विचलित करने वाली है विभाजन की व्यथा

Edited By ,Updated: 14 Aug, 2022 04:58 AM

the agony of partition is disturbing

भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं। भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिली। हर साल 15 अगस्त को देशवासी स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं, किसी भी राष्ट्र के लिए यह एक खुशी और गर्व

भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं। भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिली। हर साल 15 अगस्त को देशवासी स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं, किसी भी राष्ट्र के लिए यह एक खुशी और गर्व का अवसर होता है। लेकिन, भारत को स्वतंत्रता की मिठास के साथ-साथ विभाजन का आघात भी सहना पड़ा। नए स्वतंत्र भारतीय राष्ट्र का जन्म विभाजन के हिंसक दर्द के साथ हुआ, जिसने लाखों भारतीयों पर पीड़ा के स्थायी निशान छोड़े। स्वतंत्रता मिलने से ठीक एक दिन पहले जो देश को एक दंश मिला, उसे पहली बार किसी सरकार ने विभाजन की विभीषिका को आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय त्रासदी की मान्यता देने का निर्णय लिया है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत वर्ष घोषणा की थी कि प्रतिवर्ष 14 अगस्त विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाएगा। यह विचलित  करने वाली घटना थी, ऐसी भीषण त्रासदी थी, जिसमें करीब 10 लाख लोग मारे गए और डेढ़ करोड़ लोगों का पलायन हुआ। उसे भारतीय स्मृति पटल से या तो मिटाने का प्रयास किया गया या फिर उसके प्रति जानबूझकर उदासीनता बरती गई। इस त्रासदी के घाव इतने गहरे हैं कि आज भी देश के बहुत बड़ेे हिस्से, खासकर पंजाब और बंगाल में बुजुर्ग लोग 15 अगस्त को सिर्फ विभाजन के ही रूप में याद करते हैं। 

यह राजनीतिक निर्बलता का ही परिचायक है, जो त्रासदी मानव इतिहास में सबसे बड़े पलायन की वजह बनी। विश्व के अन्य देशों में छोटी-बड़ी त्रासदियों को सामूहिक चेतना में जीवित रखने के हरसंभव प्रयास होते रहते हैं। इसके लिए स्मृति दिवस निर्धारित किए हुए हैं। इन प्रयोजनों का आशय विभीषिका की क्रूरता में दिवंगत हुई आत्माओं को श्रद्धांजलि देने के साथ ही उन राजनीतिक शक्तियों एवं वैचारिक प्रेरणाओं के प्रति सजगता बनाए रखना भी होता है जो समाज के लिए पुन: खतरा बन सकती है। 

वर्ष 1947 में भारत का विभाजन भी कोई अनायास हुई घटना नहीं थी। इसके बावजूद विभाजन की विभीषिका की सरकारी उपेक्षा तुष्टीकरण के कारण अलगाववाद से मुंह मोडऩे की कोशिश थी। 75 वर्ष पुराने निर्णय के लिए आज की पीढ़ी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता परंतु इसे भी झुठलाया नहीं जा सकता कि अलगाववाद और चरमपंथ आज भी कई क्षेत्रों में उफान  पर है। चाहे वह कश्मीर से ङ्क्षहदुओं का पलायन हो या नागरिकता संशोधन कानून जैसे मानवीय कदम का ङ्क्षहसक विरोध, मजहबी उन्माद आज भी एक सच्चाई है। 

यह विभाजन की विभीषिका पर  लगातार बनी रही उदासीनता का ही परिणाम है कि वंदे मातरम का विरोध और मजहबी आधार पर आरक्षण जैसी मांगें स्वतंत्रता के दशक बाद भी मुखर हैं जो उस समय विभाजन का कारण बनी थी। राष्ट्र जीवन में सिर्फ हिंदू प्रतीकों का ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का अपमान भी अब आम हो चला है। 

विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मात्र घटनाओं को याद करने का अवसर नहीं है। इससे वे ङ्क्षहसक और असहिष्णु विचारधारा भी कठघरे में खड़ी होती हैं जो इन त्रासदियों का कारण बनती हैं। विभीषिकाओं की स्मृति हमें निरंतर याद दिलाती है कि कैसे देश विरोधी भावनाओं को भड़काकर राष्ट्र को झकझोर सकती हैं। ऐसे अभिप्राय: जनमानस को पूछने के लिए प्रेरित करते हैं कि क्या विभाजन जैसी विभीषिका से देश को पर्याप्त सबक मिले या नहीं। स्मृति दिवस की घोषणा कर प्रधानमंत्री ने जताया है कि देश अपनी सबसे क्रूर त्रासदी में मारे गए लोगों के प्रति संवेदनशील है और साथ ही ऐसी दुखद घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कटिबद्ध भी। 

राष्ट्र के विभाजन के कारण अपनी जान गंवाने वाले और अपनी जड़ों से विस्थापित होने वाले सभी लोगों को उचित श्रद्धांजलि के रूप में सरकार ने हर साल 14 अगस्त को उनके बलिदान को याद करने के दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है। इस तरह के दिवस की घोषणा से देशवासियों की  वर्तमान और आने वाली पीढिय़ों को विभाजन के दौरान लोगों द्वारा झेले गए दर्द और पीड़ा की याद आएगी। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा था ‘‘देश के बंटवारे के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता। नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहनों और भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और अपनी जान तक गंवानी पड़ी। उन लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया है। यह दिन हमें भेदभाव, वैमनस्य और दुर्भावना के जहर को खत्म करने के लिए न केवल प्रेरित करेगा, बल्कि इससे एकता, सामाजिक सद्वभाव और मानवीय संवेदनाएं भी मजबूत होंगी। 

विभाजन मानव इतिहास में सबसे बड़े विस्थापनों में से एक है जिससे लाखों परिवारों को अपने पैतृक गांवों एवं शहरों को छोडऩा पड़ा और शरणार्थी के रूप में एक नया जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ा। लेकिन, देश के विभाजन के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। अपनी आजादी का जश्न मनाते हुए एक कृतज्ञ राष्ट्र, मातृभूमि  के उन बेटे-बेटियों को भी नमन करता है, जिन्हें ङ्क्षहसा के उन्माद में अपने प्राणों की आहूति देनी पड़ी। 

15 अगस्त 1947 की सुबह ट्रेनों, घोड़े-खच्चर और पैदल ही लोग अपनी मातृभूमि से विस्थापित होकर एक-दूसरे के दुश्मन बन चुके थे। अपने पैतृक घरों को छोडऩे की पीड़ा, वह रास्ते में परिजनों का खो जाना या सम्प्रदाय की आग में जल जाना के बीच लाखों लोग आश्रय ढूंढ रहे थे। बंटवारे के दौरान भड़के दंगे और ङ्क्षहसा में लाखों लोगों की जान चली गई। इस विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर सभी बलिदानियों को नमन। श्रद्धेय भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी की इन दो पंक्तियों को आत्मसात करें : उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें। जो पाया उसमेंं खो न जाएं, जो खोया उसका ध्यान करें॥-तरुण चुघ(भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री)

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