यह 200 पार तो 400 पार का मिटाएगा दर्द

Edited By Updated: 15 Nov, 2025 05:04 AM

this will remove the pain of 200 to 400 years

बिहार चुनाव के नतीजे केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा और जनता दल यूनाइटेड जद-(यू) के लिए उम्मीद से बढ़कर हैं। एग्जिट पोल जो जीत बता रहे थे उससे भी कहीं बढ़कर हैं। वह भी तब जब गृहमंत्री अमित शाह खुद इस गठबंधन के लिए अधिकतम 160 सीटों की जीत की संभावना बता...

बिहार चुनाव के नतीजे केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा और जनता दल यूनाइटेड जद-(यू) के लिए उम्मीद से बढ़कर हैं। एग्जिट पोल जो जीत बता रहे थे उससे भी कहीं बढ़कर हैं। वह भी तब जब गृहमंत्री अमित शाह खुद इस गठबंधन के लिए अधिकतम 160 सीटों की जीत की संभावना बता चुके थे। इस बार तो भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) 243 सदस्यीय विधानसभा में 200 सीटें पार कर गया है। यह 200 पार भाजपा के लिए पिछले लोकसभा चुनाव के नारे अब की बार 400 पार के नारे को पूरा न हो पाने की तकलीफ  को कम करता है। 

बिहार में भाजपा और राजग गठबंधन की जीत से कई संदेश निकले हैं। माना जा रहा है कि एन.डी.ए. की जीत में महिलाओं की बड़ी भूमिका रही ही है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने वोट भी खूब किया। चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों की मानें तो पुरुषों की तुलना में मतदान करने वाली महिलाओं की संख्या बिहार चुनाव में 8.15 फीसदी ज्यादा रही। इस बार मतदान में पुरुषों की हिस्सेदारी 62.96 फीसदी रही जबकि 71.78 फीसदी महिलाएं वोट डालने निकलीं। भले ही कुल आबादी में महिला वोटरों की संख्या पुरुषों से कम है मगर उन्होंने पुरुषों की तुलना में ज्यादा वोटकर जनादेश को अपनी इच्छा के मुताबिक मोड़ दिया। बिहार के कुल 7.45 करोड़ मतदाताओं में 3.93 करोड़ पुरुष और 3.51 करोड़ महिलाएं हैं।  महिलाओं की आर्थिक समृद्धि की ओर नीतीश सरकार का ध्यान पहली बार की सत्ता यानी 2005 से ही रहा है। सबसे पहले उन्होंने आॢथक रूप से पिछड़ी महिलाओं के लिए जीविका नाम की योजना शुरू की थी जो महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम थी।  इसके बाद शराब बंदी ने महिलाओं के बीच नीतीश कुमार की लोकप्रियता को बढ़ाया और अब चुनाव के ठीक पहले मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपए ट्रांसफर किए। 

पहले 75 लाख महिलाओं के खाते में यह पैसा डाला गया और उसके बाद यह आंकड़ा बढ़कर 1.5 करोड़ तक हो गया। वैसे विपक्ष यह आरोप लगाता रहा है कि चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद भी महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपए ट्रांसफर किए गए। चुनाव आयोग के पास इसकी शिकायत भी गई मगर उसने इसे ‘ऑनगोइंग स्कीम’ कहा। आयोग ने यह भी कहा कि जब एक बार योजना शुरू हो जाती है तो उसको रोकने का काम उसका नहीं है। यह महिलाओं के लिए काफी आशाजनक था और एक तरह से महिलाओं ने 6 नवम्बर को पहले चरण और 11 नवम्बर को दूसरे चरण के मतदान में भर-भर के वोट दिए। मतदान केंद्रों पर महिलाओं की लंबी-लंबी कतारें देखी गईं। इन कतारों ने बिहार की तस्वीर बदल दी। बिहार में यह भाजपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। वह अकेले दम पर 90  से ज्यादा सीटों पर कब्जा कर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। 2020 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 74 सीटें अवश्य जीती थीं, मगर राजद 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ा दल रहा था। 2010 के विधानसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने 91 सीटों पर कब्जा किया था। इस बार आसार इस सीमा को पार कर लेने के हैं। 

