आतंकवाद की ओर जा रहे हैं कुछ डाक्टर

Edited By Updated: 21 Nov, 2025 05:10 AM

some doctors are turning to terrorism

मैडिसिन के डाक्टर हमेशा से हमारे कामों की लिस्ट में सबसे ऊपर रहे हैं, जिनकी इस दुनिया में हर इंसान तारीफ  करता है। ऐसा कोई इंसान नहीं है जिसे अपनी जिंदगी में कभी न कभी डाक्टर की जरूरत न पड़ी हो। डाक्टरों को नेक इंसान माना जाता है जो दूसरे इंसानों को...

मैडिसिन के डाक्टर हमेशा से हमारे कामों की लिस्ट में सबसे ऊपर रहे हैं, जिनकी इस दुनिया में हर इंसान तारीफ  करता है। ऐसा कोई इंसान नहीं है जिसे अपनी जिंदगी में कभी न कभी डाक्टर की जरूरत न पड़ी हो। डाक्टरों को नेक इंसान माना जाता है जो दूसरे इंसानों को जिंदा और ठीक रखने की फिक्र करते हैं। 10 नवंबर,2025 को दिल्ली में लाल किले के पास मैट्रो स्टेशन के बाहर हुए धमाके में 13 आदमी मारे गए और कई आदमी और औरतें घायल हो गई, यह न सिर्फ  हमारी मजबूत सरकार के लिए बल्कि हमारे देश के आम लोगों के लिए भी एक बड़ा झटका था। पाकिस्तान में मौजूद जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े  एक टैरर मॉड्यूल का पता चला। गिरफ्तार किए गए ज्यादातर लोग डाक्टर हैं।

इसमें इतनी हैरानी की क्या बात है? आम आदमी ऐसे टैरर मॉड्यूल की कल्पना भी नहीं कर सकता जिसमें एक डाक्टर भी शामिल हो। अब उसे बताया जा रहा है कि इस खास मॉड्यूल में ज्यादातर डाक्टर हैं जो सभी इस्लाम को मानते हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर, हरियाणा और बंगाल जैसे अलग-अलग राज्यों से हैं। सिर्फ  सबसे होशियार स्टूडैंट ही मैडिकल कॉलेज में सीट पक्की कर सकते हैं। पढ़ाई साढ़े 5 साल की होती है और अगर स्टूडैंट मैडिसिन की किसी भी ब्रांच में स्पैशलाइज करना चाहता है तो उसे 2 साल या उससे ज्यादा और लगेंगे, जिसके बाद जरूरी स्किल्स को बेहतर बनाने के लिए हॉस्पिटल में इंटर्नशिप करनी होगी।  जिन डॉक्टरों ने अपनी जवानी के सबसे अच्छे साल ऐसी जिंदगी की तैयारी में बिताए हैं जो दूसरों को जिंदा रहने में मदद करती है, वे अपना मकसद क्यों छोड़कर सिर्फ  सत्ता में बैठे लोगों को मैसेज देने के लिए बेगुनाह लोगों को मारने और घायल करने पर उतर आएं?

इसका जवाब पिछले कुछ सालों में खोजे गए दूसरे टैररिस्ट मॉड्यूल में मिल सकता है। अभिनव भारत एक अकेला मॉड्यूल था जो हैरानी की बात है कि ज्यादातर कम्युनिटी में घुसा हुआ था, जिसे महाराष्ट्र के एंटी-टैररिस्ट स्क्वॉड ने खोजा था। पॉलिटिकल फील्ड में फायदेमंद पोजीशन वाले लोगों में भी जो गहरा गुस्सा था, उसे हमें अपने मन की आंखों में, उन लोगों तक पहुंचाना होगा जो इस समीकरण के शिकार थे। जब भारत के इकलौते मुस्लिम-बहुल राज्य को राज्य का दर्जा नहीं दिया गया और उन लोगों ने उसे कमतर दर्जा दिया, जिन्हें उसका सैक्युलर और बराबरी के रैंक में स्वागत करना चाहिए था, उसे बुरी तरह याद दिलाया गया कि उस पर कभी भरोसा नहीं किया जाएगा तो दुश्मनी और नफरत को पनपने के लिए जमीन तैयार हो गई। मोदी-शाह की जोड़ी का मजबूत गवर्नेंस मॉड्यूल जम्मू-कश्मीर में अपने तख्तापलट की शेखी बघारता रहा। राज्य में और ज्यादा सैनिक और पैरा-मिलिट्री भेजी गई, इस उम्मीद में कि बॉर्डर पार से आतंकवाद और कश्मीरियों के बीच अलगाववादी तत्व बेअसर हो जाएंगे। शुरू में ऐसा सरप्राइज फैक्टर की वजह से हुआ। 

राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी ने इस मुश्किल और हमेशा रहने वाली हिंदू-मुस्लिम समस्या को बहुत सोच-समझकर और बारीकी से सुलझाया था। उन्होंने पूर्व रॉ चीफ  ए.एस. दुलत पर भरोसा किया, जिन्होंने फारूख अब्दुल्ला के साथ पक्की दोस्ती की थी। अब्दुल्ला परिवार ही काफी हद तक कश्मीरी मुसलमानों के भारत के साथ अपने मुस्लिम-बहुल पड़ोसी पाकिस्तान के साथ इलाके के झगड़े में साथ देने के लिए जिम्मेदार रहा है। लेकिन मौजूदा भाजपा सरकार कुछ और ही सोचती थी। उसने कश्मीरी मुसलमानों को दबाने के लिए आक्रामकता का इस्तेमाल करने का फैसला किया और अपने ही वोटरों को यह साबित करने का फैसला किया कि वह कांग्रेस और यहां तक कि वाजपेयी की भाजपा सरकार के उलट एक मजबूत और ताकतवर सरकार है। ऐसा तरीका शायद ही कभी काम करता है। अगर वहां के लोग भाईचारे की उम्मीद को पसंद नहीं करते हैं तो भारतीय सरकार या कोई भी राज्य हथियारों के बल पर राज नहीं कर सकता। ऐसी जगहों पर आतंकवाद पनपता है। 

लाल किले में हुए धमाके के कुछ मुख्य साजिशकर्ता साऊथ कश्मीर के पहलगाम से हैं, जहां पहले से बदनाम आई.एस.आई. के प्लान किए गए आतंकी हमले की खबर आई थी। ‘ऑप्रेशन सिंदूर’ हमारा कामयाब जवाब था। हमारी एयर फोर्स और सपोर्टिंग ग्राऊंड फोर्स ने हमारे पड़ोसी के इलाके में आतंकियों के कई ठिकानों को खत्म करके अपना काम ठीक से किया। बदकिस्मती से, हमारे प्राइम मिनिस्टर अपना जोश रोक नहीं पाए और खुलेआम धमकी दी कि अगर हमारे पड़ोसी ने कभी बॉर्डर पार अपने आतंकी शागिर्दों को भेजने की हिम्मत की तो वे ‘ऑप्रेशन सिंदूर’ दोहराएंगे। न तो लडऩे वाले पड़ोसी और न ही दुनिया की बड़ी ताकतें इंडियन सब-कॉन्टिनैंट में कभी न खत्म होने वाली दुश्मनी के नतीजों को मान पाएंगी।

10 नवंबर को लाल किले के बाहर दिल्ली में हुए धमाके के बाद, यू.एस. सैक्रेटरी ऑफ  स्टेट मार्को रुबियो ने शायद बिना कोई कीमती समय बर्बाद किए दिल्ली में अपने समकक्ष से बात की। उन्होंने अगले ही दिन एक बयान जारी कर भारत के ‘सोचे-समझे जवाब’ और देश के अंदर आतंकी मॉड्यूल की पहचान करने में हमारी कामयाबी की तारीफ की। उन्होंने देश के कानून के हिसाब से आतंकवादियों के खिलाफ  सख्त कार्रवाई के लिए अपने देश का सपोर्ट जताया। उनके बयान की लाइनों के बीच यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक और ‘ऑप्रेशन सिंदूर’ के खिलाफ  भी सलाह दी। 

जो मॉड्यूल मिला है, उसने पूरे भारत में और भी कई हमलों की प्लानिंग की थी। इसके जाल हरियाणा और अल-फलाह यूनिवर्सिटी से बहुत आगे तक फैले हुए थे, जहां यह पनप रहा था। कम से कम एक बड़ा काम तो अभी हो गया है क्योंकि 8 छोटे मॉड्यूल को खत्म कर दिया गया है लेकिन आने वाले समय में भी लड़ाई जारी रहेगी। भारत के दो बड़े समुदायों के बीच अविश्वास और गलतफहमी तब से है जब से इस्लामिक सेनाएं हिंदू कुश के रास्ते सब-कॉन्टिनैंट में आई हैं और मैं कह सकता हूं कि यह दुश्मनी इतनी जल्दी खत्म नहीं होगी।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
 

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