सरकारी नौकरी के लिए दो बच्चों का नियम

Edited By ,Updated: 05 Mar, 2024 05:37 AM

two children rule for government job

उत्तर प्रदेश में पुलिस कांस्टेबल की भर्ती में पेपर लीक की वजह से परीक्षा रद्द होने से 50 लाख से ज्यादा युवाओं को फिर से एग्जाम देना होगा, लेकिन हजारों लोगों को सरकारी नौकरी मिलने के बावजूद, उनके ऊपर खतरे की तलवार लटक रही है।

उत्तर प्रदेश में पुलिस कांस्टेबल की भर्ती में पेपर लीक की वजह से परीक्षा रद्द होने से 50 लाख से ज्यादा युवाओं को फिर से एग्जाम देना होगा, लेकिन हजारों लोगों को सरकारी नौकरी मिलने के बावजूद, उनके ऊपर खतरे की तलवार लटक रही है। मध्य प्रदेश में 26 जनवरी 2001 के बाद तीसरा बच्चा पैदा करने वाले मां-बाप सरकारी नौकरी में शामिल नहीं हो सकते। 

इन नियमों के तहत मध्य प्रदेश में 1000 से ज्यादा शिक्षकों और कर्मचारियों को 2 साल पहले नौकरी से निकालने के लिए नोटिस जारी किया गया। उनमें से कई लोगों ने जवाब दिया कि नियुक्ति पत्र में तीसरे बच्चे के बारे में प्रतिबंध की कोई सूचना नहीं थी। ऐसे मामलों में नौकरी से निकाले जाने के बढ़ते खतरे से बचने के लिए दो से ज्यादा बच्चों वाले 60 हजार से ज्यादा कर्मचारियों ने एक संगठन भी बना लिया। 

राजस्थान में 2 से ज्यादा बच्चों वाले सरकारी कर्मियों की प्रोमोशन पर प्रतिबंध था जिसे मार्च 2023 में हटा दिया गया। साल 2017 में सेना से रिटायरमैंट के बाद एक पूर्व सैनिक ने राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल पद के लिए आवेदन किया था लेकिन दो से ज्यादा बच्चों की वजह से उसकी उम्मीदवारी खारिज होने से नए सिरे से उन कानूनों पर बहस शुरू हो गई है। राजस्थान में जून 2002 को लागू किए गए नियमों के अनुसार दो से ज्यादा बच्चों वालों को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती।

याचिकाकत्र्ता पूर्व सैनिक के अनुसार सेना की नौकरी में 2 बच्चों का नियम नहीं था इसलिए उसे पुलिस की भर्ती में रोकना गलत है। पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीमकोर्ट ने उसे राहत देने से इंकार करते हुए कहा कि सरकार को ऐसे नियम बनाने का संवैधानिक अधिकार हासिल है। इससे पहले नवम्बर 2022 में सुप्रीमकोर्ट में जस्टिस कौल की बैंच ने 2 बच्चों के लिए कानून बनाने की मांग करने वाली पी.आई.एल. को निरस्त कर दिया था। केंद्र सरकार ने उस मामले में दिसम्बर 2020 में हलफनामा दायर करके कहा था कि परिवार नियोजन का कार्यक्रम पूरी तरह से स्वैच्छिक है। 

आपातकाल के दौरान संविधान संशोधन : इन्दिरा सरकार ने 1976 में संविधान में 42वें संशोधन से जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन को समवर्ती सूची में शामिल किया। उससे राज्यों के साथ केंद्र सरकार को भी कानून बनाने का अधिकार हासिल हो गया। नरसिम्हा राव सरकार के समय जनसंख्या नियंत्रण के लिए संविधान के अनुच्छेद-47 और 51-ए  में बदलाव करने वाले बिल को संसद की मंजूरी नहीं मिल सकी। उसके बाद 1994 में भारत ने अंतर्राष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर किए  जिसके अनुसार परिवार नियोजन के लिए सरकार जोर-जबरदस्ती नहीं कर सकती। जुलाई 2021 में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री डा.भारती प्रवीण पवार ने लोकसभा में कहा था कि जनसंख्या नियंत्रण का कार्यक्रम स्वैच्छिक है और 2 बच्चों की नीति लाने का मोदी सरकार का कोई इरादा नहीं है, लेकिन उसके बाद मई 2022 में केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल ने बयान दिया कि जनसंख्या नियंत्रण के बारे में जल्द कानून लाया जाएगा। 

