लोकसभा चुनाव में पंजाब की राजनीतिक धुंध छंटनी चाहिए

Edited By ,Updated: 24 Mar, 2024 05:22 AM

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लोकसभा चुनाव भारत के लोकतंत्र में एक महापर्व है। भारत का लोकतंत्र विश्व भर में भव्य और विशाल है। लोकतंत्र में ‘ए पीपल गैट दा गवर्नमैंट विच दे डिजरव’ लोगों को वही सरकार मिलती है जिसके वे अधिकारी होते हैं। भारत में निष्पक्ष जनमत है।

लोकसभा चुनाव भारत के लोकतंत्र में एक महापर्व है। भारत का लोकतंत्र विश्व भर में भव्य और विशाल है। लोकतंत्र में ‘ए पीपल गैट दा गवर्नमैंट विच दे डिजरव’ लोगों को वही सरकार मिलती है जिसके वे अधिकारी होते हैं। भारत में निष्पक्ष जनमत है। लोकतंत्र में जनता-जनार्दन है। जहां हर 5 वर्ष बाद जनता अपना नेता चुन लेती है। लोकतंत्र में वोटर ‘हीरो’ है। 100 में से 51 वोट लेने वाला नेता और 100 में से 49 वोट लेने वाला विपक्षी। लोकतंत्र में सिर गिने जाते हैं, विचार नहीं। जनता-जनार्दन के मतों से सरकारें बनती हैं, बिगड़ती हैं। लोकतंत्र में जो जीता वही सिकंदर। 

जनता और मतदान से बड़े-बड़े नेताओं के पैर उखड़ जाते हैं और लल्लू-लाल जीत जाते हैं। बहरहाल तो देश में विपक्ष मरियल अवस्था में है। सब तरफ एक ही व्यक्ति की हवा चल रही है। बिखरा हुआ विपक्ष लोकतंत्र में खतरे की घंटी है। दूसरी ओर पंजाब की राजनीति को लेकर अभी तक तो धुंधलका बना हुआ है। यह तो ठीक है कि पंजाब में लोकसभा चुनाव सातवें यानी अंतिम चरण में होंगे।  पंजाब की जनता असमंजस में है। पंजाब की जनता को पता ही नहीं कि ‘आप’ और कांग्रेस का समझौता होगा या नहीं क्योंकि लोकसभा की 8 सीटों पर तो आम आदमी पार्टी ने नामों की घोषणा करके फिर उन नामों को वापस भी ले लिया। राम जाने ‘आप’ पार्टी और कांग्रेस में सीटों का तालमेल होता है या नहीं? 

चंडीगढ़ को मिलाकर पंजाब में लोकसभा की 14 सीटें हैं। ‘आप’ तो अपने दम पर 14 की 14 सीटों को जीतने का दावा कर रही है। पंजाब की जनता सोच रही है कि ‘आप’ पार्टी पंजाब विधानसभा की 92 सीटों पर कब्जा कर सकती है तो 14 लोकसभा सीटों को जीतना उसके लिए क्या मुश्किल है? परन्तु राजनीति के विशेषज्ञ किसी ओर तरफ इशारा कर रहे हैं। 

यह भी सत्य है कि शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक स. प्रकाश सिंह बादल की मृत्योपरांत अकाली दल कमजोर हुआ है। स. प्रकाश सिंह बादल में जन्मजात, राजनीतिक गुण थे इसलिए वह पंजाब के 5 बार मुख्यमंत्री रहे। फिर भी शिरोमणि अकाली दल के वर्तमान युवा प्रधान स. सुखबीर सिंह बादल दल में बिखराव को रोकने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ हद तक वह सफल भी हुए हैं। फिर भी उनके सामने अनेक राजनीतिक चुनौतियां हैं। उन्होंने ढींडसा ग्रुप, ब्रह्मपुरा ग्रुप और बीबी जगीर कौर को वापस अकाली दल में लाकर अपने कैडर का उत्साह बढ़ाया तो भी स. रवि इंद्र सिंह का अकाली दल और टोहरा साहिब का ग्रुप स. सुखबीर सिंह की टांगें खींचने से गुरेज करेंगे? ऊपर से किसान आंदोलन अकाली दल की कुंडली में बैठा नजर आ रहा है। 

