शहर और ग्राम को बांटता यह ‘प्रदूषण’

Edited By ,Updated: 17 Oct, 2020 02:56 AM

this pollution divides the city and the village

दूसरों  से अच्छे की अपेक्षा करने से हमेेशा निराशा ही हाथ लगती है। लोग चाहते हैं कि शहर को हर कोई साफ रखे,कोई शोर न करे। पर हर कोई तो प्रदूषण फैला कर वातावरण को बर्बाद कर रहा है। समस्याएं बढ़ रही हैं। अच्छे की उम्मीद में  हमेशा निराशा ही मिलती है,ऐसे...

दूसरों  से अच्छे की अपेक्षा करने से हमेेशा निराशा ही हाथ लगती है। लोग चाहते हैं कि शहर को हर कोई साफ रखे,कोई शोर न करे। पर हर कोई तो प्रदूषण फैला कर वातावरण को बर्बाद कर रहा है। समस्याएं बढ़ रही हैं। अच्छे की उम्मीद में  हमेशा निराशा ही मिलती है,ऐसे में हमारे चतुर राजनेता बड़ी साफगोई से इसकी जिम्मेदारी जनता पर डाल देते हैं इसलिए जनता उन्हें पंसद नहीं करती। 

जल्द ही दिल्ली की हवाएं ठंडी होने पर स्मॉग से प्रदूषित शहर को राहत मिलेगी। इससे कोविड बढ़ेगा या कम होगा और इससे फेफड़ों पर असर पड़ेगा यह तो समय ही बताएगा। पर दिल्ली के फैशनपरस्त रईसजादे जो घर से 500 मीटर दूर बाजार जाने के लिए भी एस.यू.वी. में जाते हैं, आपको बताते हैं कि किसानों को यह पराली जलानी बंद कर देनी चाहिए जो उन्हें व उनके बच्चों का दम घोट रही है। उनके आवेगहीन तर्क को वाकई आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर आंकने की जरूरत है। 

सैंटर ऑफ साइंस एंड एनवायरनमैंट द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक 2016 में पराली का जलना रिकॉर्ड स्तर पर था और इसके बाद पराली जलाने की गतिविधियों में तेजी से गिरावट आई है। इस साल पंजाब में हरियाणा की तुलना में पराली जलाए जाने की घटनाएं और स्थान करीब 8 गुना अधिक हैं। साफ है कि पंजाब की तुलना में हरियाणा के किसानों ने पराली दहन के प्रति तेजी से अपना नजरिया बदला है जिससे पराली प्रदूषण में हरियाणा की ओर से कमी आई है। 

फैशनपरस्त रईसजादों की मानें तो पराली जलने की वजह से स्मॉग (दम घोंटू धुंआ) पैदा हो रहा है परंतु ऐसा नहीं है। यदि बहुत से किसान एक ही दिन एक साथ मिलकर पराली जलाने का फैसला करते हैं और उस दिन हवा का रुख भी दिल्ली की ओर हो तभी स्मॉग का कारण पराली दहन माना जाएगा। यदि रुक-रुक कर पराली कई हफ्तों तक जलाई जाती है तो यह स्मॉग फैलने का कारण कतई नहीं है। परंतु सबसे बड़ा सवाल यह है कि स्मॉग दिल्ली जैसे शहर में ही क्यों फैल रहा है? क्या ग्रामीण इलाकों में भी स्मॉग का स्तर दिल्ली के बराबर 2.5 पी.एम.आई. है जो वायु में जहरीला प्रदूषण फैला रहा है? 

यदि ग्रामीण इलाकों में प्रदूषण के आंकड़े सामने आते हैं तो किसानों को बताया जा सकता है, उन्हें जागरुक किया जा सकता है कि पराली का जलना उनके व उनके परिवार के सदस्यों की सेहत के लिए भी कितना खतरनाक है और वे इसे कम करने के लिए कोई उपाय करें। इसके बदले राज्य सरकारें किसानों पर जुर्माने और दंड और धमकी का दबाव बना पराली जलाने की रोकथाम करने में लगी हैं। नीति निर्माता किसान को बेवकूफ समझते हैं, वे मानते हैं कि उसे अपने बचाव की परवाह नहीं है और धमका डरा कर किसान का व्यवहार बदला जा सकता है। सरकारों के ये धमकी भरे रवैये से किसी के व्यवहार को नहीं बदला जा सकता खासकर उन लोगों का जिन्हें वे जानती नहीं हैं या वे लोग जो उन्हें पंसद नहीं करते। 

इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मैटैरियोलॉजी के वैज्ञानिक गुफरान बेग ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी(डी.पी.सी.सी.)और इंडियन मैटैरियोलॉजी डिपार्टमैंट (आई.एम.डी.) के साथ मिलकर 20 फरवरी से 14 अप्रैल के दौरान प्रदूषण के आंकड़ों के आधार पर सात प्रदूषण कारकों पी.एम. 10, पी.एम.2.5, एन.ओ.टू और एस.ओ. टू का बेस लैवल तैयार किया जिसकी रिपोर्ट 10 अक्तूबर को सार्वजनिक हुई है। रिपोर्ट में प्रदूषण के बेसलाइन  आंकड़े बताते हैं कि पराली जलाना ही इसका कारण नहीं है। बगैर पराली जले ही दिल्ली का बेसलाइन प्रदूषण पांच गुणा बढ़ गया। लेखक दिल्ली स्थित लोकनीति पर शोध करने वाले एक थिंक टैंक के सी.ई.ओ. हैं।-यतीश राजावत 

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