Edited By shukdev,Updated: 21 Dec, 2018 12:19 AM
‘मेरे बेटे, तुम कहते थे कि जन्नत अम्मी-अब्बू के पैरों में है, इसलिए आ जाओ और फिर से हमारे साथ रहो।’ इस एक भावुक अपील का असर यह हुआ कि पिछले दिनों आतंकवाद की राह पर निकल चुके एक मुस्लिम नौजवान की घर वापसी हो सकी। परिवार की अपील के बाद युवक ने घर...
‘मेरे बेटे, तुम कहते थे कि जन्नत अम्मी-अब्बू के पैरों में है, इसलिए आ जाओ और फिर से हमारे साथ रहो।’ इस एक भावुक अपील का असर यह हुआ कि पिछले दिनों आतंकवाद की राह पर निकल चुके एक मुस्लिम नौजवान की घर वापसी हो सकी। परिवार की अपील के बाद युवक ने घर लौटने का फैसला लिया। एहतेशाम बिलाल नामक यह युवक दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा की शारदा यूनिवर्सिटी का छात्र था और खबरों के मुताबिक वह प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट आफ जम्मू-कश्मीर में शामिल हो गया था।
एहतेशाम पर आतंकवाद का यह जादू चढ़ा कैसे? ऐसा कौन-सा नशा है जो इन नौजवानों के सिर चढ़कर बोलता है? ये नौजवान आखिर हिंसा की राह को कैसे अपना लेते हैं जबकि उनके ऊपर अपने परिजनों को संभालने की बड़ी जिम्मेदारी होती है? दरअसल यह नशा उन पर सोशल मीडिया और अन्य ऐसे ही प्लेटफार्म्स पर परोसी जा रही कट्टरवादी सोच का नतीजा है, जिनके बहकावे में आम ही नहीं बल्कि पढ़ा-लिखा मुसलमान भी आ रहा है।
भावनाओं को भड़काया जाता है
मुसलमानों में शिक्षा का स्तर आज भी काफी कम है। जहां शिक्षा है भी तो वहां अक्सर मुस्लिम युवा अपनी सोच के दायरे को कट्टरवादी सोच से बाहर नहीं निकाल पा रहा क्योंकि मुस्लिम मोहल्लों में ऐसा माहौल बना दिया जाता है कि मुसलमान इस देश में दोयम दर्जे के नागरिक हैं। ऐसी भावनाओं को कट्टरवादी सोच के नेता और उलेमा हवा भी देते हैं। नतीजतन मुस्लिम युवा खुद को राष्ट्र की मुख्यधारा से काट कर बागी तेवर अख्तियार कर लेता है।
इस प्रकार की सोच को जब और भी खाद-पानी मिलने लगता है तो वह आतंकवाद की राह पकड़ लेता है। उसकी मानसिक दशा को समझते हुए कट्टरवादी संगठन उसे दंगों की पुरानी तस्वीरें और वीडियो दिखाकर और भी बरगलाते हैं। अशिक्षा के कारण मुस्लिम युवाओं में बेरोजगारी भी अधिक है। इस कारण भी युवाओं में हताशा व असंतोष है। ऐसे में इंटरनैट और साहित्य के माध्यम से मुस्लिम युवाओं को बरगलाना आसान हो जाता है। धर्म का इस्तेमाल ऐसे सुविधाजनक तर्क गढऩे के लिए किया जाने लगता है, जिससे आतंकवादियों के हिंसक कार्यों को जायज ठहराया जा सके।
इस बात को समझना होगा कि आतंकवाद का जन्म सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असंतोष से होता है तथा आतंकी संगठन इस असंतोष को हवा देने का काम करते हैं। आए दिन खबरों में आता रहता है कि फलां मुल्क में मुस्लिम महिला का हिजाब खींच लिया गया या उसकी चैकिंग की गई या फिर एयरपोर्ट पर मुस्लिम को रोक लिया गया। जब किसी मुस्लिम के साथ ऐसा किया जाता है तो यही कट्टरवादी संगठन ऐसे मामलों को तूल देकर मुसलमानों में जहर घोलने का काम करने में लग जाते हैं।