जब तक यह किसान आंदोलन खत्म नहीं होता तब तक तो शिरोमणि अकाली दल न इस तरफ आ सकता है न दूसरी तरफ जा सकता है। मैं अपने दोनों भाइयों स. सुखबीर सिंह बादल और स. विक्रम सिंह मजीठिया से यही कहूंगा कि धैर्य न छोड़ें। अपने राजनीतिक पिछोकड़ को ध्यान में रख कर आगे की राजनीति पंजाब और केंद्र में करें। शिरोमणि अकाली दल में भी अभी तक धुंधलका बराबर बना हुआ है। यदि पंजाब में शिरोमणि अकाली दल अकेला लोकसभा चुनाव लड़ता है तो परिणाम जीरो होगा। पूछो क्यों? क्योंकि पंजाब में भयंकर बहुमत हासिल कर ‘आप’ सरकार राज कर रही है। 

पंजाब सरकार के मुख्यमंत्री स. भगवंत सिंह मान स. सुखबीर सिंह बादल और स. विक्रम सिंह मजीठिया की सभी फाइलें वह अपने टेबल पर रखे बैठे हैं। स. विक्रम सिंह मजीठिया से तो लगता है उनका शुरू से ही 36 का आंकड़ा है। ऐसे में यदि स. सुखबीर सिंह पंजाब की राजनीति में बने रहना चाहते हैं तो उनके सामने एक ही विकल्प है भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन? विचार कर लें सौदा घाटे का नहीं होगा? यह भी सत्य है कि भारतीय जनता पार्टी को अपने पुराने कार्यकत्र्ताओं पर भरोसा नहीं रहा वह केवल इसलिए है कि पार्टी को नए-नए युवा कार्यकत्र्ताओं की भीड़ लगातार मिलती जा रही है। विपक्ष का हर छोटा-बड़ा नेता भाजपा में शामिल हो रहा है। 

ऐसा लगने लगा है कि भाजपा के सामने विपक्ष पंगु हो गया है। विपक्षी गठबंधन इंडिया को मानो सांप सूंघ गया है। जिधर देखो उस तरफ विपक्ष का बिखराव ही बिखराव नजर आ रहा है। आज पुन: पंजाब की राजनीति 1967 के गठबंधन की ओर इशारा कर रही है। आज दोनों दलों को 1967 के अपने पुराने और अनुभवी नेताओं को याद करना चाहिए। भाजपा भी अपने जनसंघ स्वरूप को पहचाने । 1967 के गठबंधन में जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी, कम्युनिस्ट शिरोमणि अकाली दल सब एक हो गए थे। तब शिरोमणि अकाली दल और जनसंघ के बड़े गंभीर और धैर्यवान नेता थे। होशियारपुर से चौधरी बलबीर सिंह, कम्युनिस्टों से सतपाल डांग अमृतसर से, महंत राम प्रकाश दास दातारपुर ये सब बड़े नेता थे। शिरोमणि अकाली दल से संत फतेह सिंह, स. गुरचरण सिंह टोहरा, स. गुरनाम सिंह, स. प्रकाश सिंह बादल, स. लक्ष्मण सिंह गिल, ङ्क्षहद समाचार ग्रुप के महान संपादक शहीद लाला जगत नारायण, जनसंघ से डा. बलदेव प्रकाश, वीर यज्ञ दत्त शर्मा, मनमोहन कालिया, हरबंस लाल खन्ना, विश्वनाथन, बाबू हिताभिलाषी, क्या अद्भुत व्यक्तित्व थे। 

1992 में पंजाब में फिर एक नई सुबह ने अंगड़ाई ली। हजारों लोगों, नेताओं की शहादत के बाद 1992 में फिर एक नया सवेरा पंजाब की राजनीति में देखने को मिला। 1997 में एक बार पुन: स. प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में शिरोमणि अकाली दल और भाजपा की सरकार बनी। 2007 में पुन: गठबंधन पजाब में विजयी रहा। पंजाब में राजनीतिक स्थिरता लौटी, पंजाब विकास की ओर अग्रसर हुआ। फिर न जाने 2022 के चुनावों में पंजाब की राजनीति में एक नया अध्याय जुड़ा कि ‘आप’ पार्टी विधानसभा की 117 में से 92 सीटें लेकर सभी क्लासिकल राजनीतिक पार्टियों को धराशायी कर अपनी सरकार बना गई। 

शिरोमणि अकाली दल ने यद्यपि बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन किया परन्तु सिर्फ 2 विधायकों की पार्टी बन कर रह गया। 2022 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी भी 2 विधायकों से आगे न बढ़ सकी। 2024 के लोकसभा चुनावों में दोनों दलों को मिल-बैठ कर विचार करना होगा। आपसी कटुता भुला कर मिल कर चुनाव लडऩा होगा। राजनीतिक नक्शा पंजाब में बदला है।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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