लोकतंत्र में विपक्ष का मजबूत होना जरूरी माना जाता है लेकिन इस चुनाव में तो ऐसा नहीं दिख रहा। राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के प्रभुत्व वाले महागठबंधन में नेतृत्वहीनता और समन्वय की कमी साफ  दिखी। आप इसका पूरा दोष तेजस्वी यादव और कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी पर लगा सकते हैं। यूं तो राहुल गांधी ने अपनी बिहार यात्रा के शुरूआती दौर में कुछ उम्मीदें जताई थीं लेकिन बाद में उन उम्मीदों पर पानी फि र गया जब वह यात्रा करने के लगभग एक माह तक चुनावी परिदृश्य से नदारद रहे । इसी दौरान चुनाव के शुरूआती दौर में राजद और कांग्रेस के बीच नेतृत्व और चेहरे को लेकर विवाद हुआ। उसे मतदाताओं ने गंभीरता से लिया। गठबंधन के तमाम सहयोगी दलों में सीटों को लेकर खींचतान चलती रही। महागठबंधन के नेता नए समीकरणों को समझने में पूरी तरह चूक गए। कांग्रेस पार्टी में टिकट वितरण को लेकर भी खुलकर नाराजगी जताई गई। टिकट बेचने के आरोप लगे और पूरे समीकरण बिगड़ गए। 

प्रशांत किशोर ने पूरे बिहार में घूम-घूम कर जो मुद्दे खड़े करने की कोशिश की थी, उनका शुरूआती असर तो देखने को मिला। लेकिन उनकी जनसुराज पार्टी का प्रदर्शन बता रहा है कि बेरोजगारी, पलायन और विकास जिसे प्रशांत किशोर बिहार में बहुत बड़ा मुद्दा समझ रहे थे, बहुत आगे तक नहीं ले जा सके। बेरोजगारी बिहार के लिए बड़ा मुद्दा है लेकिन उसका हाल कैसे होगा इस बात को वह जनता तक ठीक से पहुंचा नहीं सके। चुनाव के विस्तृत नतीजे तो बाद में आएंगे लेकिन फौरी तौर पर लगता है कि जनसुराज पार्टी को नोटा से भी कम वोट मिलेंगे। बिहार में नोटा को 1.82 फीसदी वोट मिले हैं। जहां तक वोट प्रतिशत की बात है तो आर.जे.डी. को ज्यादा बड़ा झटका नहीं लगा है। उसका अपना वोट जनाधार अब भी कायम दिख रहा है। वैसे इस नतीजे से यह साबित होता है कि राष्ट्रीय जनता दल सीट के गणित पर काम नहीं कर पाई।

कांग्रेस को इस बार एक फीसदी वोट की चोट लगी है। वह बिहार में इससे भी बड़ी चोट खाने की आदी है। भाजपा को करीब डेढ़ फीसदी वोट का फायदा हुआ है। इससे करीब 20 सीटें बढ़ी हैं।  वोट शेयर में सबसे ज्यादा फायदा जनता दल-यू को हुआ है। नीतीश कुमार के वोट शेयर में 3.5 फीसदी का उछाल है। पिछले चुनाव में जद-(यू) को 15.3 फीसदी वोट मिले थे, जबकि इस बार उसका वोट प्रतिशत 18.8 से ज्यादा है। बिहार चुनाव कई संदेश दे रहा है। सबसे बड़ा संदेश यही है कि भाजपा के लिए यह जीत लोकसभा के 400 पार के नारे की भरपाई करने वाली है।-अकु श्रीवास्तव 
 

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