श्री गुरु तेग बहादुर जी : सत्य, सेवा और स्वतंत्रता के महायोद्धा

Edited By Updated: 23 Nov, 2025 05:57 AM

shri guru teg bahadur ji great warrior of truth service and freedom

भारत  का इतिहास उन महान विभूतियों के त्याग, सत्य और साहस से आलोकित है, जिन्होंने मानवता की रक्षा के लिए अपने प्राणों तक का बलिदान दे दिया। सिख धर्म के नौवें गुरु, श्री गुरु तेग बहादुर साहिब, ऐसे ही एक दिव्य व्यक्तित्व थे, जिनका जीवन, दर्शन और बलिदान...

भारत का इतिहास उन महान विभूतियों के त्याग, सत्य और साहस से आलोकित है, जिन्होंने मानवता की रक्षा के लिए अपने प्राणों तक का बलिदान दे दिया। सिख धर्म के नौवें गुरु, श्री गुरु तेग बहादुर साहिब, ऐसे ही एक दिव्य व्यक्तित्व थे, जिनका जीवन, दर्शन और बलिदान आज भी संपूर्ण मानव सभ्यता को रास्ता दिखाने वाली ज्योति है। वह केवल एक सम्प्रदाय के गुरु नहीं थे बल्कि समूचे भारत की आत्मा के रक्षक थे। इसलिए उन्हें  ‘हिंद की चादर’ कहा गया जो धर्म, आस्था और मानवता की रक्षा करने वाली वह ढाल थे, जिसका तेज सदियों बाद भी उतना ही उज्ज्वल है। गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल,1621 को अमृतसर में गुरु हरगोबिंद साहिब के घर हुआ। बचपन से ही उनमें ध्यान, चिंतन, विनम्रता और त्याग के गुण सहज रूप से विद्यमान थे। प्रारंभिक नाम ‘त्याग मल’ था, पर युद्ध में दिखाई अद्भुत वीरता के कारण उनका नाम  ‘तेग बहादुर’ अर्थात ‘तलवार के धनी’ पड़ा। 

गुरु तेग बहादुर जी ने गुरु नानक देव जी की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए पूरे उत्तर भारत में व्यापक यात्राएं कीं। पंजाब, बिहार, बंगाल, असम और हिमालय तक फैले इन दौरों का मूल उद्देश्य था मनुष्य को जाति-पाति, ऊंच-नीच और संकीर्णताओं से ऊपर उठाकर मानव धर्म अपनाने का संदेश देना। उनकी वाणी में जीवन की अनित्यता, भय से मुक्ति, सत्य के मार्ग पर अडिग रहने और वैराग्य के महत्व का अद्भुत संगम मिलता है। उनके 116 शब्द गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं, जिनमें मानव मन की कमजोरियों, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार पर गहरा प्रहार है। 1664 में गुरु पद ग्रहण करने के बाद उनका जीवन समाज के लिए और भी समर्पित हो गया। यह वही दौर था जब सम्राट औरंगजेब ने पूरे भारत में जबरन धर्मांतरण की नीति लागू कर रखी थी। मंदिर तोड़े जा रहे थे, धार्मिक स्वतंत्रता कुचली जा रही थी और सबसे अधिक अत्याचार कश्मीर के हिंदू पंडितों पर हो रहा था। अत्याचारों से ग्रस्त कश्मीरी पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल आनंदपुर साहिब पहुंचा और गुरु तेग बहादुर जी से रक्षा की गुहार लगाई। यह क्षण भारतीय इतिहास का अनोखा अध्याय है जब एक समुदाय दूसरे समुदाय से अपनी आस्था की रक्षा के लिए समर्थन मांग रहा था और वह समर्थन उन्हें पूर्ण निर्भीकता और करुणा के साथ प्राप्त हुआ।

गुरु तेग बहादुर जी ने परिस्थिति की गंभीरता समझते हुए कहा कि धर्म की रक्षा के लिए यदि किसी एक के बलिदान की आवश्यकता है तो तेग बहादुर तैयार है। उन्होंने अपने 9 वर्षीय पुत्र गोबिंद राय से पूछा कि इस समय मानवता की रक्षा के लिए कौन बलिदान दे सकता है। बालक गोबिंद राय का उत्तर इतिहास में दर्ज हो गया- ‘पिता जी! आपसे बढ़कर कौन होगा?’ इस उत्तर ने गुरु तेग बहादुर जी के निर्णय को शहादत के अमर मार्ग की ओर अग्रसर कर दिया। उन्होंने घोषणा की कि यदि औरंगजेब उन्हें मुसलमान बना ले तो पूरे हिंदू समाज का धर्मांतरण संभव हो जाएगा। यह चुनौती औरंगजेब की नीतियों के विरुद्ध सबसे बड़ा प्रतिरोध थी, जिसने मुगल सत्ता को नैतिक रूप से झकझोर दिया। गुरु जी भाई मति दास, भाई सति दास और भाई दयाला सहित दिल्ली लाए गए। तीनों को अमानवीय यातनाएं देकर शहीद किया गया। अंतत: 24 नवम्बर 1675 को चांदनी चौक में, जहां आज सीसगंज गुरुद्वारा स्थित है, गुरु तेग बहादुर जी का सार्वजनिक रूप से शीश कलम कर दिया गया। यह बलिदान केवल धार्मिक इतिहास ही नहीं, मानव इतिहास का भी अद्वितीय उदाहरण है, जहां किसी ने अपने धर्म के नहीं बल्कि दूसरे धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग किया। वह हिंदू धर्म के रक्षक कहलाए, पर वास्तविकता यह है कि वह मानव धर्म के सच्चे रक्षक थे। गुरु तेग बहादुर जी ने जबरन धर्मांतरण को अपने अदम्य साहस से रोका और अपनी शहादत देकर लोगों में अपने धर्म और परंपराओं के प्रति दृढ़ आस्था जगाई।

आज का भारत गुरु तेग बहादुर जी के आदर्शों को नए युग की शक्ति के रूप में देखता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 400वें प्रकाश पर्व को राष्ट्रीय आयोजन का रूप देकर गुरु परंपरा को वैश्विक गरिमा प्रदान की। लाल किले की प्राचीर से आयोजित भव्य कार्यक्रम में उन्होंने गुरु जी के बलिदान को भारतीय आत्मा का सर्वोच्च उदाहरण बताया। इस अवसर पर 100 रुपए का स्मारक सिक्का और विशेष डाक टिकट जारी किया गया जो राष्ट्र की ओर से गुरु परंपरा को सम्मान का प्रतीक है। इसके अलावा, मोदी सरकार ने करतारपुर कॉरिडोर को रिकॉर्ड समय में खोलकर गुरु नानक और गुरु परंपरा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाई। आज जब विश्व धार्मिक उग्रवाद, संकीर्णता, हिंसा और असहिष्णुता की चुनौतियों से जूझ रहा है, गुरु तेग बहादुर जी की शिक्षाएं और भी प्रासंगिक हो जाती हैं। गुरु तेग बहादुर जी का नाम भारत की राष्ट्रीय चेतना में उस प्रकाश स्तंभ की तरह है जो अंधकार और भय के सामने कभी मंद नहीं पड़ता। वह हमें याद दिलाते हैं कि धर्म केवल पूजा नहीं बल्कि मानवता की रक्षा का संकल्प है। हिंद की चादर गुरु तेग बहादुर महाराज जी को कोटि-कोटि नमन।-तरुण चुघ (राष्ट्रीय मंत्री, भारतीय जनता पार्टी)

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