यौन तस्करी के शिकार बच्चों को बचाने के लिए ‘कृत्रिम बुद्धि’ का इस्तेमाल

Edited By ,Updated: 22 Feb, 2019 04:14 AM

use of  artificial intelligence  to protect victims of sexual trafficking

वैज्ञानिकों को आशा है कि एक एप तथा लोगों द्वारा अपलोड की गई होटलों के कमरों की 10 लाख से अधिक तस्वीरों के माध्यम से कृत्रिम बुद्धि (आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस) यौन तस्करी के शिकार बच्चों की पहचान तथा बचाव कर सकती है। शोधकत्र्ताओं ने विश्व भर में 50,000...

वैज्ञानिकों को आशा है कि एक एप तथा लोगों द्वारा अपलोड की गई होटलों के कमरों की 10 लाख से अधिक तस्वीरों के माध्यम से कृत्रिम बुद्धि (आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस) यौन तस्करी के शिकार बच्चों की पहचान तथा बचाव कर सकती है। 

शोधकत्र्ताओं ने विश्व भर में 50,000 होटलों के चित्र एकत्र करने के लिए 2016 में एक एप लांच किया था जिनका मिलान यौन तस्करों द्वारा किए गए आनलाइन विज्ञापनों से किया जा सकता है जो आमतौर पर होटल के कमरों में उनके शिकारों द्वारा ली गई सैल्फियों का इस्तेमाल करते हैं।

हवाई में कृत्रिम बुद्धि पर आयोजित एक कांफ्रैंस में वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत एक पेपर में कहा गया है कि होटल्स-50के नामक इस एप का इस्तेमाल यह पहचान करने के लिए किया जा सकता है कि यौन तस्करी के शिकार बच्चों को कहां रखा गया है और अंतत: उन्हें बचाने के लिए। बड़ी संख्या में चित्रों को ‘डीप कन्वोल्शूनल न्यूरल नैटवर्क’ नामक एक आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस इंजन के माध्यम से गुजारा गया। पेपर के सहलेखक एबी स्टाइलिआनौ ने बताया कि इंजन कई तरह के फिल्टर्स की जानकारी रखता है। उसे पता चल जाता है कि यदि हैडबोर्ड अमुक होटल का है तो वह कैसा दिखता है, उस होटल में लैम्प कैसा दिखाई देता है? 

यह कदम इस दौरान उठाया गया है जब विश्व भर में होटल यौन गुलामी पर रोक लगाने का प्रयास कर रहे हैं और अपने कर्मचारियों को संकेत देखना सिखा रहे हैं जिनमें बार-बार बैडशीट बदलना तथा ‘डू नॉट डिस्टर्ब’ का चिन्ह देखना शामिल है जिसे कभी भी हटाया नहीं जाता। इंटरनैशनल लेबर आर्गेनाइजेशन के अनुसार दुनिया भर में लगभग 45 लाख लोग यौन गुलाम हैं। इस कदम के पीछे विचार यह है कि किसी होटल के विशेष कमरे को चुनकर उसका इस्तेमाल सूचना हासिल करने तथा बचाव के प्रयास हेतु किया जाए। 

दुनिया भर से 1,50,000 लोगों द्वारा उनका एप डाऊनलोड करने, ट्रैफिक कैम तथा लाखों तस्वीरें लेने के बाद यह आसान हो गया है कि वैसा ही दृश्य प्राप्त किया जा सके, जैसा कि किसी संभावित विज्ञापन के लिए तस्करी के शिकार द्वारा ली गई सैल्फी में से लिया गया हो। लगभग 8 महीने पहले जब होटल्स-50के परीक्षण के लिए तैयार था, वैज्ञानिकों ने इसे बाल यौन तस्करी के खिलाफ लड़ाई लडऩे वाली एक गैर लाभकारी संस्था नैशनल सैंटर फार मिसिंग एंड एक्सप्लोयटिड चिल्ड्रन (एन.सी.एम.ई.सी.) के साथ सांझा किया। 

हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि होटल्स-50के के कारण सीधे तौर पर किसी को बचाया गया है अथवा नहीं। एन.सी.एम.ई.सी. की केस एनालिसिज की कार्यकारिणी निदेशक स्टाका शेहान ने बताया कि उन्हें कुछ विज्ञापन मिले हैं, जिससे उन्हें कुछ सूत्र व सूचना प्राप्त हुई है। उन्होंने कहा कि किसी बच्चे के बचाव के लिए जाने में कई अन्य कारक योगदान डालते हैं। स्टाइलिआनौ ने कहा कि एक महत्वपूर्ण चीज जिसकी पहचान वैज्ञानिक नहीं करने का प्रयास कर रहे, वह है चित्र में दिखाई देते लोग। इससे पहले कि किसी होटल रूम का चित्र अपलोड किया जाए, जिसमें किसी शिकार को रखा गया है, कुछ कदम उठाने की जरूरत है। पहली बात तो यह कि उन्हें चित्र से शिकार को हटाना होगा। इसका कारण शिकार की सुरक्षा सुनिश्चित करना है ताकि इंटरनैट के माध्यम से उसका चित्र वापस यौन तस्करों तक न पहुंच जाए। 

उन्होंने कहा कि इस तकनीक का आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है और इसी कारण केवल एन.सी.एम.ई.सी. जैसे संगठनों तथा पुलिस को ही फिलहाल होटल्स-50के का इस्तेमाल करने की इजाजत होनी चाहिए। स्टाइलिआनौ ने कहा कि उन्होंने एक साफ्टवेयर तैयार किया है, जो लोगों का पता लगाने में मदद करता है। इसका अच्छा इस्तेमाल करके वे लोगों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं।

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