Edited By ,Updated: 21 Jan, 2024 05:07 AM
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय पुलिस को आधुनिक और विश्वस्तरीय बनाने का आह्वान किया है। हाल ही में जयपुर में आयोजित देश भर के पुलिस महानिदेशकों और महानिरीक्षकों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि पुलिस को डंडे की जगह डाटा के...
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय पुलिस को आधुनिक और विश्वस्तरीय बनाने का आह्वान किया है। हाल ही में जयपुर में आयोजित देश भर के पुलिस महानिदेशकों और महानिरीक्षकों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि पुलिस को डंडे की जगह डाटा के साथ काम करना चाहिए। गौरतलब है कि इस दौर में लगातार साइबर अपराध बढ़ रहे हैं और अपराधी ज्यादा से ज्यादा डिजिटल तकनीक का सहारा ले रहे हैं।
यही कारण है कि पुलिस तंत्र में भी डिजिटल संसाधन बढ़ाए जा रहे हैं। इसलिए बदलते माहौल में पुलिस की तकनीकी दक्षता बढ़ाए जाने की जरूरत बढ़ गई है। दरअसल पुलिस की कार्य प्रणाली पर लगातार सवाल उठते रहते हैं। कभी पुलिस सत्ता के हित में काम करती है तो कभी पीड़ितों की एफ.आई.आर. तक नहीं लिखी जाती है। इससे पहले भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पुलिस बल को और अधिक संवेदनशील और जिम्मेदार बनाने की जरूरत पर बल दिया था।
गौरतलब है काफी समय से पुलिस बल में सुधार की जरूरत महसूस की जा रही है। इस दिशा में कई स्तरों पर काम भी हो रहा है लेकिन अभी तक नतीजा ढाक के तीन पात ही हैं। यही कारण है कि एक तरफ आन्तरिक सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं तो दूसरी तरफ जनता के बीच पुलिस की छवि भी लगातार खराब होती जा रही है। यह शर्मनाक है कि कई मामलों में पुलिस अमानवीयता की हद पार कर देती है। इस दौर में सबसे बड़ा सवाल यह है कि पुलिस कब तक अमानवीय बनी रहेगी ? आम धारणा यह है जब भी पुलिस का कोई अधिकारी किसी मामले की विवेचना करता है तो वह रिश्वत लेता है। इसमें कुछ अपवाद हो सकते हैं लेकिन धारणा यह है कि ज्यादातर मामलों में ऐसा होता है।
यह कटु सत्य है कि एक तरफ हमारे देश की पुलिस पर काम का अत्यधिक बोझ है तो दूसरी तरफ पुलिस की कार्य प्रणाली आम आदमी को कोई राहत नहीं दे पाती है। इसका सीधा प्रभाव कानून व्यवस्था पर पड़ता है। गौरतलब है कि समय-समय पर पुलिस की कार्य प्रणाली पर सवाल उठते रहे हैं। बार-बार ऐसी अनेक घटनाएं प्रकाश में आती रहती हैं, जो यह सिद्ध करती हैं कि हमारे देश की पुलिस में धैर्य और विवेक जैसे मानवीय मूल्यों की भारी कमी है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि पुलिस अनेक तौर-तरीकों से समाज में अनावश्यक डर पैदा करने की कोशिश करती है। सवाल यह है कि हमारे देश में पुलिस की भूमिका एक रक्षक की है या फिर भक्षक की? इस माहौल में यह जरूरी हो गया है कि सरकार पुलिस बल को सुधारने की तीव्रता से पहल करे। पुलिस बल के सुधार की प्रक्रिया में जहां एक ओर हमें पुलिस पर काम का बोझ कम करने पर ध्यान देना होगा वहीं दूसरी ओर पुलिस के व्यवहार को सुधारने पर भी काम करना होगा। तभी पुलिस बल में सुधार का असली उद्देश्य पूर्ण हो पाएगा। पुलिस का काम कानून और व्यवस्था के तंत्र को सुधारना है न कि उसे बिगाडऩा। पुलिस के संदिग्ध क्रियाकलापों से न केवल कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ती है बल्कि जनता के बीच उसकी छवि भी धूमिल होती है। यह सुनिश्चित करना पुलिस का कत्र्तव्य है कि समाज में अनावश्यक डर भी पैदा न हो और कानून-व्यवस्था की स्थिति भी स्थिर बनी रहे।
अगर पुलिस भी गुंडों की तरह व्यवहार करने लगेगी तो उसमें और गुंडों में क्या फर्क रह जाएगा? यह विडम्बना ही है कि कुछ राज्यों में पुलिस मानवाधिकारों की रक्षा तो कर ही नहीं पा रही है बल्कि एक कदम आगे बढ़कर जनता से जानवरों जैसा बर्ताव कर रही है। ऐेसा नहीं है कि पुलिस सराहनीय कार्य नहीं करती है। निश्चित रूप से पुलिस विपरीत परिस्थितियों में काम करती है। पुलिस के इस हौसले की तारीफ करनी होगी। वह बीच-बीच में कुछ अच्छे काम भी करती रहती है लेकिन पुलिस का पारम्परिक व्यवहार उसके अच्छे कामों पर भारी पड़ता है। अपने इसी व्यवहार के कारण ही पुलिस जनता के बीच विश्वसनीय छवि नहीं बनाई पाई है।
पुलिस प्राथमिक रूप से किसी भी समस्या का हल दुव्र्यवहार और समाज में डर बैठाकर करना चाहती हैं। रिपोर्ट में बताया गया था कि दुव्र्यवहार पुलिस की संस्थागत समस्या है और सभी सरकारें इस समस्या को दूर करने में नाकाम रही हैं। इस रिपोर्ट में मुख्य रूप से 4 बिंदुओं पर ध्यान देने की बात कही गई थी। ये चार बिन्दू हैं-1 अपराधों के विश्लेषण में पुलिस की असफलता 2 झूठे एवं अवैध आरोप लगाकर गिरफ्तारी 3 दुव्र्यवहार और यातना देने की आदत 4 फर्जी मुठभेड़।-रोहित कौशिक