राजनीतिक नैतिकता दिन-ब-दिन नकारात्मक होती जा रही

Edited By ,Updated: 19 Mar, 2024 05:46 AM

political morality is becoming negative day by day

2024 का लोकसभा चुनाव निर्णायक रूप से भारत के भविष्य की दिशा तय करेगा। इस चुनाव में मतदाताओं को न सिर्फ नई सरकार चुननी है, बल्कि उन्हें यह जनादेश भी देना है कि देश की राजनीतिक और सामाजिक संरचना क्या होगी और आर्थिक नीतियों की रूपरेखा क्या होगी?

2024 का लोकसभा चुनाव निर्णायक रूप से भारत के भविष्य की दिशा तय करेगा। इस चुनाव में मतदाताओं को न सिर्फ नई सरकार चुननी है, बल्कि उन्हें यह जनादेश भी देना है कि देश की राजनीतिक और सामाजिक संरचना क्या होगी और आर्थिक नीतियों की रूपरेखा क्या होगी? जो राजनीतिक दल भारत में एक पारदर्शी, जनता के प्रति जवाबदेह, जनहित के प्रति संयमित और संविधान के प्रति वफादार सरकार स्थापित करना चाहते हैं, उन्हें चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों का चयन करते समय यह ध्यान रखना होगा कि वे लोग इस पर खरे उतरें। 

यहां तक कि नैतिक-अनैतिक तरीके से चुनाव जीतना भी उम्मीदवार बनाने की कसौटी नहीं होनी चाहिए, बल्कि अतीत में समाज की भलाई के लिए व्यक्ति द्वारा निभाई गई भूमिका और उसकी ईमानदार जीवनशैली को ध्यान में रखा जाना चाहिए। जैसा कि अतीत में धन और सत्ता की लालसा के तहत रातों-रात राजनीतिक वफादारी बदलने का दौर चलता रहा है, यह एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बहुत हानिकारक है। भारतीय राजनीति के भीतर विचारधारा और राजनीतिक नैतिकता दिन-ब-दिन नकारात्मक होती जा रही है और अवसरवादी तत्व अपने निहित स्वार्थों के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था को नष्ट कर रहे हैं। आगामी लोकसभा चुनाव इस पहलू को सुधारने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान कर सकता है। 

चुनाव की घोषणा से कुछ दिन पहले भारत के चुनाव आयुक्त अरुण गोयल का नाटकीय ढंग से इस्तीफा और राष्ट्रपति द्वारा तत्काल स्वीकार किया जाना असाधारण राजनीतिक परिस्थितियों का द्योतक है। इसी प्रकार, भारतीय स्टेट बैंक द्वारा चुनाव आयोग को आम जनता की जानकारी के लिए ‘चुनावी बांड’ के माध्यम से दिए गए धन का खुलासा करने के सर्वोच्च न्यायालय के दिए गए निर्देश का निर्धारित समय सीमा के भीतर सूचित करने से इन्कार करना भी एक बहुत ही गंभीर मामला है। देश के 2 प्रमुख राजनीतिक गठबंधनों, भाजपा के नेतृत्व में एन.डी.ए. और गैर-भाजपा राजनीतिक पार्टियों के ‘इंडिया’ फ्रंट ने चुनावी गतिविधियां तेजी से शुरू कर दी हैं।

उम्मीदवारों का चयन, रैलियां, यात्राएं और सोशल मीडिया के जरिए प्रचार शुरू हो गया है। चुनावी खर्च के लिए हर तरह से वित्तीय संसाधन जुटाए जा रहे हैं। नि:संदेह, चुनाव व्यय कानून के अनुसार निर्धारित सीमाओं का उल्लंघन होगा और चुनाव आयोग के निर्देशों के विपरीत चुनाव जीतने के लिए धर्म, जाति और धन का दुरुपयोग भी किया जाएगा। हालांकि, जहां तक संभव हो, समग्र रूप से मतदाताओं को संभावित चुनाव धांधली और अनियमितताओं पर सतर्क नजर रखनी चाहिए और बिना किसी प्रलोभन या भय के अपने विवेक से अपने मत का प्रयोग करना चाहिए। 

सरकारों के लिए आॢथक विकास के लिए विभिन्न परियोजनाएं शुरू करना और लोगों को सुविधाएं प्रदान करने के लिए धन उपलब्ध कराना कोई खैरात नहीं है, न ही यह किसी व्यक्ति या पार्टी विशेष की निजी सम्पत्ति में हिस्सेदारी है। इसका एक खतरनाक पहलू यह है कि किसी भी परियोजना या योजना की घोषणा या उद्घाटन संबंधित विभाग के मंत्री द्वारा नहीं किया जाता है, बल्कि देश के प्रधानमंत्री द्वारा किया जाता है। इस प्रकार सार्वजनिक परम्पराओं एवं सामूहिक उत्तरदायित्वों के स्थान पर ‘सत्तावादी’ प्रवृत्तियां अभिव्यक्त होती हैं।

