विधानसभा चुनाव के परिणामों में निहित संदेश

Edited By Updated: 10 Oct, 2024 05:30 AM

the message contained in the results of the assembly elections

बीते 8 अक्तूबर को हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के आए नतीजे अपने भीतर 3 स्पष्ट संदेशों को समेटे हुए हैं। पहला तमाम शंकाओं के बावजूद भारत का लोकतंत्र अधिक मजबूत होकर उभरा है। दूसरा स्वयं-भू चुनाव विश्लेषकों का अनुमान वैज्ञानिक आधार पर कम,...

बीते 8 अक्तूबर को हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के आए नतीजे अपने भीतर 3 स्पष्ट संदेशों को समेटे हुए हैं। पहला तमाम शंकाओं के बावजूद भारत का लोकतंत्र अधिक मजबूत होकर उभरा है। दूसरा स्वयं-भू चुनाव विश्लेषकों का अनुमान वैज्ञानिक आधार पर कम, तीर-तुक्का ज्यादा दिखता है। तीसरा तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किए गए नरेटिव से एक सीमित सीमा तक ही राजनीतिक लाभ उठाया जा सकता है और मतदाता जमीन पर हुए काम के साथ सकारात्मक परिवर्तन को ही ठोस मापदंड मानते हैं। 

हरियाणा में 10 वर्षीय सत्ताविरोधी लहर के बीच पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा का लगातार तीसरी बार चुनाव जीतना ऐतिहासिक है। नवंबर 1966 में पंजाब से अलग होकर अस्तित्व में आए हरियाणा के विधानसभा चुनाव परिणामों को देखा जाए, तो यहां मतदाता ने किसी भी राजनीतिक दल को कभी लगातार 3 बार सत्ता नहीं सौंपी है। भाजपा को वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में 33 प्रतिशत से अधिक मतों के साथ 47 सीटें मिली थीं, जो 2019 के चुनाव में पहले से अधिक 36.5 प्रतिशत मत हासिल करने के बाद भी घटकर 40 सीट हो गई थी। तब भाजपा ने दुष्यंत चौटाला की नवगठित जननायक जनता पार्टी (जे.जे.पी.) के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। इस बार न केवल भाजपा का मत प्रतिशत बढ़कर लगभग 40 प्रतिशत पहुंच गया, बल्कि सीटें भी बढ़कर 48 हो गईं। सत्ताविरोधी लहर के बीच यह उसका हरियाणा में सर्र्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। पिछले 2 चुनावों की तुलना में कांग्रेस का प्रदर्शन भले ही सुधरा हो, परंतु वह भाजपा को परास्त करने के लिए नाकाफी रहा। इसका कारण भी स्पष्ट है। 

कांग्रेस की ओर से चुनाव अभियान में लगातार प्रचार किया गया था कि भाजपा ‘जवान-नौजवान-किसान-पहलवान’ के खिलाफ है। वर्ष 2020-21 से हुए तथाकथित कृषक आंदोलनों को आधार बनाकर कांग्रेस ने भाजपा को किसान-विरोधी बताने का प्रयास किया था। पहली बात उस आंदोलन में पंजाब के किसानों की भागीदारी अधिक मुखर थी, जिसे एकाएक भारतविरोधी शक्तियों ने अपने एजैंडे को पूरा करने का उपक्रम बना दिया था। सच तो यह है कि मोदी सरकार ने कृषि उत्थान के लिए कई योजनाएं चलाई हैं, जिसमें किसान सम्मान निधि योजना के तहत अब तक हरियाणा सहित देशभर के खेतिहरों को 3.45 लाख करोड़ रुपए जारी कर चुकी है। मोदी सरकार ‘किसान मानधन’, ‘किसान फसल बीमा’, ‘पी.एम. राष्ट्रीय कृषि विकास’ और ‘कृषि उन्नति’ रूपी कई योजनाएं धरातल पर बिना किसी भ्रष्टाचार के चला रही है। मोदी सरकार जहां 23 तरह की फसलों (अनाज-दाल-तिलहन सहित) पर न्यूनतम समर्थन (एम.एस.पी.) मूल्य दे रही है, तो हरियाणा में भाजपा ने 24 फसलों पर एम.एस.पी. देने का वायदा किया है। 

