पंजाब के प्राइवेट-एडिड स्कूलों को सरकार की ही ‘नजर लगी’

Edited By ,Updated: 15 Sep, 2020 02:29 AM

private aided schools in punjab got  noticed  by the government

अफसोस और वेदना से लिख रहा हूं कि पंजाब के प्राइवेट- एडिड स्कूलों के कर्मचारियों ने लम्बे आंदोलन और संघर्षों के बल पर जो प्राप्त किया था 2020 तक आते-आते पंजाब सरकार ने उनका सब कुछ छीन लिया। स्मरण रहे पंजाब में 452 प्राइवेट

अफसोस और वेदना से लिख रहा हूं कि पंजाब के प्राइवेट- एडिड स्कूलों के कर्मचारियों ने लम्बे आंदोलन और संघर्षों के बल पर जो प्राप्त किया था 2020 तक आते-आते पंजाब सरकार ने उनका सब कुछ छीन लिया। स्मरण रहे पंजाब में 452 प्राइवेट- एडिड स्कूल हैं। इन स्कूलों में 10,000 कर्मचारी कार्यरत हैं। इन स्कूलों की एक बड़ी सशक्त जत्थेबंदी होती थी। 

इन्होंने 1966 में अपना संघर्ष शुरू किया कि दिल्ली प्राइवेट स्कूलों की तरह पंजाब के इन स्कूलों में भी कोठारी कमीशन लागू किया जाए और दिल्ली पैटर्न पर वेतन-भत्ते दिए जाएं। सारे पंजाब में इन स्कूलों की यूनियन के नेता हुआ करते थे सरस्वती भूषण, के.के. टंडन, एम.एल. चोपड़ा। इन्हीं के नेतृत्व में अध्यापक स्कूल बंद कर पांच-पांच बार जेल गए। 1966 में आंदोलन का पहला चरण शुरू हुआ। तब हरियाणा, हिमाचल और दिल्ली तक संयुक्त पंजाब था। 

मैं तब शायद अम्बाला जेल में था। 1967 
आते-आते पंजाब के मुख्यमंत्री लक्ष्मण सिंह गिल गुरनाम सिंह मंत्रिमडंल से बगावत कर पंजाब सरकार का कार्यभार संभाल चुके थे। तब इन एडिड स्कूलों का आंदोलन जोरों पर था। अध्यापक-अध्यापिकाएं पंजाब सचिवालय के बाहर अपनी मांगों के लिए हजारों की संख्या में डटे हुए थे। पंजाब पुलिस के घुड़सवारों ने अध्यापकों को कुचल दिया। 

भयंकर लाठीचार्ज हुआ। लेडी-अध्यापक लहू से लथपथ पर डटे रहे। पंजाब विधानसभा का अधिवेशन भी चल रहा था। इतने में क्या देखते हैं कि स्वास्थ्य मंत्री महंत राम प्रकाश और लक्ष्मण सिंह गिल, एक और मंत्री उनके साथ था नाम मुझे याद नहीं, अध्यापकों बीच आ खड़े हुए। घूरते ही बोले, ‘‘क्या मांगें हैं?’’ अध्यापकों ने जयकारा छोड़ते कहा, ‘‘कोठारी कमीशन’’ लागू करो। ‘‘दिल्ली पैटर्न’’ पर वेतन भत्ते जारी करो। मुख्यमंत्री बोले, ‘‘सब स्वीकार। मैं आपको ‘पंजाब कमीशन’ देता हूं। वह ‘पंजाब कमीशन’ जिसे ङ्क्षहदुस्तान के सभी कर्मचारी आने वाले समय में मांगते रहेंगे। तब जयकारे छूटे ‘लक्ष्मण सिंह गिल-जिंदाबाद।’’ 

