देश के न्याय तंत्र को ‘खुद पर यकीन’ होना जरूरी

Edited By ,Updated: 20 Aug, 2020 04:43 AM

the justice of the country needs to be  confident in itself

सर्वोच्च न्यायालय आज अवमानना मामले में दोषी करार दिए वरिष्ठ वकील तथा कार्यकत्र्ता प्रशांत भूषण पर सुनवाई करेगा। यदि न्यायालय ने जोकि खुद ही अभियोक्ता तथा जज है, प्रशांत द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हुई तब यह प्रशांत को 6 महीने जेल की सजा...

सर्वोच्च न्यायालय आज अवमानना मामले में दोषी करार दिए वरिष्ठ वकील तथा कार्यकत्र्ता प्रशांत भूषण पर सुनवाई करेगा। यदि न्यायालय ने जोकि खुद ही अभियोक्ता तथा जज है, प्रशांत द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हुई तब यह प्रशांत को 6 महीने जेल की सजा सुना सकती है तथा उन पर जुर्माना भी लगा सकती है।

सर्वोच्च न्यायालय के पास उनके प्रैक्टिस करने के लाइसैंस को रद्द करने का अधिकार भी है। यह सब कुछ इसलिए है कि सर्वोच्च न्यायालय समय को सशक्त मानती है तथा लोकतंत्र के 3 स्तम्भों का मध्य स्तम्भ है जिसमें विधायिका तथा कार्य पालिका भी शामिल है। प्रशांत भूषण द्वारा लिखित 100 शब्दों के 2 ट्विटर पोस्ट को अपने लिए धमकाना समझ रही है। 

क्योंकि ट्विटर एप का इस्तेमाल देश की कुल आबादी का 2 प्रतिशत हिस्सा ही करता है तथा ज्यादातर इसके पाठक इस बात को लेकर अंधेरे में हैं कि सुप्रीमकोर्ट के जजों को आखिर किस बात ने परेशान कर दिया है। मुझे यहां पर प्रशांत भूषण के दोनों ट्वीट का फिर से उल्लेख करना होगा। स्पष्ट तौर पर सभी समाचार पत्र तथा मैगजीन अपने पाठकों को सूचित करने के लिए इन्हें फिर से उल्लेखित करने के लिए सोच रहे होंगे। 

ट्विटर एप केवल छोटी टिप्पणियों की अनुमति देता है तथा प्रशांत भूषण की पहली टिप्पणी 27 जून को आई थी जिसमें उन्होंने कहा था, ‘‘जब इतिहासकार भविष्य में पिछले 6 वर्षों की ओर देखेंगे तो पाएंगे कि किस तरह से लोकतंत्र को भारत में बिना किसी औपचारिक आपातकाल के ध्वस्त किया गया है। वे विशेष तौर पर इस विध्वंस में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका का उल्लेख करेंगे तथा खासकर पूर्व चार मुख्य न्यायाधीशों की भूमिका पर सवाल उठाएंगे।’’ 

इसके 2 दिन बाद 29 जून को प्रशांत भूषण ने भारत के मुख्य न्यायाधीश अरविंद बोबड़े का वह चित्र शेयर किया जिसमें वह हार्ले डेविडसन सुपरबाइक पर बैठे नजर आ रहे हैं। इस पर उन्होंने टिप्पणी की कि मुख्य न्यायाधीश उस बाइक पर बैठे हैं जो  भाजपा नेता से संबंध रखती है। वह बिना मास्क तथा हैल्मेट के नजर आ रहे हैं। वह भी ऐसे वक्त में जब सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों को न्याय पाने के लिए उनके मौलिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है क्योंकि इस समय सर्वोच्च न्यायालय लॉकडाऊन मोड पर है। सर्वोच्च न्यायालय को 20 दिन इस बात को समझने के लिए लग गए कि प्रशांत भूषण की उन टिप्पणियों से न्याय पालिका की छवि को बहुत बड़ी क्षति पहुंची है। 3 न्यायाधीशों अरुण मिश्रा, बी.आर. गवई तथा कृष्णा मुरारी ने 21 जुलाई को अदालत की अवमानना का प्रशांत को दोषी पाया। 

स्पष्ट तौर पर प्रशांत भूषण के पहले ट्वीट में उन विवादों के बारे में लिखा गया जिसमें पूर्व 4 मुख्य न्यायाधीश शामिल थे। इसमें विशेष मुख्य न्यायाधीश द्वारा गठित पीठों को लेकर विवाद शामिल थे। 4 जजों ने यहां तक कि अपने विचारों की आवाज उठाने के लिए एक प्रैसवार्ता की। यह अपने आप में पहली किस्म की प्रैस वार्ता थी जो सर्वोच्च न्यायालय के जजों द्वारा संबोधित की गई। प्रशांत भूषण द्वारा उल्लेख किए गए 4 मुख्य न्यायाधीशों का व्यवहार वास्तव में विवाद का मुद्दा बना। प्रैस वार्ता में शामिल जजों में से एक बाद में भारत के मुख्य न्यायाधीश बने तथा उनकी सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाया गया। इसके बाद कुछ विवाद तथा अटकलबाजी शुरू हुई। 

जहां तक दूसरे ट्वीट का सवाल है जिसके बारे में सर्वोच्च न्यायालय ने अदालत की अवमानना की प्रक्रिया चलाई, में कहा गया कि ट्वीट के पहले भाग में (वर्तमान मुख्य न्यायाधीश के बारे में ) मुख्य न्यायाधीश हैल्मेट तथा मास्क के बिना मोटरसाइकिल चला रहे हैं, यह एक निजी टिप्पणी थी। मगर जो सर्वोच्च न्यायालय के जजों को क्रोधित कर गया वह वाक्य का अंतिम हिस्सा था जिसमें कहा गया कि मुख्य न्यायाधीश उस समय बाइक को टैस्ट कर रहे हैं जब सर्वोच्च न्यायालय लोगों के मौलिक अधिकारों को नकार रहे हैं क्योंकि उस समय सर्वोच्च न्यायालय लॉकडाऊन मोड पर थी। तीन जजों का तर्क यह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने कभी भी लॉकडाऊन के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को नहीं नकारा। आभासी सुनवाई के माध्यम से कई मामलों को निपटाया गया।  

निश्चित तौर पर सर्वोच्च न्यायालय का कड़ा रुख आलोचनाओं से घिर गया है। यहां यह निॢदष्ट है कि कई देशों में अदालत की अवमानना को खत्म कर दिया गया है। तर्क यह दिया जा रहा है कि यदि सभी खंड जिसमें सरकार भी शामिल है, की आलोचना हो सकती है तब न्याय पालिका की क्यों नहीं? न्यायाधीश अपने आलोचकों के खिलाफ मामले ले रहे हैं और अभियोक्ता तथा जज के तौर पर कार्य करते हुए उनको सजा भी दे रहे हैं। उच्च कानूनविदों का कहना है कि न्याय पालिका के कंधे मजबूत होने चाहिएं ताकि वह ऐसी भटकी हुई आलोचनाओं को नकार दे, उसे खुद पर यकीन होना चाहिए।-विपिन पब्बी
 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!