राजनीतिक दलों ने 2024 के लिए अभी से कमर कस ली

Edited By ,Updated: 27 Sep, 2022 04:16 AM

political parties gear up for 2024 from now

भारत में राजनीतिक दलों ने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए अभी से योजना बनानी शुरू कर दी है।

भारत में राजनीतिक दलों ने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए अभी से योजना बनानी शुरू कर दी है। हालांकि अभी काफी समय पड़ा है, सत्ताधारी राजग तथा विपक्षी दल एक-दूसरे की तैयारियों पर नजर रखे हुए हैं। वे राजनीतिक माहौल के अनुसार अपनी रणनीतियों में बदलाव कर रहे हैं। 2024 में आगामी आम चुनावों के लिए मंच तैयार है। समानांतर आधार पर क्षेत्रीय दल संभवत: भाजपा के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं।

सत्ताधारी भाजपा की योजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए हैट्रिक करने की है जबकि विपक्षी दल उन्हें पद से हटाने के लिए प्रयत्नशील हैं। दोनों पक्ष मोदी बनाम सभी की पृष्ठभूमि में 350 प्लस के लक्ष्य के साथ खुद को मजबूत बना रहे हैं। विपक्ष एकता के सपने देखता है लेकिन इसे एक निर्णायक नुक्सान है क्योंकि यह अभी भी मोदी को चुनौती देने वाले किसी व्यक्ति की तलाश में है। प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का अभाव संभवत: विपक्ष को नुक्सान पहुंचा सकता है और भाजपा ‘मोदी बनाम कौन’ का ही प्रश्न उठाएगी।

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, बिहार में नीतीश कुमार, दक्षिण में के. चंद्रशेखर राव, एन.के. स्टालिन तथा उत्तर में अरविंद केजरीवाल के साथ भाजपा के सामने विभिन्न क्षेत्रों में निकट प्रतिद्वंद्वी हैं। विपक्षी गढ़ों में 200 से अधिक सीटें हैं। हिमाचल प्रदेश तथा गुजरात में इस वर्ष के आखिर में मतदान होगा तथा अगले वर्ष 6 महत्वपूर्ण राज्यों-कर्नाटक त्रिपुरा, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में चुनाव होने वाले हैं।

भाजपा को अपने दक्षिणी राज्यों (129 सीटें) में विजय प्राप्त करनी है जहां आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आड़े हाथ ले रहे हैं व अन्य महंगाई तथा बेरोजगारी के मुद्दे पर भाजपा को घेरने की योजना बना रहे हैं। दूसरे, सही या गलत, भाजपा अपनी विचारधारा को लेकर स्पष्ट है, इसके पास आकॢषत करने वाला नैरेटिव तथा चुनावी तैयारी, सक्रिय काडर तथा चुनाव लडऩे के लिए अथाह कोष है। मोदी के पास सरकारी मशीनरी तथा कल्याणकारी योजनाएं व दिखाने के लिए कार्य हैं जबकि क्षेत्रीय क्षत्रप अपने राज्यों में काफी मजबूत हैं।

मोदी ने न केवल अपने लोगों को एक साथ रखा है बल्कि आलोचना के बावजूद अन्य पाॢटयों को तोड़ा और उन्हें भाजपा में शामिल होने के लिए लुभाया। और भी अधिक महत्वपूर्ण, उन्होंने संघ परिवार के केंद्रीय एजैंडों को पूरा किया है जैसा कि राम मंदिर, कश्मीर में धारा 370 को हटाना तथा ट्रिपल तलाक, ऐसी संभावना है कि वह शीघ्र ही समान नागरिक संहिता का मुद्दा भी उठाएंगे। ये सब उनके निष्ठावान मतदाताओं को बनाए रखेंगे।

