नशों के दलदल से पंजाब को निकालना है तो शराब पर लगानी होगी पाबंदी

Edited By Pardeep,Updated: 07 Sep, 2018 04:14 AM

remove punjab from the swamps of drugs ban on alcohol should be imposed

सरकार,समाज एवं परिवार चिंतित हैं कि देश का युवा वर्ग नशों का शिकार होकर अपनी सेहत, दौलत और इज्जत गंवा रहा है। समग्र देश में भी पंजाब तथा पंजाब से जुड़े हुए प्रांत इस समस्या से अधिक त्रस्त हैं। नशे की लत से युवाओं को बचाने के लिए कई उपाय किए जा रहे...

सरकार,समाज एवं परिवार चिंतित हैं कि देश का युवा वर्ग नशों का शिकार होकर अपनी सेहत, दौलत और इज्जत गंवा रहा है। समग्र देश में भी पंजाब तथा पंजाब से जुड़े हुए प्रांत इस समस्या से अधिक त्रस्त हैं। नशे की लत से युवाओं को बचाने के लिए कई उपाय किए जा रहे हैं। पुनर्वास केन्द्र भी खुल रहे हैं जहां रह कर युवक अपनी आदतों को सुधार सकें। ड्रग्स माफिया पर नकेल कसी जा रही है ताकि सप्लाई चेन रुक सके। 

पंजाब में नशे की शुरूआत शराब के प्रचलन से हुई। शराब को सरकार ने बढ़ावा दिया, अफसरशाही ने जमकर वकालत की। सिनेमा ने इसे स्टेटस सिम्बल बना दिया। परिणाम यह निकला कि पंजाब की हरित क्रांति से उत्पन्न समृद्धि के बाद यह इलाका शराब की खुली नदी बन गया। न युवक बचे, न बुजुर्ग। घरों की यह हालत हो गई कि अपने बेटों को कोई पिता शराब न पीने की हिदायत नहीं दे सकता था क्योंकि पिता खुद शराब का शौकीन बन गया था। नशा एक बार स्नायुतंत्र- पाचनतंत्र में घुस जाए तो उसे छोडऩा सरल या संभव नहीं रहता। 

जितनी मात्रा में शराब प्रारम्भ में नशा करती है, बाद में उससे अधिक मात्रा की आवश्यकता पड़ती है। यूं बढ़ते-बढ़ते मदिरा की मिकदार और मात्रा अधिकाधिक होती जाती है। शरीर के कई अंग विशेषत: लिवर की प्रक्रिया बिगडऩे लगती है। कई तरह की बीमारियां और लग जाती हैं, पर शराब नहीं छूटती। यहां से शुरूआत होती है ड्रग्स की। जब तक नशा रहे तब तक शरीर में चुस्ती, नशा उतरते ही शरीर निढाल, बेचैन और व्याकुल। उस व्याकुलता को मिटाने के लिए फिर नशा। इस दुश्चक्र में जिंदगी बर्बाद, सेहत खराब, काम-धंधा चौपट, परिवार में लड़ाई और गरीबी फिर मौत का अंजाम, यह है नशे का असली नक्शा। 

पंजाब में जब पानी सिर से ऊपर हो गया तब जाकर सरकार को होश आया। हालांकि सरकार या कुछ प्रबुद्ध स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रयास स्वरूप 2-4 प्रतिशत सुधार आया दिखता है, पर समस्या अति विकराल है, न जाने कब इसका समाधान निकलेगा?  नशा मुक्ति का पहला लक्ष्य होना चाहिए-शराब की रोकथाम। इसके लिए पहली जिम्मेदारी है गुरुद्वारों की। वहां आने वाले हर सिख को यह कसम दिलाई जाए कि गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ सुनने वाले को शराब का सेवन छोडऩा ही होगा। गुरुद्वारों की मैनेजमैंट में उसी को शामिल किया जाए जो कभी भी शराब न पीता हो। इसी तरह मंदिरों में हर हिन्दू को राम, कृष्ण, शिवजी भोले की सौगंध खिलाई जाए कि इनको मानने वाला व्यक्ति शराब नहीं पिए। आर्य समाज में इसी तरह के कानून बने हैं। 

वाल्मीकि समाज के संत या प्रवक्ता भी शराब के खिलाफ अभियान चलाएं। जैन साधु-साध्वियां अपने युवाओं को संभालें, ऐसी मुहिम महिलाएं भी चला सकती हैं। यदि जागृति का यह बिगुल सब जगह बजने लगेगा तो सरकारों को भी सोचना पड़ेगा और वे अपने एक्साइज रैवेन्यू के लोभ को छोड़ पाएंगी। लोगों की सेहत नष्ट करके, घरों को उजाड़कर यदि सरकार का खजाना भरता है तो वह खजाना पाप की कमाई है। गांधी जी ने कहा था कि यदि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मुझे एक दिन की डिक्टेटरशिप मिल जाए तो मैं एक दिन में शराब की सब फैक्टरियां और ठेकों को बिना मुआवजा दिए बंद करवा दूंगा। 

जिस प्रकार गुजरात में 70 साल से शराबबंदी चल रही है तथा बिहार में नीतीश कुमार ने शराबबंदी चालू की है, उसी तरह पंजाब सरकार भी इस दिशा में कदम बढ़ाए तो पंजाब की कई समस्याओं का समाधान हो सकता है। यदि वे सरकारें बिना शराब की कमाई के अपने-अपने राज्यों को चला सकती हैं तो शेष सरकारों को क्या दिक्कत है? ठीक है, कुछ समस्याएं शुरू-शुरू में आएंगी, पर उनका भी समाधान निकाला जा सकता है। पहले तो दृढ़ निश्चय करना होगा। पंजाब की धरती गुरुओं की धरती है, यहां गांव-गांव में गुरुद्वारे हैं, गली-गली में मंदिर हैं। रोजाना जगराते और भंडारे होते हैं, जगह-जगह पर संत-महात्माओं के सत्संग लगते हैं। जनता और प्रशासन दोनों के संयुक्त प्रयास से शराब की बिक्री पर पाबंदी लग जाए तो निश्चित तौर पर शीघ्र ही नशीली दवाइयों का प्रचलन भी बंद हो जाएगा और पंजाब का युवा वर्ग अंधेरे से उजाले का सफर कर सकेगा।-जैन संत जय मुनि जी

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