यकीनन प्राइवेट एडिड स्कूलों के अध्यापक आज तक लक्ष्मण सिंह गिल के ऋणी हैं। वह बड़े खुले दिल का मालिक था। पंजाब में पंजाबी भाषा को उसने एक झटके में लागू कर दिया। गांव-गांव को सड़कों से जोड़ दिया। जानते हो कि 1966 से पहले यानी ‘कोठारी कमीशन’ से पहले अध्यापकों की तनख्वाह इन स्कूलों में कितनी थी? मुझे 140 रुपए प्रतिमाह मिलते थे। पंजाब के प्राइवेट-एडिड स्कूलों के आंदोलन का दूसरा दौर 1970 के बाद ‘पैंशन और ग्रैच्युटी’ के लिए चला जिसकी परिणति 1986 में बरनाला सरकार के समय हुई परन्तु पैंशन लगाने का श्रेय तत्कालीन शिक्षा सचिव राजेंद्र सिंह को मिला। प्राइवेट-एडिड स्कूलों के कर्मचारियों को ‘पैंशन स्कीम’ का लाभ मिलना 5.12.1987 को शुरू हुआ। परन्तु इसकी स्वीकृति मेरे द्वारा विधानसभा में पूछे गए एक प्रश्न से प्राप्त हुई। 

जिस ‘पैंशन-ग्रैच्युटी’ स्कीम को बरनाला सरकार ने स्वीकार कर लागू किया, उसी ‘पैंशन स्कीम’ को 23 मई, 2005 को कैप्टन अमरेंद्र सिंह की सरकार ने बंद कर दिया। इन स्कूलों के कर्मचारियों के लिए पुन: एक बार पाकिस्तान बन गया। लिहाजा इन कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने ‘पैंशन-ग्रैच्युटी’ स्कीम को पुन: लागू करने के आदेश यह कह कर दिए कि कर्मचारियों की इस ‘पैंशन स्कीम’ तहत सरकार कोई खैरात नहीं दे रही बल्कि यह उनका बनता अधिकार है जिसे छीनकर सरकार ने ज्यादती की है। अत: 28.7.2011 को यह ‘पैंशन- ग्रैच्युटी’ स्कीम दोबारा शुरू हुई परन्तु एडिड स्कूलों की यूनियन अपनी मांगों के लिए हमेशा संघर्षरत रही। आज इन स्कूलों में कार्यरत कर्मचारियों की सेवाएं 5.2.1987 के एक्ट ‘पंजाब प्राइवेटली-मैनेज्ड रिकोगनाइज्ड एडिड स्कूल्ज, रिटायरमैंट एक्ट’ द्वारा सुरक्षित हैं। 

पाठकवृंद, पंजाब के एडिड स्कूलों को जो सुविधाएं, जो वेतन-भत्ते, जो यह ‘पैंशन-ग्रैच्युटी’ लाभ मिले, इन अध्यापकों के संघर्ष, लाठियों, जेलों की बदौलत मिले। 1987 के बाद रिटायर हुए हर कर्मचारी को पैंशन लाभ मिले। इन कर्मचारियों पर सुप्रीम कोर्ट ने कृपा की। ङ्क्षहद समाचार ग्रुप के चीफ सम्पादक माननीय विजय चोपड़ा जी की लेखनी प्राय: पंजाब के एडिड स्कूलों के कर्मचारियों के लिए उठती रही है। जहां इन स्कूलों के 10,000 रिटायर कर्मचारियों को पैंशन लाभ मिला, वहीं 2004 के बाद लगने वाले कर्मचारी इन पैंशन स्कीम से वंचित कर दिए गए। ये स्कूल पुन: 1966 से पहले की स्थिति में आ गए हैं। 

यहां 1966 में इन स्कूलों के अध्यापकों को मात्र 500 रुपए मासिक वेतन मिलता था, आज के युग में उन्हें तीन हजार या अधिक से अधिक पांच हजार रुपए प्रतिमास मिलने लगा है। यदि सरकार स्कूली शिक्षा को बचाना चाहती है तो इन स्कूलों को अपने अधीन ले ले। चलाए इन शिक्षण संस्थाओं को या इन स्कूलों के खाली पड़े स्थानों पर नए कर्मचारी रखने की सरकार आज्ञा दे। कानून अनुसार इनकी बनती 95' ग्रांट रिलीज करे। सरकार भी अपनी, स्कूल भी अपने, इनमें पढऩे वाले भी अपने, सो सरकार हाथ क्यों पीछे खींच रही है?-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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