बढ़ती जनसंख्या, घटते रोजगार

Edited By ,Updated: 29 Jul, 2022 05:11 AM

rising population declining employment

बढ़ती बेरोजगारी की हताशा आम लोगों का जीना मुश्किल कर रही है। बेरोजगारी किसी भी विकसित अथवा विकासशील राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। किसी भी व्यक्ति की बेरोजगारी

बढ़ती बेरोजगारी की हताशा आम लोगों का जीना मुश्किल कर रही है। बेरोजगारी किसी भी विकसित अथवा विकासशील राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। किसी भी व्यक्ति की बेरोजगारी तब आंकी जा सकती है, जब वह प्रचलित मजदूरी की दर पर काम करने को तैयार हो जाता है।

इससे यह स्पष्ट होता है कि वह सफल होकर भी बेरोजगार है। समाज में पढ़़े-लिखे लोगों का बेरोजगार बैठना सबसे ज्यादा ङ्क्षचताजनक विषय है। इसके कई कारण हो सकते हैं, पर भारत जैसे विकासशील देश में शिक्षित वर्ग का बेरोजगार बैठना कोई साधारण बात नहीं। बढ़ती जनसंख्या और रोजगार के बीच तालमेल न बैठने के कारण शिक्षित लोगों की रोजगार प्राप्त करने की संभावनाएं बहुत कम हैं। 

आज पूरा विश्व बेरोजगारी की मार सह रहा है, वहीं भारत में भी बेरोजगारी की बढ़ती दर अपनी चरम सीमा पर है। एक के बाद एक कोरोना महामारी की लहरों ने भी करोड़ों लोगों का रोजगार छीन कर रख दिया है, जिससे पढ़े-लिखे नौजवान बेरोजगार घूम रहे हैं। यदि वर्ष 2014 के बाद की बात की जाए तो सभी पैमानों पर रोजगार की स्थिति पहले से भी ज्यादा खराब हुई है। जरूरी पदों पर लंबे समय तक भर्तियां न निकलने की वजह से शिक्षित वर्ग बेरोजगार घूम रहा है। अब कोरोना महामारी के कारण प्राइवेट सैक्टर भी शिक्षित वर्ग को रोजगार देने में असमर्थ दिखाई पड़ रहा है। 

आंकड़ों की मानें तो भारत में संगठित क्षेत्र में कुल रोजगार 6.7 प्रतिशत है, जबकि असंगठित क्षेत्र में 93.94 प्रतिशत लोग कार्य कर रहे हैं। इसलिए सरकार की श्रम नीति और रोजगार नीति को असंगठित क्षेत्रों पर अपना ध्यान केंद्रित करके ज्यादा से ज्यादा रोजगार पैदा करने चाहिएं, ताकि भारत का शिक्षित वर्ग रोजगार के लिए विदेशों पर आश्रित न रहे। वह खुद आत्मनिर्भर बन सके और दूसरों को भी रोजगार दे सके। 

हर देश की सरकार अपने राष्ट्र को बेरोजगारी से मुक्त करने के लिए हर संभव प्रयास करती है। इसी संदर्भ में यदि भारत की बात की जाए तो सरकार की तरफ से  रोजगार बढ़ाने के लिए समय-समय पर हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं, बढ़ती बेरोजगारी को काबू में करने के लिए बहुत-सी ऐसी योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनसे भारत का शिक्षित नौजवान आत्मनिर्भर होकर अपना और देश का विकास कर सके। जैसे डिजिटल इंडिया मिशन, कौशल विकास से संबंधित पोर्टल चलाए जा रहे हैं। ऐसे ही कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय नीति 2015 भी लाई गई थी और प्रधानमंत्री रोजगार सृजन विशेष कार्यक्रम चलाया जा रहा है। 

इसी प्रकार की बहुत-सी योजनाओं का मकसद सिर्फ  इतना ही है कि भारत का शिक्षित नौजवान बेरोजगारी की चपेट में न आए और उसे रोजगार के लिए विदेशों पर आश्रित न रहना पड़े। किंतु बेरोजगारी को खत्म करने के मामले में कोई खास फायदा नहीं मिल पा रहा। महामारी के बाद तो अब प्राइवेट सैक्टरों के भी हालात बेहद खराब हैं। आई.टी. इंडस्ट्रीज और साफ्टवेयर क्षेत्र से भी अब कोई खास उम्मीद नहीं दिख रही। बढ़ती जनसंख्या और बदलते हालातों को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि सरकार को संगठित क्षेत्रों के साथ मिलकर कोई ठोस और लंबी योजना बनाने की जरूरत है। 

सबसे पहले तो पूंजी प्रधान तकनीक के स्थान पर श्रम प्रधान तकनीक का प्रयोग किया जाना चाहिए। अधिक रोजगार बढ़ाने के लिए कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्र के साथ सेवा क्षेत्र के उत्पादन को बढ़ाने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए। सरकारी योजनाओं में रोजगार के कार्यक्रमों पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए। लघु और कुटीर उद्योगों के विकास को बढ़ावा देने से भी काफी रोजगार पैदा हो सकते हैं। रोजगार के अधिक विस्तार के लिए श्रम की उत्पादकता और कुशलता में अधिक सुधार अपेक्षित हैं। उत्पादन की तकनीक को समय के अनुसार बदल कर संसाधनों एवं आवश्यकताओं के अनुसार बनाना चाहिए, ताकि हमारा देश बेरोजगारी से कोसों दूर रहते हुए ‘आत्मनिर्भर भारत’ बने।-प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा

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