जनता ही बने जन योजनाओं की चौकीदार

Edited By ,Updated: 09 Jun, 2021 05:09 AM

the public became the watchman of the people s schemes

नीति, नीयत और नेतृत्व समाज के आर्थिक और राजनीतिक विकास का मूलमंत्र हैं लेकिन इसकी सफलता के लिए चौथा सबसे महत्वपूर्ण आयाम है, जन भागीदारी। इन्हीं चारों स्तंभों पर लोकतंत्र और लोकप्रशासन

नीति, नीयत और नेतृत्व समाज के आर्थिक और राजनीतिक विकास का मूलमंत्र हैं लेकिन इसकी सफलता के लिए चौथा सबसे महत्वपूर्ण आयाम है, जन भागीदारी। इन्हीं चारों स्तंभों पर लोकतंत्र और लोकप्रशासन (जिसे सरकारी कामकाज कहा जाता है) टिका है। लोक प्रशासन और लोकनीति में अगर जनता की उपस्थिति कम या कमजोर है तो लोकतंत्र की मूल भावना भी निरर्थक हो जाती है। सरकारी नीतियां और प्रशासन जनता से दूर रहने से भरोसा घटता है। 

बिना नागरिकों का भरोसा और सहयोग पाए कोई भी सरकार सफल नहीं हो सकती। शायद इसी का नतीजा है कि आज हमारी अधिकांश लोकनीतियां और विकास योजनाएं असफल हो जाती हैं। उनमें उ मीद से ज्यादा समय, ऊर्जा और पैसा बर्बाद होता है। ‘गुड गवर्नैंस’ को मार्गदर्शक तत्व माना गया। पूर्वी एशिया में भी जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया  के आलावा सभी देशों में लाल फीताशाही और भ्रष्टाचार ज्यादा है। चीन और उत्तर कोरिया में लोकनीति (योजना बनाने, लागू  करने और उस पर नजर रखने की) प्रक्रिया में नागरिकों की भूमिका दयनीय है। 

बात भारत की करें तो यहां भी लोकनीति अफसरशाही की मुट्ठी में नजरबंद है। जन प्रतिनिधियों की गुणवत्ता में आई गिरावट ने जनता के प्रशासन में भरोसे को तेजी से घटा दिया है। इसे रोकने का एक ही रास्ता है, जिस पर 1980 के बाद अधिकांश यूरोपीय देश चले। 1998 में यूरोप के ‘आरहुस’ में हुई कांफ्रैंस में नागरिकों को मुक्त रूप से सूचना उपलब्ध कराने और लोक नीति निर्माण में समयबद्ध, पर्याप्त और प्रभावी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए एक मार्गदॢशका प्रकाशित की गई थी। जन भागीदारी को नीति-निर्माण, क्रियान्वयन और निरीक्षण का सबसे सशक्त माध्यम माना गया है। 

भारत में लोकनीति : बड़े पैमाने पर चुनावों में वोट देने भर को ही प्रशासन में शामिल होना माना  गया है। लोकनीति के पूरी तरह से अफसरशाही के नियंत्रण और फाइलों में नजरबन्द होने से नागरिकों की भूमिका लगभग शून्य है। दरअसल इस पर जनता, जन प्रतिनिधि और अफसरशाही  ने कभी गंभीरता से विचार ही नहीं किया। इसके लिए किसे जि मेदार ठहराया जाए? जनता की उदासीनता, जन प्रतिनिधियों की ज्ञान के अभाव में बचने के भूमिका और अपने हाथ से शक्तियां जनता को न देने की अफसरशाही की जिद, तीनों ही बराबर जिम्मेदार हैं। 

क्या भारत जैसे बड़े देश में यह संभव है : सूचना और जनसंचार प्रणाली में क्रांतिकारी विकास होने का सीधा फायदा नीति निर्माण और विकास योजनाओं को बनाने में नागरिक सहभागिता के रूप में होना चाहिए। तकनीक के माध्यम से लोकनीति में सहभागिता, पारदॢशता, विश्वास के साथ ही शासक और नागरिकों के बीच परस्पर स मान बढ़ाया जा सकता है। 

स्थानीय, राज्य और केंद्र सरकार स्तर की सभी नीतियों के निर्माण, क्रियान्वयन  और निरीक्षण की प्रक्रिया में तकनीकी और गैर-सरकारी संगठनों की मदद से जनता को शामिल किया जा सकता है। लोकनीति निर्माण में नागरिकों के विचारों को महत्व देने से इस क्षेत्र  में सक्रिय विद्वानों और कार्यकत्र्ताओं में एक सकारात्मक प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। बिना खर्चे के अच्छा पॉलिसी रिसर्च आइडिया मिलेगा, आपदा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण कार्य में। 

लोकनीति में जमीनी हकीकत और जन आकांक्षाओं को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है। तभी विकास योजनाएं व्यावहारिक रूप से सही परिणाम दे पाएंगी, नहीं तो बंद कमरे में कुछ अधिकारियों के द्वारा बनाने और विधायिका में पास भर हो जाने से विकास नहीं हो सकता। भारतीय प्रशासन में ज्यादातर उच्च अधिकारी जिलों या प्रदेश के बाहर से होते हैं। नियुक्ति के बाद स्थानीय परिस्थितियों और जरूरतों को समझने में उन्हें काफी कीमती वक्त देना पड़ता है। इसलिए हमें ब्राजील या इटली या स्विट्जरलैंड की योजना और बजट बनाने के मॉडल से कुछ अच्छी बातें सीखनी चाहिएं। 

जिस तरह वहां स्थानीय स्तर पर बजट और विकास नागरिकों की  सक्रिय सहभागिता से बनता है, वैसे ही भारत में भी पंचायतों और नगरपालिकाओं को काम करना चाहिए। इससे सरकार के बजट का स्वरूप जनता की जरूरतों के अनुरूप रहेगा। लोकनीति की प्राथमिकता जनता बेहतर बता सकती है। योजना बनने के बाद, दूसरा चरण होता है उसे धरातल पर लाना, मतलब लागू करना। भारत में ज्यादातर प्रशासन प्रत्यक्ष और फाइल सिस्टम से चलता है। इसीलिए पास होने के बावजूद, क्रियान्वयन में काफी समय लग जाता है जैसे सड़क निर्माण योजनाएं, एक तरफ बनकर पूरी होने के साथ ही दूसरी तरफ मुरम्मत की जरूत पडऩे लगती थी। योजनाओं को लागू करने में जनता को सारी व्यवस्था से बाहर रखा जाता है। 

लोकनीति  निरीक्षण में जन भागीदारी : आसान शब्दों में जनता ही बने जन योजनाओं की चौकीदार। योजनाओं में जनभागीदारी का तीसरा स्वरूप है, निरीक्षण। प्लानिंग और इ पलीमैंटेशन के साथ ही,  जनता को निरीक्षण में शामिल होना आवश्यक है। अन्यथा कितनी भी बेहतर योजना बने, कितने भी अच्छे तरीके से लागू हो, पर जनता की नजर हटते ही, वह व्यवस्था चोरी, भ्रष्टाचार, दुरुपयोग का शिकार हो जाती है। असामाजिक तत्व और भ्रष्टाचारी लोग उसे कुछ दिनों में बर्बाद करके रख देते हैं।  जब स्थानीय नागरिक सरकारी और सार्वजनिक व्यवस्था के नुक्सान को अपने निजी लाभ और हानि से जोड़कर देखेंगे तो वे उसकी सुरक्षा भी ईमानदारी से करेंगे।-डॉ.रवि रमेशचंद्र

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