थीं-डैम परियोजना पंजाब के सपनों का महल

Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Nov, 2017 01:41 AM

the palace of dreams of the than dam project of punjab

कभी सोचा नहीं था जिस रावी दरिया के किनारे अपने स्कूल के बच्चों के साथ पिकनिक मनाई थी, उसी स्थान पर एक बहुमुखी-परियोजना ‘थीं-डैम’ के नाम से निर्मित हो जाएगी। कभी कल्पना भी नहीं की थी- जिस भाटी गांव के अपने कार्यकत्र्ता की भाग कर चली गई पत्नी को...

कभी सोचा नहीं था जिस रावी दरिया के किनारे अपने स्कूल के बच्चों के साथ पिकनिक मनाई थी, उसी स्थान पर एक बहुमुखी-परियोजना ‘थीं-डैम’ के नाम से निर्मित हो जाएगी। 

कभी कल्पना भी नहीं की थी- जिस भाटी गांव के अपने कार्यकत्र्ता की भाग कर चली गई पत्नी को बसोहली से हम उसी भाटी गांव लाकर अपने कार्यकत्र्ता को सौंप देंगे- वहीं ‘थीं डैम’ बनाते-बनाते मरने वाले मजदूरों का ‘शहीदी स्मारक’ बन जाएगा, हैलीकाप्टर उतरने का मैदान बन जाएगा, उसी भाटी गांव में मजदूरों के लिए मकानों की उसारी हो जाएगी, आलीशान रैस्ट हाऊस खड़ा हो जाएगा, सैलानियों के लिए खूबसूरत आधुनिक झोंपडिय़ां बना दी जाएंगी। हां, मेरे देखते-देखते थीं-डैम बन गया। 1971 में जहां पिकनिक मनाई, वहीं पंजाब की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता ‘थीं डैम’ बन गया। 

रणजीत सागर झील में बसोहली (जम्मू-कश्मीर) को जाने वाली सड़क डूब जाएगी, प्लासी, भीनी-घराट जैसे गांव बसोहली तहसील के डूब जाएंगे, हिमाचल प्रदेश का मेल-चून का इलाका, सनारा, चम्बी, गुणी रणजीत-सागर झील में समाधि ले लेंगे, पंजाब की ‘फंगोता वैली’ उसके साथ लगते गांव पतरालमा, दरकुआ, चिब्बड़, उलयाल, बडूंआं दा खूह, गोदमा, कुमियाल, कटल, दरबान, चौंट, पट्टा, गुड़ा, नगरोटा, मोथमा, करुणा पलंगी, कान्गवां, चमरोड़, हरदोशरण, रल्ला सब के सब गांव रणजीत सागर झील का ग्रास बन जाएंगे?

फंगोता गांव की अमराइयों में मैं, डा. बलदेव प्रकाश, शांता कुमार, डा. मंगल सेन जलसे किया करते थे, दीवान सुनियारा और बेदी का घमासान हुआ करता था, अफसरों के बनावटी घर (जो महज सरकारी खजाने को चूना लगाने के लिए ही बनाए गए थे) अपनी आंखों के सामने बनते देखे। पतरालमा में नौकरी और मुआवजा मांगते नौजवानों पर लाठियां भांजते पुलिस कर्मचारी देखे और हां, कुछ शिवसैनिकों को आधी रात हमने खुद पिटाई कर घायल होते इसी ‘थीं-डैम’ के निर्माण दौरान देखा। 