साल 2011 से देश में जनगणना भी नहीं हुई लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों के अनुसार हर दशक में जनसंख्या और प्रजनन दर में कमी आ रही है। राष्ट्रीय स्तर पर प्रजनन दर 2.1 से कम है। लेकिन बिहार, मेघालय, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मणिपुर में यह राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। बढ़ती आबादी का संबंध गरीबी और अशिक्षा से है। इसलिए दो बच्चों से ज्यादा वाले गरीबों को सबसिडी और सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित करना मुश्किल है। जनसंख्या के आधार पर फंड हासिल करने की होड़ में उत्तर और दक्षिण के राज्यों में मतभेद भी हैं। शायद इसीलिए पूरे देश में दो बच्चों का कानून लागू करने के बारे में केंद्र सरकार में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। 

मध्य प्रदेश में 3 बच्चों वाले कर्मचारियों का संघ : केंद्र सरकार की सरकारी नौकरियों में 2 बच्चों का नियम नहीं है लेकिन कई राज्यों में इस बारे में साल 2000 के बाद अनेक नियम बने हैं। तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और ओडिशा में 2 से ज्यादा बच्चों वाले स्थानीय निकायों का चुनाव नहीं लड़ सकते। असम सरकार ने 2019 में नियमों को मंजूरी दी थी जिसके अनुसार दो से ज्यादा बच्चों वालों को 2021 के बाद सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती। महाराष्ट्र में साल 2016 में एक लैब असिस्टैंट को 2 से ज्यादा बच्चों की वजह से नौकरी से निकाल दिया गया। सरकारी फैसले पर ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट ने मोहर लगा दी। महाराष्ट्र में ही एक आंगनबाड़ी सेविका को 2014 के नियमों के तहत नौकरी से निकाल दिया गया। उसने हाईकोर्ट में बचाव में कहा कि नियम पारित होने के समय वह 8 महीने की गर्भवती थी इसलिए नौकरी से बर्खास्तगी पूरी तरह से गलत है। 

कानून में अनेक गैप की वजह से दो बच्चों के नियम को लागू करना बहुत ही पेचीदा है। कानून के अनुसार दूसरी शादी  अवैध है, लेकिन अदालती फैसलों में दूसरी पत्नी के बच्चों को कानूनी मान्यता मिलती है। इन मामलों में दो बच्चों का नियम कैसे लागू होगा। इसी तरह से लिव-इन और सरोगेसी से होने वाले बच्चों के हक के बारे में कई अदालती फैसले हैं लेकिन स्पष्ट कानून नहीं है। लैंड सीलिंग में जब्ती से बचाने के लिए पुराने समय में लोग अतिरिक्त जमीन को कागजी तौर पर गिफ्ट कर देते थे। 

उसी तरीके से तीसरे बच्चे को कानूनी तौर पर गोद देकर भी दो बच्चों के नियम के दायरे से बाहर आया जा सकता है। नौकरी बचाने के लिए कोई दम्पति यदि तीसरे बच्चे के गर्भपात की मांग करे तो अदालतों के सामने कानूनी जटिलता बढ़ सकती है। सबसे बड़ी बात यह है कि विधायक,  सांसद,  मंत्री और केंद्रीय स्तर पर आई.ए.एस., आई.पी.एस. पर 2 बच्चों का नियम लागू नहीं होता। विकसित भारत के रोडमैप को सफल बनाने के लिए जनसंख्या, जनगणना, शादी, 2 बच्चे और समान नागरिक संहिता जैसे मामलों पर देशव्यापी कानून और समाधान जरूरी है।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!