राज्यपाल पद पर जजों की नियुक्ति से प्रभावित होगी अदालत की गरिमा

Edited By ,Updated: 24 Feb, 2023 05:01 AM

the dignity of the court will be affected by the appointment of judges

भारतीय जनता पार्टी भ्रष्टाचार और परिवारवाद के मुद्दे पर कांग्रेस और अन्य दलों की तीखी आलोचना करती आई है।

भारतीय जनता पार्टी भ्रष्टाचार और परिवारवाद के मुद्दे पर कांग्रेस और अन्य दलों की तीखी आलोचना करती आई है। इस आलोचना का तात्पर्य यह नहीं है कि भाजपा भी इन्हीं दलों की तरह आचरण करने लगे और दलील यह दे कि ऐसा तो उनके शासन में भी होता रहा है, इसलिए इसमें गलत क्या है। भाजपा की केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश अब्दुल नजीर को आंध्रप्रदेश का राज्यपाल नियुक्त करने के मामले में ऐसी ही दलील दे रही है।

भाजपा यह कहते हुए नजीर की नियुक्ति को जायज ठहरा रही है कि ऐसा तो कांग्रेस के शासन में भी होता रहा है। भाजपा यह भूल गई कि कांग्र्रेस ऐसे कारनामों के कारण सत्ता से बाहर है। भाजपा अपनी सुविधा से यह नहीं कर सकती कि जिसमें उसे नुक्सान नजर आए, उसमें कांग्रेस को कोसे और जहां छिपा हुआ एजैंडा लागू करना हो, वहां कांग्रेस का उदाहरण पेश कर दे। इस नकारात्मक उदाहरण से निश्चित तौर पर भाजपा और न्यायाधीशों की छवि पर उंगलियां उठेंगी।

न्यायाधीश नजीर का गलत उदाहरण पेश करके भाजपा अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकती। सवाल यह नहीं है कि नजीर ने सुप्रीमकोर्ट में जज रहते हुए अयोध्या और तीन तलाक के मुद्दे पर केंद्र सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया था, बड़ा सवाल न्यायपालिका की नैतिकता और शुचिता का है, जिसे बनाए रखने की मौजूदा दौर में कम से कम किसी राजनीतिक दल से तो अपेक्षा नहीं की जा सकती।

नजीर को राज्यपाल बनाया जाना एक तरह से सेवानिवृत्त होने के बाद न्यायाधीशों के पुनर्वास का रास्ता देना है। अर्थात सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टस के ऐसे जज जिन्होंने सरकारों के पक्ष में फैसला दिया होगा, वे सत्ताधारी दलों के कृपापात्र होंगे। जब भी सही मौका मिलेगा सरकार उनका पुनर्वास करके उन्हें अनुग्रहित कर देगी। यह परिपाटी न सिर्फ न्यायपालिका बल्कि देश की न्याय व्यवस्था के भी अनुकूल नहीं है। किसी लालच या आकर्षण के बूते दिए गए फैसलों में यह पता लगाना आसान नहीं होगा कि इसमें सच्चाई कितनी है।

यही माना जाएगा कि सरकार का साथ देने के फैसलों के एवज में किसी प्रशासनिक या संवैधानिक पद पर नियुक्त करके न्यायाधीश को उपकृत किया गया है। राजनीतिक दलों के नेताओं के दामन तो दागदार होते रहे हैं किन्तु यह बुराई यदि न्यायपालिका तक पहुंच गई तो न्याय पर आम लोगों का विश्वास कायम रखना मुश्किल हो जाएगा। सेवानिवृत्त होकर किसी पद को लेने पर न्यायाधीश के कार्यकाल के दौरान दिए गए फैसलों पर सवाल उठेंगे। जैसे कि जज नजीर की नियुक्ति को लेकर उठ रहे हैं।

देश में पहले ही न्याय पाने वालों की लंबी कतार लगी हुई है। न्याय पाने के लिए होने वाला खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है। न्यायपालिका जजों की कमी से जूझ रही है। जटिल न्यायिक प्रक्रिया से लोगों की हताशा बढ़ रही है। ऊपर से यदि यह प्रवृत्ति न्यायाधीशों के घर कर गई कि सेवानिवृत्ति के बाद सरकार उनका भला कर देगी, न्यायिक फैसलों से आम लोगों का न्यायपालिका पर बचा हुआ विश्वास भी दरकने लगेगा।

सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की ताजपोशी से इस बात को बल मिलता है कि केंद्र सरकार किसी न किसी रूप में न्यायपालिका को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है। ऐसा नहीं है कि सरकार के राज्यपाल के पद को भरने के लिए उपयुक्त पात्र नहीं हो, किन्तु न्यायाधीशों को इसमें शामिल करने से न्यायपालिका और सरकार की साख पर सवाल उठना लाजिमी है। भाजपा की दलील है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के चहेतों की नियुक्ति की जाती है, वहीं न्यायविदें का कहना है कि सरकार अपने कृपापात्रों को नियुक्त कराने के लिए कॉलेजियम व्यवस्था को मानने से इंकार कर रही है।

एक तरफ केंद्र सरकार अपनी पसंद के जजों की नियुक्ति कराने पर आमादा है, वहीं दूसरी तरफ सेवानिवृत्त जजों को मलाईदार पोस्ट देकर न्यायाधीशों को प्रभावित करने का प्रयास कर रही है। राज्यपाल पद कहने को संवैधानिक होता है, किन्तु यथार्थ में राज्यपाल के राजनीतिक विवादों में घिरे रहने के कई उदाहरण मौजूद हैं। गैर-भाजपा शासित राज्यों में राज्यपाल और राज्य सरकार में टकराव की घटनाएं होती रहती हैं। उप-राष्ट्रपति बने जगदीप धनखड़ इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं।

धनखड़ जब तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे तब तक मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से उनका टकराव बना रहा। तमिलनाडु सहित कई राज्यों में राज्यपालों के खिलाफ राजनीतिक धरना-प्रदर्शन तक हुए हैं। राज्यपालों पर भ्रष्टाचार सहित मनमानी करने के कई तरह के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सुप्रीम कोर्ट के जज रहे नजीर के आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनने पर ऐसी नौबत नहीं आएगी।

वैसे भी आंध्रप्रदेश में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार है। भाजपा और आंध्र सरकार के बीच कई बार टकराव हो चुका है। राज्यपाल से सरकार और विधानसभा से होने वाली टकराहट के कई मामले हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे हैं। जज के राज्यपाल बनने पर यदि ऐसी नौबत आती है, अदालतों को अजीबोगरीब हालात का सामना करना पड़ेगा। अदालतों को ऐसे मामलों की सुनवाई करनी पड़ेगी, जिसमें सुप्रीमकोर्ट का जज शामिल रहा हो।

यदि अदालत ने राज्यपाल के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी कर दी तो परोक्ष तौर पर न्यायपालिका पर भी होगी, क्यों कि राज्यपाल पूर्व में जज रह चुके हैं। विवाद की ऐसी स्थितियों से बेशक राजनीतिक दलों के स्वार्थ सधते हों किन्तु इससे न्यायपालिका के प्रति जनभावना में बनी आस्था खंडित हुए बगैर नहीं रहेगी। -योगेन्द्र योगी

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