हर परियोजना और योजना का बजट आम जनता के खून-पसीने की कमाई से जुटाए गए करों से जुड़ा होता है, जिसे सरकारें चुनावों में फायदा उठाने के लिए खूब प्रचारित करती हैं। मतदाताओं को कभी भी इस दुष्प्रचार में नहीं फंसना चाहिए और अपने मत का सही प्रयोग करना चाहिए। मतदान के समय मतदाताओं को यह ध्यान रखना होगा कि नई सरकार को उन लोगों के प्रति मित्रतापूर्ण भूमिका निभानी चाहिए जो  पिछड़े  देशों की स्वतंत्रता को कमजोर करने वाले साम्राज्यवाद-विरोधी और आक्रामक कार्यों के खिलाफ लड़ रहे हैं। 

भारत को दुनिया के सभी देशों के साथ समानता के आधार पर व्यापार और लेन-देन  करने का पूरा अधिकार है। लेकिन अमरीका के साथ भारत के सैन्य गठबंधन हर तरह से भारतीय हितों की बलि चढ़ा रहे हैं। यह लोगों के लिए जीवन और मृत्यु का प्रश्न भी है कि क्या भारत के वर्तमान धर्मनिरपेक्ष, लोक राज और संघीय ढांचे को बनाए रखा जाए या इसके स्थान पर किसी विशेष धर्म पर आधारित लोक राज एकात्मक प्रणाली लागू की जाए। 

क्या बहुधार्मिक, बहुराष्ट्रीय, बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक भारतीय फुलवारी को एक खास धर्म, विचारधारा और राजनीतिक रंग में रंगना लोगों के हितों के लिए घातक नहीं होगा? क्या धार्मिक कट्टरता, आपसी अविश्वास, संघर्ष और असहिष्णुता के कारण देश में बना ङ्क्षहसक, साम्प्रदायिक माहौल अशांति और कलह को जन्म नहीं देगा? ऐसा करने से देश की एकता और अखंडता पर पडऩे वाले नकारात्मक प्रभाव को भी ध्यान में रखना होगा। मतदाता को अपने मत का प्रयोग करते समय देश के व्यापक हितों की रक्षा और मजबूती को प्राथमिकता देनी होगी। धर्म के आधार पर बनी राजनीतिक-सामाजिक संरचना न केवल अपने उदार विचारों और प्रथाओं के लिए जानी जाने वाली बहुसंख्यक हिन्दू आबादी, धार्मिक अल्पसंख्यकों, दलितों, महिलाओं और प्रगतिशील विचारकों के लिए गंभीर खतरा पैदा करती है, बल्कि तथाकथित धार्मिक राज्य के लिए भी गंभीर खतरा पैदा करेगी। 

दुनिया के सामने भारत की स्थिति बेहद कमजोर और हास्यास्पद न हो जाए इसलिए यह बात हर मतदाता की सोच का केन्द्र बिन्दू होनी चाहिए कि भविष्य में बनने वाली सरकार को इन सवालों के प्रति संवेदनशील और गंभीर होना चाहिए। अगर हम भी पाकिस्तान के बाशिंदों की तरह एक बार धार्मिक आस्था के वेग में बहकर देश की राजनीति को खास धर्म के साथ जोडऩे का आत्मघाती फैसला ले लें तो हम भारत में शायद कई सदियों तक मनुष्य के हाथों मनुष्य की लूट के खात्मे वाला, समानता, आजादी और सद्भावना के नियमों पर आधारित देश न बना सकें। एक राजनीतिक गलती भारी उथल-पुथल और तूफान का कारण बन सकती है। इन खतरों से सचेत होकर ही वोट का प्रयोग करना चाहिए। एक ओर चिंताजनक रूप से बढ़ती गरीबी, बेरोजगारी, मुद्रास्फीति, कुपोषण, दयनीय जीवन स्थितियां और सामाजिक सुरक्षा का अभाव तथा दूसरी ओर मुट्ठी भर कॉर्पोरेट घरानों और अमीर दिग्गजों की सम्पत्ति की वास्तविकताएं, नई सरकार के लिए बड़ी चुनौतियां हैं।  

कार्पोरेट घरानों का जो 15 लाख करोड़ का कर्ज माफ किया गया है, उसका उपयोग वास्तविक जरूरतमंदों यानी आम लोगों का कर्ज माफ करने और पूरी आबादी को एक समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं तथा सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने में किया जा सकता था। चुनाव के समय मतदाताओं को वर्तमान भाजपा सरकार और गैर-भाजपा राजनीतिक दलों की आॢथक नीतियों के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। कॉमन फ्रंट ‘इंडिया’ द्वारा प्रस्तावित भविष्य के कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। यह आम चुनाव 1.4 अरब लोगों के देश में 10 फीसदी से ज्यादा मजदूर-किसान, मध्यम वर्ग के लोग, युवा, छोटे लोगों के लिए है। वोट का प्रयोग धर्म, जाति, नस्ल या भाषा या क्षेत्र के आधार पर नहीं, बल्कि देश को अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय तौर पर सुदृढ़ करने हेतु होना चाहिए।-मंगत राम पासला 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!