यू.पी. में विपक्ष को फिर से अपनी रणनीति पर विचार करना होगा

Edited By ,Updated: 01 Feb, 2024 05:35 AM

u p the opposition will have to rethink its strategy in

अब से 6 महीने पहले जिस तरह से जातीय जनगणना को लेकर विपक्ष ने मोदी सरकार पर हमले शुरू किए थे तो लग रहा था कि एक बार फिर ओ.बी.सी. कार्ड के सहारे ही भाजपा को घेरने की तैयारी है।  बिहार में हुई जाति जनगणना के बाद तो विपक्ष ने अपना पूरा अभियान इसी पर ही...

अब से 6 महीने पहले जिस तरह से जातीय जनगणना को लेकर विपक्ष ने मोदी सरकार पर हमले शुरू किए थे तो लग रहा था कि एक बार फिर ओ.बी.सी. कार्ड के सहारे ही भाजपा को घेरने की तैयारी है। 
बिहार में हुई जाति जनगणना के बाद तो विपक्ष ने अपना पूरा अभियान इसी पर ही केंद्रित करने का मन बना लिया था। सामाजिक न्याय आंदोलन से उपजी क्षेत्रीय पार्टियों को जाति जनगणना के सवाल पर बड़ी ताकत तब मिली, जब कांग्रेस और उसके सर्वमान्य नेता राहुल गांधी ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाना शुरू कर दिया। 

माना जा रहा था कि भारतीय जनता पार्टी के राम मंदिर के सहारे लोकसभा चुनाव की वैतरणी पार करने की मंशा को विपक्ष जाति जनगणना के भरोसे ही फुस्स करने का काम करेगा। हालांकि उत्तर भारत के तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने विपक्ष के इस मुद्दे की हवा निकाल दी। हालांकि नतीजों से हताश विपक्ष इसके बाद भी कमंडल के मुकाबले मंडल कार्ड के ही भरोसे बैठा रहा और सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले सूबे यू.पी. में सबसे बड़े विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने मुद्दे को जोर-शोर से उठाना नहीं छोड़ा। इस मुद्दे को हाल में सबसे बड़ा पलीता लगाने का काम बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया, जो लोकसभा चुनावों से ठीक पहले जाकर फिर से एन.डी.ए. में शामिल हो गए हैं। 

नीतीश के एक बार फिर से एन.डी.ए. का हिस्सा बन जाने के बाद यह साफ हो गया है कि ओ.बी.सी. की राजनीति में अभी भाजपा का कोई तोड़ नहीं है। अति पिछड़ी जातियों के छोटे-छोटे समूहों पर तो भाजपा काफी पहले से अधिकार जमा चुकी थी और अब पिछड़ों के सबसे बड़े कुनबे कुर्मी बिरादरी पर उसने पूरा हक जता लिया है। दरअसल यू.पी. में ओ.बी.सी. फैक्टर की बड़ी भूमिका होती है। इसलिए सभी दलों की नजर इसी वर्ग पर रहती है। प्रदेश में लगभग 25 करोड़ की आबादी में लगभग 54 प्रतिशत पिछड़ी जातियां हैं। इनमें मुस्लिम समाज के अंतर्गत आने वाली पिछड़ी जातियों की हिस्सेदारी लगभग 12 प्रतिशत मानी जाती है। 

अगर मुस्लिम समाज की पिछड़ी जातियों को पिछड़ी जातियों की कुल आबादी से हटा दिया जाए तो हिंदू आबादी में लगभग 42 प्रतिशत पिछड़ी जातियां आती हैं। इनमें सबसे अधिक 12-13 प्रतिशत यादव और दूसरे नंबर पर लगभग 9 प्रतिशत कुर्मी हैं। प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटों में से दो दर्जन से अधिक सीटें ऐसी हैं, जिन पर कुर्मी मतदाताओं की संख्या चुनावी परिणामों को प्रभावित करती है। उत्तर प्रदेश में इस समय भाजपा और गठबंधन के 8 सांसद कुर्मी समाज से आते हैं।

कुर्मियों को साधने के लिए भाजपा ने जहां प्रदेश में स्वतंत्र देव सिंह, आशीष सिंह पटेल, राकेश सचान, संजय गंगवार को मंत्रिमंडल में भागीदारी दे रखी है, तो केंद्र में यू.पी. के महराजगंज से सांसद पंकज चौधरी और मिर्जापुर से सांसद व अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल भी मंत्री हैं। इसके अलावा भी अन्य पिछड़ी जातियों को केंद्र से लेकर प्रदेश के मंत्रिमंडल में और भाजपा के संगठन में भागीदारी दी गई है। माना जा रहा है कि यू.पी. में कुर्मी वोट साधने के लिए नीतीश फैक्टर भले ही उतना कारगर साबित न हो, लेकिन विपक्ष की पी.डी.ए. की गणित को बिगाडऩे में नीतीश का नाम कारगर साबित होगा। 

नीतीश की राजग में वापसी कराके भाजपा ने सपा के पी.डी.ए. पर जहां हमला बोलने के लिए एक मुखर वक्ता खड़ा कर दिया है, वहीं ‘इंडिया’ गठबंधन पर भी तीखे हमले करने वाले दिग्गज नेता का इंतजाम कर लिया है। इतना तो तय हो गया है कि पिछड़ों की लामबंदी कर भाजपा को चुनौती देने के विपक्ष के मंसूबों पर सबसे बड़ी कुल्हाड़ी नीतीश की पलटी ने मारी है। सिर पर आ खड़े हुए लोकसभा चुनावों से पहले यू.पी. में विपक्ष को एक बार फिर से अपनी रणनीति के बारे में विचार करना ही होगा।-हेमंत तिवारी 
 

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