मुस्लिम नौजवानों के मन में समाज के प्रति घृणा पैदा हो जाती है। दिमागी रूप से मजबूत इंसान तो ऐसी परिस्थिति में संभल जाता है लेकिन मानसिक विकार से ग्रस्त लोग आतंकवाद के जाल में फंस जाते हैं। ऐसे में कट्टरवादी मुस्लिम युवकों का ब्रेनवाश कर उन्हें आतंकवादी बनाया जाता है और अपने ही देश को नुक्सान पहुंचाने के लिए तैयार किया जाता है।
आतंकवाद ने सबसे ज्यादा नुक्सान इस्लाम को पहुंचाया है लेकिन यही बात मुस्लिम समाज समझने को शायद तैयार नहीं है। जब मुस्लिम समाज ही यह बात समझ नहीं पा रहा है तो यह उम्मीद भी फिजूल है कि वह दूसरों को अपनी बात समझा पाने में सफल होगा। वास्तव में मुस्लिम देशों में बढ़ रही कट्टरता को मुस्लिम समाज रोक पाने में असमर्थ है जिस कारण आतंकवादी न केवल गैर-इस्लामिक देशों में, बल्कि इस्लामिक देशों में भी हमले करवा रहे हैं, जिसकी कीमत निर्दोष मुसलमान चुका रहे हैं।
मुसलमानों को आतंकवाद के खिलाफ बोलना होगा
मुस्लिम समाज जब तक आतंकवाद के खिलाफ सख्ती से खड़ा नहीं होगा तब तक उस पर आतंकवाद को पनाह देने का आरोप लगता रहेगा। मुसलमानों का आतंकवाद के खिलाफ बोलना ही मुसलमानों को बर्बादी से बचा सकता है। मुसलमानों को चाहिए कि वे अपने धर्मगुरुओं से कहें कि धर्म को दोबारा समझकर उसकी सही व्याख्या करें। इतना तो तय है कि इस्लाम सहित कोई भी धर्म यह नहीं सिखाता कि जिस मिट्टी का अन्न खाओ उसी को बदनाम करो। अपने देश से गद्दारी करने वाला धार्मिक हो ही नहीं सकता।
इसलिए मुस्लिम नौजवानों तक मुस्लिम धर्मगुरु यह संदेश पहुंचाएं कि न केवल अपने देश में आतंकवादी घटनाएं करना घातक है बल्कि दूसरे देश को निशाना बनाना भी गुनाह है क्योंकि इससे देश और धर्म की बदनामी होती है। वैसे भी बेकसूरों के कत्ल को इस्लाम ने हराम करार दिया है। कभी-कभार कोई एहतेशाम वापस अपने परिजनों के पास लौट आता है वर्ना अधिकतर को तो विभिन्न देशों की सुरक्षा एजैंसियों द्वारा मार दिया जाता है। इस बात को मुस्लिम नौजवानों को समझाना जरूरी हो गया है।
सभी समस्याओं की जड़ अशिक्षा
मुस्लिम समाज में आज भी विभिन्न तरह की समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं। इन समस्याओं की जड़ अशिक्षा है। देश के विकास में मुसलमानों का भी उतना ही योगदान है, जितना अन्य का। अशिक्षा व बेरोजगारी के कारण कुछ युवा भटकाव की स्थिति में जरूर आ जाते हैं। कई युवा अशिक्षा व बेरोजगारी में यूं ही समय काटते हैं, जबकि मुस्लिम युवा अगर वही समय शिक्षा ग्रहण करने तथा सामाजिक जागरूकता में लगाएं तो मुस्लिम समाज में भी जल्द ही खुशहाली आ सकती है। मुस्लिम समाज को इस बात को समझना होगा कि केवल शिक्षा के माध्यम से ही जीवन स्तर को ऊंचा उठाया जा सकता है। अब समय आ गया है कि मुस्लिम युवा अपनी जड़ता को दूर करने के लिए स्वयं आगे आएं।
अगर आतंकवाद को ही धर्म मान लिया गया हो तो ध्यान रहे उसे अपनाने वाला मुसलमान तो कतई नहीं हो सकता और फिर सैन्य बलों द्वारा उसके खिलाफ की गई कार्रवाई किसी मुसलमान के खिलाफ नहीं, बल्कि आतंकवादी के खिलाफ ही मानी जाएगी। इस सत्य को समझना अब बेहद जरूरी हो गया है।
सैयद सलमान (‘सामना’ से साभार)