सर्वाइकल कैंसर के लिए लड़ी जा रही लड़ाई

Edited By ,Updated: 20 Feb, 2024 05:42 AM

the battle being fought for cervical cancer

कैंसर एक बार फिर राष्ट्रीय खबरों में है। इस बार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर चल रही फर्जी खबरों के कारण सर्वाइकल कैंसर के कारण भारतीय अभिनेत्री पूनम पांडे की असामयिक मृत्यु का दावा किया गया था।

कैंसर एक बार फिर राष्ट्रीय खबरों में है। इस बार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर चल रही फर्जी खबरों के कारण सर्वाइकल कैंसर के कारण भारतीय अभिनेत्री पूनम पांडे की असामयिक मृत्यु का दावा किया गया था। इस सप्ताह की शुरुआत में, 2024-2025 के अंतरिम बजट भाषण के दौरान, वित्त मंत्री ने 9 से 14 वर्ष की आयु की लड़कियों के लिए सर्वाइकल कैंसर के टीकाकरण की वकालत की थी।

जहां इस खतरनाक बीमारी के कारणों पर स्वागतयोग्य विश्लेषण है, वहीं इस निरंतर सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे को खत्म करने के लिए भारत की आगे की राह के संबंध में हो रही व्यापक सार्वजनिक बहस की बारीकियों को समझना भी जरूरी है। विश्व स्तर पर, सर्वाइकल कैंसर चौथा सबसे व्यापक रूप से रिपोर्ट किया जाने वाला कैंसर है, जो सभी महिला कैंसरों में से 10 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है। ग्लोबोकैन 2022 के आंकड़ों के अनुसार, गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर की मृत्यु दर 9 है और दुनिया भर में 3,48,186 मौतें होती हैं।

हाल के अध्ययनों से पता चला है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एल.एम.आई.सी.) में सर्वाइकल कैंसर की घटना और मृत्यु दर अधिक है। दुनिया भर में उपरोक्त मौतों में से 90 प्रतिशत मौतें एल.एम.आई.सी. में होती हैं। एच.पी.वी. सूचना केंद्र की नवीनतम एच.पी.वी. और संबंधित कैंसर रिपोर्ट 2023 के अनुसार, भारत में, लगभग 5 प्रतिशत (यानी, 2,56,114) के साथ सर्वाइकल कैंसर 15 से 44 वर्ष की भारतीय महिलाओं में दूसरा सबसे आम कैंसर है। भारतीय महिलाएं किसी भी समय ह्यूमन पेपिलोमावायरस  (एच.पी.वी.) से पीड़ित रहती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के अनुसार, सर्वाइकल कैंसर विशेष रूप से नहीं बल्कि एच.पी.वी. के साथ लगातार संक्रमण के कारण होता है, जिससे सर्वाइकल प्रीकैंसर घाव हो जाते हैं, जिनका अगर इलाज नहीं किया जाता है, तो 95 प्रतिशत सर्वाइकल कैंसर का कारण बनते हैं। सर्वाइकल कैंसर के कुछ योगदानकारी जोखिम कारक खराब जननांग स्वच्छता, एकाधिक यौन सांझेदारों के परिणामस्वरूप एच.पी.वी. के संपर्क में वृद्धि आदि हैं।

कैंसर के चरण के आधार पर लक्षण अत्यधिक सफेद स्राव, मासिक धर्म के बीच रक्तस्राव, संभोग के दौरान रक्तस्राव, रजोनिवृत्ति के बाद रक्तस्राव, पेट में पुराना दर्द, पीठ के निचले हिस्से में दर्द आदि हो सकते हैं। विशेष रूप से, सर्वाइकल कैंसर को रोगनिरोधी एच.पी.वी. टीकाकरण, समय पर जांच और वायरस के उपचार के लिए त्वरित स्वास्थ्य देखभाल व्यवहार के माध्यम से आर्थिक और प्रभावी ढंग से रोका जा सकता है। फिर भी, सर्वाइकल कैंसर से लडऩे में बाधाएं बनी हुई हैं।

लागत-संबंधी ङ्क्षचताएं एच.पी.वी. वैक्सीन को अधिकांश भारतीयों के लिए नहीं  तो कई लोगों के लिए अप्रभावी बना देती हैं। यहां तक कि घरेलू स्तर पर बड़ी फार्मा कम्पनियों द्वारा विकसित वैक्सीन के लोकप्रिय ब्रांडों की भी निजी तौर पर खरीद पर प्रति खुराक 2,000-4,000 रुपए तक की कीमत हो सकती है। इसके अलावा वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर पर कोई भी व्यापक सर्वाइकल कैंसर कार्यक्रम या नीति नहीं है जिसके लिए बड़ी  फार्मा कम्पनियों को एच.पी.वी. टीकों की अनुकूल और रियायती दरों पर आपूर्ति करने की आवश्यकता हो।

हालांकि, हाल ही में जनवरी 2023 में  दिलचस्प बात यह है कि ‘विश्व सर्वाइकल कैंसर जागरूकता’ माह के रूप में भी मनाया जाता है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने तमिलनाडु से लेकर हिमाचल प्रदेश तक 7 राज्य सरकारों को पत्र लिखकर इसे शुरू करने की तैयारी करने का अनुरोध किया और अपने-अपने राज्यों में 9 से 14 वर्ष की आयु की लड़कियों के लिए एच.पी.वी. वैक्सीन शुरू करने को कहा। इस प्रयास को व्यापक रूप से देश में नियमित सामूहिक टीकाकरण कार्यक्रमों में एच.पी.वी. टीकाकरण की चरणबद्ध शुरूआत के रूप में समझा जाता है।

यह विचार नया नहीं है. 2022 में, टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एन.टी.ए.जी.आई.) ने सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम में दो-खुराक आहार के रूप में स्वदेशी रूप से विकसित एच.पी.वी. वैक्सीन की शुरूआत का समर्थन किया था। सिक्किम राज्य में सफल एच.पी.वी. टीकाकरण रोलआऊट से भी सबक लिया जा सकता है। सिक्किम ने शुरूआत में 2014 में वैक्सीन पेश की थी लेकिन उस समय सामाजिक झिझक के कारण यह पहल विफल हो गई थी। -डॉ. एस. दखार और सुशांत खलखो (साभार स्टेट्समैन)

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