सब कुछ कल की बात लगती है। ‘थीं-डैम’ बन भी गया और 4 मार्च, 2001 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने इसे देश को समर्पित भी कर दिया। इसी दौरान हम पंजाब के मंत्री भी बने और बनने के बाद रसातल में भी धकेल दिए गए। इसे समय की विडम्बना ही कहेंगे न? एक दिन सर्द ऋतु की सांध्य वेला की गोधूलि में फंगोता गांव में बेदी सरदार के सुनसान थड़े पर चुपचाप घंटों बैठे और गुजरे वक्त की यादों में दहाड़ें-मार-मार कर रोए। वाह थीं-डैम! तुम्हें इसी फंगोता वैली को निगल लेना था? यहां के वे परिवार आज भी रो रहे हैं जिनकी जमीनें, घर, ढोर, डंगर, आशियाना सब कुछ थीं-डैम की नजर हो गया पर उनके परिवारों को अभी भी नौकरी नहीं मिली। मुआवजा मिला, खा लिया और आज फिर वही फाकाकशी। 

अफसर कुछ थे खा गए सब कुछ, या कुछ चालाक लोग गरीब डैम-औस्टियों को लूट ले गए। कुछ ठेकेदार थे, डैम ने करोड़पति बना दिए। जो हल्के-फुल्के जमींदार थे वे भुखमरी के शिकार होने लगे। थीं-डैम कुछ को मालामाल तो कुछ को कंगाल कर गया। ‘थीं-डैम’ जिसका नामकरण शेरे-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह के नाम पर ‘रणजीत सागर डैम’ किया गया है पंजाब सरकार की एक बहुउद्देशीय परियोजना है। प्रारम्भ में इस बहुमुखी योजना पर 178 करोड़ खर्च होने का अनुमान था परन्तु 4 मार्च, 2001 को जब इसे देश को समर्पित किया गया तो इस पर 3800 करोड़ रुपए खर्च हो चुके थे। इसके निर्माण करने की योजना 1960 में पाकिस्तान और भारत के मध्य हुए एक समझौते के तहत बनी। 

1981 को थीं-डैम का निर्माण कार्य आरम्भ हुआ। इसके निर्माण के लिए 26,296 एकड़ जमीन को अधिगृहीत किया गया जिसमें पंजाब की 11,250 एकड़, जम्मू-कश्मीर की 13,820 एकड़ और हिमाचल प्रदेश की 1,226 एकड़ जमीन को कब्जे में लिया गया। इसमें पंजाब के 29, जम्मू-कश्मीर के 22 और हिमाचल प्रदेश के 12 गांव डैम से बनने वाली रणजीत सागर झील की गिरफ्त में आए। पंजाब सरकार ने आज तक 370 करोड़ रुपए उन किसानों को मुआवजे के रूप में बांटे हैं जिन किसानों की जमीन अधिगृहीत की गई थी। तय हुआ था कि जिन परिवारों की जमीन अधिगृहीत की गई है उन परिवारों के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी परन्तु अभी तक अनेकों परिवार नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। हुआ यह कि बाहर के लोग नौकरी ले गए और जिनकी जमीनें सरकार ने अधिगृहीत कीं, उनके कई परिवार नौकरी पाने से महरूम रह गए। 

ध्यान रहे अभी तक केवल रणजीत सागर डैम का काम पूरा हुआ है जबकि दूसरे चरण में ‘शाहपुर कंडी बैराज’ का काम कभी चल पड़ता है तो कभी एक दम बंद हो जाता है। सुना है अब तीनों प्रांतों की सरकारों में शाहपुर कंडी बैराज के काम को शुरू करने की सहमति बन गई है। देखें बंद पड़ी मशीनें कब काम पर लौटती हैं? रणजीत सागर डैम एक बहुुउद्देश्यीय परियोजना है जिसके दोनों चरण पूरे हो जाने पर जम्मू-कश्मीर और पंजाब की हजारों एकड़ जमीन पर सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध होंगी। तीनों राज्यों को बिजली की आपूर्ति होगी। हर साल आने वाली बाढ़ों को रोका जा सकेगा। नौका-विहार और मछली पालन को एक उद्योग के रूप में विकसित किया जाएगा। थीं-डैम के पूर्ण होने से टूरिज्म को भी प्रोत्साहन मिलेगा।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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