भारत की कुल जनसंख्या में हरियाणा की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत और भारतीय सेना में उसका योगदान 11 प्रतिशत है। इसलिए संकीर्ण चुनावी लाभ के लिए देश के सामरिक हित से जुड़ी ‘अग्निवीर योजना’ का भी कांग्रेस दानवीकरण कर रही है। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में हर हरियाणवी अग्निवीर को सरकारी नौकरी की गारंटी दी है। बीते 10 वर्षों में भारत ने रक्षा क्षेत्र में असीम प्रगति की है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ की पृष्ठभूमि में देश का रक्षा निर्यात वर्ष 2023-24 में 21,083 करोड़ रुपए पहुंच गया, जो 2014 में बमुश्किल 500-600 करोड़ रुपए हुआ करता था। स्पष्ट है कि अग्निवीर योजना पर कुप्रचार के साथ कांग्रेस की जातिवाद प्रेरित राजनीति, भारतीय उद्योग प्रतिभा के अपमान और पहलवानों के माध्यम से भारतीय खिलाडिय़ों के मनोबल पर प्रहार को हरियाणा के मतदाताओं ने अस्वीकार कर दिया। 

हरियाणा चुनाव के नतीजों को मानने से इंकार करना और चुनाव प्रक्रिया को संदेहास्पद बनाने का प्रयास, असल में कांग्रेस की कुंठा, अहंकार, आत्मघाती चरित्र, असहमति के प्रति असहिष्णुता और जन-सराकारों से कटाव को ही दर्शाता है। चुनाव से पहले और मतदान के तुरंत बाद हुए सर्वेक्षणों (‘एग्जिट पोल’ सहित) में दावा किया गया था कि हरियाणा में कांग्रेस एक दशक बाद प्रचंड बहुमत के साथ वापसी करेगी। लगभग सभी सर्वे ने कांग्रेस के 50 या उससे अधिक सीटें का अनुमान जताया था। परंतु इस बार भी ‘एग्जिट पोल’ इसी वर्ष हुए लोकसभा चुनाव के भांति औंधे मुंह गिर गए। तब सभी टी.वी. चुनावी सर्वेक्षणों ने भाजपा के अपने बलबूते लगातार तीसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने की भविष्यवाणी की थी। नतीजे क्या आए थे, सुधि पाठक इससे अवगत हैं। क्या लगातार विफलता के बाद ‘एग्जिट पोल’ बंद हो जाएंगे, यह कहना मुश्किल है। 

वर्ष 2019 में धारा 370-35ए हटने और केंद्र  शासित प्रदेश बनने के जम्मू-कश्मीर में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए। भाजपा को 29 सीटों पर संतोष करना पड़ा है। महबूबा मुफ्ती की पी.डी.पी. पिछले चुनाव की तुलना में 28 से सीधे 3 सीटों पर सिमट गई, तो निर्दलीय और छोटी पार्टियों ने 10 सीटों पर कब्जा कर लिया। भाजपा को इस बार भी जम्मू में ही जीत मिली है। उसने सभी सीटें, 43 सीट वाले जम्मू क्षेत्र में जीती हैं, जबकि उसे कश्मीर में पिछली बार की तरह एक भी सीट नहीं मिली। मतदान का बहिष्कार करना तो दूर, कानून व्यवस्था की स्थिति भी कहीं पैदा नहीं हुई। कश्मीरी मतदाताओं द्वारा बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना, भारतीय लोकतंत्र के प्रति उनके बढ़ते भरोसे और घाटी में अशांति-अविश्वास बढ़ाने के लिए तत्पर पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर पानी फेरने का सूचक है।-बलबीर पुंज 
 

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