राजन की सलाह पर बाबू कितना ध्यान देंगे

Edited By ,Updated: 02 May, 2016 01:28 AM

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जब भी भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन बोलते हैं तो सरकार सुनती है। हालांकि इन दिनों यह खबर भी हवा में तैर रही है कि...

(दिलीप चेरियन): जब भी भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन बोलते हैं तो सरकार सुनती है। हालांकि इन दिनों यह खबर भी हवा में तैर रही है कि राजन आर.बी.आई. से बाहर जाने का रास्ता भी देखने लगे हैं क्योंकि उन्होंने सुना है कि उनकी कुछ टिप्पणियों के चलते, जो कि उन्होंने वित्त मंत्रालय को लेकर की हैं, सरकार से उनकी तल्खी बढ़ गई है। 

 
यह भी सभी जानते हैं कि आर.बी.आई. गवर्नर को प्राप्त अधिकारों को लेकर विचारों में काफी अधिक अंतर है और चूंकि मौद्रिक नीति के मामले में आखिरकार उनकी ही चलती है, ऐसे में सरकार से उनका छत्तीस का ही आंकड़ा रहता है। बार-बार यह अफवाह भी चलती रहती है कि सरकार राजन को हटाने की योजना बना रही है लेकिन वे हर बार आर.बी.आई. में बने रहते हैं। 
 
शायद, क्योंकि सरकार के पास उनको बदलने के लिए उनसे सक्षम कोई व्यक्ति है ही नहीं और साफ-साफ बात करने वाले राजन आर.बी.आई. में शीर्ष पद पर विराजमान हैं और पूरी दुनिया में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। 
 
राजन ने हाल ही में बाबुओं को संबोधित करते हुए हालांकि सामान्य बातें ही कीं लेकिन उनको लेकर भी विवाद हो गया। आखिरकार उन्होंने सीधे-सीधे शब्दों में एक सामान्य सलाह ही दी थी। वाॢषक वाई.बी. चव्हाण मैमोरियल लैक्चर के दौरान उन्होंने कुछ बाबुओं को कुछ सुझाव दिया कि उन्हें अपने कत्र्तव्य अच्छे से निभाने चाहिएं। उन्होंने उन्हें सलाह दी कि वे एक दिन बिना किसी सहायक के काम करें और आम आदमी को पेश आने वाली दिक्कतों को समझें और उनके प्रति संवेदनशील बनें। 
 
दरअसल वे बाबुओं के साथ अपने अनुभवों को सांझा कर रहे थे। स्पष्ट है कि आर.बी.आई. गवर्नर पहले ही आर.बी.आई. में इस तरह की प्रक्रिया को लागू करने का मन बना चुके हैं जिनमें वरिष्ठ अधिकारियों को भी कुछ सामान्य काम खुद ही करने होंगे ताकि वे आम लोगों की सेवा बेहतर ढंग से कर सकें। यह सुनने में काफी अच्छा भी लगता है पर अब देखने वाली बात यह है कि क्या बाबू भी राजन के सुझावों को लेकर उतना ही उत्साही हैं और ऐसे छोटे-मोटे काम करते हुए देखे जा सकेंगे!
 
इन कुछ बाबुओं की मदद पर हैं प्रिंस अखिलेश
राज्य में अगले साल चुनाव होने हैं और लोगों में सत्ता के प्रति रोष है, ऐसे में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव प्रशासन की बढ़ती आलोचना से निपटने में संघर्ष कर रहे हैं। वे इस काम में आई.ए.एस. अधिकारियों के एक समूह की भी मदद ले रहे हैं।
 
 सूत्रों का कहना है कि यादव काफी हद तक 1988 बैच के आई.ए.एस. अधिकारी नवनीत सहगल पर निर्भर हैं जो कि उनके सूचना एवं जनसंपर्क के लिए प्रिंसीपल सचिव हैं। उनके अन्य करीबी अधिकारियों में संजय अग्रवाल, प्रिंसीपल सचिव, विद्युत, राज शेखर, पी.एस. शर्मा, किंजल सिंह, डी.एम. फैजाबाद, आई.पी.एस. अधिकारियों में शलभ माथुर और कमल सक्सेना शामिल हैं जो कि लगातार उनका प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। 
 
दुर्भाग्य से युवा मुख्यमंत्री को कुछ भ्रष्ट बाबू भी लगातार झांसा देते रहे हैं जिनमें प्रिंसीपल सचिव, नियुक्तियां, राजीव कुमार भी शामिल हैं, जिन्हें हाल ही में सी.बी.आई. अदालत द्वारा दोषी करार दिए जाने पर जेल भेज दिया गया है। उनका नाम भी उस जमीन आबंटन घोटाले में शामिल पाया गया है जिसने पूर्व मुख्य सचिव नीरा यादव का करियर भी धो डाला है, जो कि समाजवादी पार्टी के सर्वेसर्वा मुलायम सिंह यादव की भी करीबी रही हैं। एक अन्य आई.ए.एस. अधिकारी अखंड प्रताप सिंह, जिनका नाम पार्टी सुप्रीमो द्वारा मुख्य सचिव के लिए आगे किया गया था, को भी भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते अपना पद छोडऩा पड़ा है। 
 
अब देखने वाली बात यह है कि इन कुछ चुनिंदा अच्छे आदमियों का अच्छा काम अखिलेश यादव को संभावित हार से बचा पाएगा? यह अब देखने वाली बात है और हमारी तो सलाह है कि तेल देखो और तेल की धार देखो। 
 
तबादलों का खेल जारी है
लगता है कि कर्नाटक सरकार को अपनी ही नीतियों पर भरोसा नहीं है। राजनीति के झंझावतों से घिरे मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने घोषणा की थी कि वरिष्ठ बाबुओं को एक पद से 2 साल से पहले बदला नहीं जाएगा लेकिन उनकी अपनी ही सरकार लगातार इस नियम का उल्लंघन कर रही है और बाबुओं का लगातार तबादला कर रही है। कुछ मामलों में तो बाबुओं का तबादला बार-बार किया जा रहा है। स्वाभाविक ही है कि इससे बाबुओं के बीच रोष बढ़ रहा है। एक सर्वे के अनुसार राज्य में बाबुओं का एक पद पर औसत कार्यकाल 16 महीने या उससे भी कम रहा है। 
 
हाल ही में 2 वरिष्ठ आई. ए.एस. अधिकारियों टी.एम. विजय भास्कर और जी. कुमार नायक का तबादला कर दिया गया, जिसने सरकार की अस्त-व्यस्त तबादला नीति का खुलासा कर दिया। सूत्रों का कहना है कि नायक को बेंगलूर नगर निगम के आयुक्त बनने के एक साल से भी कम समय में पद से हटा दिया गया और वहीं भास्कर, जो कि शहरी विकास का कामकाज देख रहे थे, एक साल में यह तीसरा तबादला मिला है। 
 
राज्य के अन्य वरिष्ठ बाबुओं जिनको सरकार द्वारा किए जाने वाले बार-बार तबादलों को झेलना पड़ा है उनमें रश्मिी वी. महेश, शालिनी रजनीश, महेंद्र जैन, हर्षा गुप्ता और महेश्वर राव आदि कई प्रमुख नाम शामिल हैं। सूत्रों का कहना है कि अब तो बाबुओं ने यह योजना बनाई है कि सरकार पर दबाव बनाया जाए ताकि तबादलों के लिए एक विशेष बॉडी का गठन किया जा सके, जैसे कि सुप्रीम कोर्ट 2013 में अपने फैसले में सुझाव दे चुका है। 
 
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