमारी संसदीय प्रणाली राजनीतिक के अपराधीकरण द्वारा हाईजैक कर दी गई है, आम आदमी खिन्न है। कोई भी अपराधियों को वोट देना नहीं चाहता, फिर भी वर्षों से अपराधी चुनावी प्रणाली का इस्तेमाल राजनीति में प्रवेश करने के लिए कर रहे हैं और जनता मूकदर्शक बनी हुई है। इस समस्या का समाधान राजनीतिक दलों को करना होगा। अपराधियों का समर्थन करने की बजाय राजनेताओं को संवेदनशीलता को बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए। क्या ईमानदार और सक्षम नेता नहीं रह गए हैं? हम कब तक चोरों का साथ देते रहेंगे और सार्वजनिक पदों पर अपराधियों को चुनते रहेंगे?-पूनम आई. कौशिश    

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