नई शुरुआत की कोई उम्र नहीं

Edited By Updated: 14 Sep, 2025 06:10 AM

there is no age for a new beginning

पिछले दिनों बाजार में बहुत पुरानी मित्र से मुलाकात हुई। हम दोनों ने साथ-साथ नौकरियां शुरू की थीं। लेकिन विवाह के बाद उसने नौकरी छोड़ दी। कारण था, उसके पति की बाहर की नौकरी। अक्सर ही स्त्रियों के साथ ऐसा होता है। कुछ दिनों तक तो उससे सम्पर्क रहा, फिर...

पिछले दिनों बाजार में बहुत पुरानी मित्र से मुलाकात हुई। हम दोनों ने साथ-साथ नौकरियां शुरू की थीं। लेकिन विवाह के बाद उसने नौकरी छोड़ दी। कारण था, उसके पति की बाहर की नौकरी। अक्सर ही स्त्रियों के साथ ऐसा होता है। कुछ दिनों तक तो उससे सम्पर्क रहा, फिर वह भी खत्म हो गया। मोबाइल तो थे नहीं उन दिनों। खैर, इतने दिनों बाद मिलने पर अतीत की तमाम बातें याद आ गईं। फिर बच्चों के बारे में बात होने लगी। पता चला कि उसके दोनों बच्चे विदेश में रहते हैं। पति की मृत्यु हो चुकी है। तो अब यहां अकेली रहती है।

कहने लगी कि बच्चों के पास कभी-कभी जाती है, लेकिन रहना अपने देश में ही चाहती है। वहां मन नहीं लगता। फिर उसने बताया कि उसने अपना खाने-पीने का व्यवसाय शुरू किया है। क्योंकि बच्चे जब चले गए, फिर कुछ दिन बाद पति भी, तो समझ में नहीं आता था कि क्या करूं। खाना बनाना हमेशा पसंद रहा, लेकिन अकेली के लिए क्या बनाऊं, तो कई.-कई दिन तक रसोई में जाती ही नहीं थी। लगता था कि बस जीवन यहीं तक था, अब खत्म हुआ। एक दिन सोसाइटी की एक युवा लड़की ने कहा कि काश, उसे घर जैसा खाना खाने को मिलता। यहीं से जैसे कोई क्लू मिला। बस उसने सोसाइटी के लोगों के बहुत से लोगों के नम्बर लेकर एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया। फिर उसी में रोज बताने लगी कि कल क्या बना रही है। कोई चाहे तो आर्डर कर सकता है। खाने के दाम भी ऐसे रखे कि किसी को ज्यादा चुभे नहीं। शुरू में तो एक-दो ही आर्डर आए, अब इतना काम है कि सहायता के लिए दो और लोगों को रखना पड़ा है। 

उसकी बातें सुनकर अमरीका की पूर्व प्रथम महिला मिशेल ओबामा का कुछ दिन पहले का कथन याद आ गया। उन्होंने कहा कि जब से उनकी दोनों बेटियां घर के घोंसले को खाली करके गई हैं, तब से उनकी जिंदगी ठहर सी गई है। वह बहुत अकेलापन महसूस करती हैं। यह कहानी सिर्फ मिशेल ओबामा की ही नहीं, अधिकांश माता-पिता की है। वे माताएं, जो पढ़ी-लिखी हैं, लेकिन बच्चों की जिम्मेदारी उठाने के कारण कभी अपने करियर या अभिरुचियों के बारे में नहीं सोच पाईं। उन सबकी कहानी एक जैसी है। कई माताएं और बहुत से पिता भी इस अकेलेपन को झेल नहीं पाते। जीवन के प्रति आकर्षण जैसे खत्म सा हो जाता है। 

अब इस उम्र में क्या करें कि बच्चों की कमी महसूस न हो। क्योंकि बच्चे जिस उड़ान पर निकले हैं, उनका भविष्य भी वहीं है। उन्हें तो रोका नहीं जा सकता, न ही पुराने दिनों को वापस लाया जा सकता है। इसलिए जरूरी है कि किसी और काम में मन लगाया जाए। एक महिला के बारे में कुछ दिन पहले पढ़ा था कि उसने यू-ट्यूब पर देखकर पेंटिंग करना सीखा। आज उसकी एक प्रदर्शनी दिल्ली में और एक अमरीका में लग चुकी है। एक अन्य महिला ने ऐसी ही अनेक महिलाओं का ग्रुप बनाया है। वह लाइफ कोच बन गई है। स्त्रियों को बच्चों के चले जाने के बाद के अकेलेपन से निपटने के लिए तरह-तरह के तरीके बताती है।  इससे खूब आय भी होती है। एक और महिला ने भी अपनी ही जैसी स्त्रियों का एक ग्रुप बनाया है। ये सब तमाम मेलों में अपने-अपने बनाए खाने को लेकर जाती हैं और कमाई भी करती हैं। ये माह में एक बार कहीं घूमने भी जाती हैं। इस तरह समय भी कटता है और अकेलापन भी महसूस नहीं होता। 

एक पिता ने एक बार बताया था कि बेटे के बाहर पढऩे जाने के बाद, उसका घर आने का मन नहीं करता था। न किसी से मिलने-बात करने का। बस बेटे की पुरानी चीजों को देखकर, उसकी यादों में खोए रहकर, हर वक्त आंसू ही बहते रहते थे। दोनों पति-पत्नी एक-दूसरे को दिलासा देते-देते भी रोने लगते थे। फिर उन्होंने संगीत सीखना शुरू किया। अब दोनों नौकरी से लौटने के बाद कई-कई घंटे रियाज करते हैं। बेटे की यादें अब उतनी परेशान नहीं करतीं।

बच्चों के बिना घर का जो सूनापन काटने को दौड़ता था, अब वहां संगीत की मीठी धुनें गूंजती हैं। एक अन्य व्यक्ति, जो युवावस्था में बहुत अच्छा गोल्फ खेलता था, उसने फिर से खेलना शुरू किया है। बहुत से लोग अपने वर्षों पुराने शौक और हॉबीज को नए सिरे से जिंदा कर रहे हैं। वे कहते हैं कि जीवन को जीने का यह सबसे अच्छा समय है, जब बच्चे अपनी-अपनी दिशाओं में चले गए हैं तो हर समय रोने-बिसूरने से क्या फायदा। जो तब नहीं कर पाए, अगर अब कर सकते हैं, तो क्यों न आज से ही शुरू किया जाए। बात भी ठीक है। नई शुरुआत करने के लिए कोई भी उम्र बाधक नहीं होती। एक बार मशहूर अभिनेता अशोक कुमार ने बताया था कि उन्होंने छियासठ वर्ष की उम्र में पेंटिंग सीखी थी और बहुत अच्छा पेंट करने लगे थे। आज तो पैंतालीस-पचास साल की उम्र में स्त्रियां एवरैस्ट चढ़ रही हैं। रिटायरमैंट के बाद दुनिया घूमने जा रही हैं। उम्र उनकी राह में रोड़ा नहीं बन रही। कोई भी शुरुआत कहीं से और कभी भी की जा सकती है।-क्षमा शर्मा
 

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