भारत के सच्चे रत्न थे चौ. चरण सिंह

Edited By ,Updated: 11 Feb, 2024 04:55 AM

the true gem of india was ch charan singh

चौधरी चरण सिंह को सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा 18वीं लोकसभा के चुनाव से ठीक पहले और भाजपा-रालौद गठबंधन की चर्चाओं के बीच किए जाने से इसके राजनीतिक निहितार्थ निकाले ही जाएंगे, पर वह आजाद भारत के इस सबसे बड़े किसान नेता और...

चौधरी चरण सिंह को सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा 18वीं लोकसभा के चुनाव से ठीक पहले और भाजपा-रालौद गठबंधन की चर्चाओं के बीच किए जाने से इसके राजनीतिक निहितार्थ निकाले ही जाएंगे, पर वह आजाद भारत के इस सबसे बड़े किसान नेता और गैर-कांग्रेसवाद के पुरोधा के साथ अन्याय होगा। वैसे सच यह है कि चरण सिंह के साथ न्याय जीवनकाल में भी नहीं किया गया। 

खासकर भारत का राष्ट्रीय मीडिया उन्हें ग्रामीण परिवेश वाला ‘जिद्दी जाट नेता’ कह कर कमतर आंकता रहा। बेशक अपने सिद्धांतों के प्रति वह अडिग थे, लेकिन उनकी सोच और व्यवहार बेहद उदार था। उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में ही प्रभावी जाट संख्या के बल पर वह राजनीतिक जनाधार खड़ा हो ही नहीं सकता, जिसके बल पर चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंच पाते। हां, उन्होंने खेती-किसानी से जुड़ी जातियों को साथ ला कर एक बड़ा राजनीतिक जनाधार अवश्य तैयार किया, जिसे कुछ लोगों ने अजगर (अहीर, जाट, गुर्जर, राजपूत) नाम दिया। बेशक उस सामाजिक-राजनीतिक गठबंधन में मुसलमान भी शामिल हुए और उत्तर भारत के कई राज्यों में वह विजयी समीकरण बन कर उभरा, पर उस सबके मूल में चरण सिंह की वैकल्पिक राजनीति की दूरगामी सोच काम कर रही थी। 

उस वैकल्पिक राजनीतिक सोच का पहला मुखर संकेत था कांग्रेस के 1959 के नागपुर अधिवेशन में प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के सहकारी खेती के प्रस्ताव का जोरदार विरोध। अकाट्य तर्कों के साथ किया गया वह विरोध दरअसल बड़ा राजनीतिक जोखिम भी था। वर्तमान राजनीति में यह कल्पना भी मुश्किल है कि कोई नेता देश-समाज के भविष्य की चिंता में अपना राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा दे। तब कांग्रेस में प्रधानमंत्री नेहरू की तूती बोलती थी। नेहरू से असहमति का अर्थ था, कांग्रेस में अपने राजनीतिक भविष्य पर पूर्ण विराम लगा लेना। नेहरू की जय-जयकार में ही अपना भविष्य देखने वाले कांग्रेसियों की करतल ध्वनि के बीच चरण सिंह ने कहा था: ये तालियां बताती हैं कि आप सब मेरे विचारों से सहमत हैं, परंतु आप में मेरी तरह खुले विचार रखने का साहस नहीं है। 

जाहिर है, अपने उस साहस की कीमत चरण सिंह को बाद में कांग्रेस से इस्तीफा देकर चुकानी पड़ी, पर वह उनकी राजनीतिक पारी का अंजाम नहीं, बल्कि ऐसा आगाज साबित हुआ, जिसने देश में बदलावकारी वैकल्पिक राजनीति की नींव रखी। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में चरण सिंह को लंबा कार्यकाल नहीं मिला, लेकिन उत्तर प्रदेश में उन्होंने जिन भूमि सुधारों की पहल की, उन्हीं से प्रेरित वाम मोर्चा पश्चिम बंगाल मेंसाढ़े 3 दशक तक शासन करने में सफल रहा। 

शासन व्यवस्था का हाल जानने के लिए भेस बदल कर सरकारी दफ्तरों में जाने और शिकायत मिलने पर चुनाव सभा के मंच से ही उम्मीदवार बदलने की घोषणा जैसीं बातें आज फिल्मी कथा-सी लग सकती हैं, पर यही चौधरी साहब की राजनीतिक शैली थी। कभी किसी अपने के भी गलत काम का बचाव नहीं किया तो किसी पराए के अच्छे काम की प्रशंसा करने में कभी कंजूसी नहीं की। ऐसे विराट व्यक्तित्व और कृतित्व वाले जन नेता की विरासत को उनके वारिस बढ़ाना तो दूर, संभाल तक नहीं पाए। 

चरण सिंह ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव नूरपुर से संघर्षपूर्ण राजनीतिक सफर शुरू कर देश की सत्ता हासिल की थी, पर अब उनकी विशाल विरासत मेरठ के आसपास तक सिमटती नजर आ रही है। बेशक इसके बहुत से कारण रहे होंगे। अजित सिंह के निधन के बाद से जयंत चौधरी ही चरण सिंह की राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं। उन्हें ऐसी प्रासंगिक विचारधारा और प्रतिबद्ध जनाधार के क्षरण पर चिंतन-मनन अवश्य करना चाहिए। ऐसा करना उनकी अपने दादा के प्रति ही नहीं, देश और समाज के प्रति भी जिम्मेदारी है।-राजकुमार सिंह
 

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!