यद्यपि संसदीय बोर्ड में हालिया फेर-बदल तथा बिहार में गत माह जद (यू) द्वारा साथ छोडऩे से भाजपा के भीतर कुछ असंतोष पैदा हुआ है। फिर भी नेता भाजपा की अपनी नीतियों में संशोधन करने की क्षमता पर निर्भर है। भाजपा को भी अधिक सहयोगियों की जरूरत है। पार्टी ने आम चुनावों के लिए जोरदार तैयारियां शुरू कर दी हैं। हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित एक बैठक के दौरान लोकसभा के 144 कमजोर निर्वाचन क्षेत्रों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए एक ब्लू प्रिंट तैयार किया गया।

पार्टी ने उन 70 लोकसभा सीटों पर ध्यान केंद्रित करने का भी प्रस्ताव किया जहां वह कभी नहीं जीती। दूसरी ओर विपक्ष सुसंगत नहीं है तथा विभिन्न विचारधाराओं का एक मिश्रण है। उन सभी को आवश्यक तौर पर लेने-देने की भावना को अपनाना होगा। जहां क्षेत्रीय नेताओं ने अपने राज्यों में अच्छी कारगुजारी दिखाई है, उन्हें आवश्यक तौर पर एक न्यूनतम सांझा कार्यक्रम पर कार्य करना होगा जो सभी सांझीदारों को स्वीकार्य हो। अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद देवेगौड़ा, लालू यादव, नीतीश कुमार तथा शरद पवार संभवत: पूर्व जनता निर्वाचन क्षेत्रों को एकजुट करने के लिए सहयोग कर सकते हैं।

कांग्रेस के साथ वे बहुदलीय राज्यों में मजबूती बना सकते हैं जैसे कि हरियाणा, कर्नाटक, बिहार, झारखंड तथा उत्तर प्रदेश। यहां लगभग 200 लोकसभा सीटें बनती हैं। राहुल गांधी की वर्तमान भारत जोड़ो यात्रा संभवत: कांग्रेस की मदद कर सकती है। उत्तर प्रदेश में एक मजबूत क्षेत्रीय दल समाजवादी पार्टी अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने पर ध्यान दे रही है। पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने पहले ही घोषित कर दिया है कि वह कांग्रेस अथवा बसपा के साथ गठबंधन बनाने की योजना नहीं बना रहे लेकिन राष्ट्रीय लोकदल जैसी छोटी पाॢटयों के साथ अपना गठजोड़ जारी रखेंगे।

दूसरी ओर उत्तर प्रदेश, जहां लोकसभा की 80 सीटें हैं, के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भाजपा के लिए 75 सीटों को लक्ष्य बनाया है। बसपा ने एक जोरदार सदस्यता अभियान शुरू किया है जिसमें पहले चरण के तौर पर प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र से 75000 सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा गया है। बसपा प्रमुख मायावती गत एक दशक के दौरान एक के बाद एक पराजय का सामना कर रही हैं लेकिन उनका एक ठोस दलित वोट बैंक है।

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगनमोहन रैड्डी ने अपने विधायकों को चेतावनी दी है कि कारगुजारी दिखाएं या सजा भुगतें। उन्होंने अपने विधायकों की एक डोर टू डोर यात्रा भी शुरू की है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी एक राष्ट्रीय भूमिका की आशा में एक राष्ट्रीय दल बनाने की योजना बना रहे हैं। 2024 तक सभी राजनीतिक खिलाडिय़ों के लिए यह एक रोमांचक यात्रा होगी।

मोदी बेशक 10 वर्षों से सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे हों लेकिन भाजपा मोदी के जादू पर निर्भर है। मगर बहुत से प्रश्र भी हैं जैसे कि क्या मोदी हैट्रिक लगा पाएंगे? क्या विपक्ष एकजुट हो पाएगा? क्या राहुल गांधी एक सफल चुनौतीदाता के तौर पर उभरेंगे? पहली बार मतदान करने वाले मतदाता किसे प्राथमिकता देंगे?राजनीति में एक सप्ताह बहुत लम्बा बताया जाता है। 2024 के चुनावों से पहले हमारे पास 18 महीने हैं। चुनावों के नजदीक तस्वीर स्पष्ट हो जाएगी। तब तक राजनीतिक पंडित अंधेरे में ही हाथ-पांव मार रहे हैं।-कल्याणी शंकर
 

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