‘विकास दुबे मामला’ व्यापक परिप्रेक्ष्य देखा जाना चाहिए

Edited By ,Updated: 17 Jul, 2020 04:49 AM

vikas dubey case broad perspective to be seen

कुख्यात हिस्ट्री शीटर विकास दुबे की 10 जुलाई को बॉलीवुड फिल्मी स्टाइल मुठभेड़ के बाद हत्या भारत के जीवंत लोकतंत्र में अपराधी-पुलिस-राजनीतिक गठजोड़ की कंपा देने वाली कहानियों में फिट बैठती है। यह बेशक कुछ बढ़ा-चढ़ा कर कहा गया लगता है लेकिन यह...

कुख्यात हिस्ट्री शीटर विकास दुबे की 10 जुलाई को बॉलीवुड फिल्मी स्टाइल मुठभेड़ के बाद हत्या भारत के जीवंत लोकतंत्र में अपराधी-पुलिस-राजनीतिक गठजोड़ की कंपा देने वाली कहानियों में फिट बैठती है। यह बेशक कुछ बढ़ा-चढ़ा कर कहा गया लगता है लेकिन यह अपराधियों तथा उनके संदिग्ध अधिकारियों के साथ संबंधों के साथ प्रभावपूर्ण तरीके से निपटने में देश की नपुंसकता को बताता है। इस कटु सत्य की परवाह न करते हुए कि विकास दुबे के खिलाफ कानपुर में 7 आपराधिक मामले दर्ज थे, जिनमें से हत्याओं तथा डकैतियों से संबंधित थे, वह गुमराह पुलिस कर्मियों तथा सभी दलों के राजनीतिज्ञों के संरक्षण के कारण फलने-फूलने में सफल रहा, विशेषकर बसपा, सपा तथा भाजपा। 

2001 में उस पर भाजपा नेता एवं राज्य मंत्री संतोष शुक्ला की हत्या का आरोप लगा। मगर 2 वर्षों बाद वह छूट गया। कैसे? कौन उसके अपराधों की लम्बी-चौड़ी सूची की परवाह करता है? 52 वर्षीय गैंगस्टर बिना कोई प्रश्न पूछे बड़े स्टाइल से गांव की गलियों से कानपुर की सड़कों तथा पुलिस स्टेशनों से राजनीतिक गलियारों में घूम सकता था। यह थी गैंगस्टर की ताकत। 

राजनीतिक गठजोड़ 
दुबे किसी समय एक प्रधान तथा जिला परिषद का सदस्य था, इन दोनों पदों पर अब क्रमश: उसकी साली तथा पत्नी बैठी है। चूंकि उसे राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था, वह कारखानों में गरीबों को नौकरियां दिलाने में सक्षम था। कथित रूप से उसके मुस्लिम बहुल बिकरू गांव में कई पट्टिकाएं लगी हैं उन पर दुबे के पारिवारिक सदस्यों के नाम लिखे हैं। अपनी जाति के कारण ‘पंडित जी’ के नाम से प्रसिद्ध वह कथित तौर पर परिवारों को उनकी बेटियों की शादी अथवा चिकित्सा के लिए धन देने में उदार था। यह था उसका मानवीय चेहरा। 

जिस चीज ने योगी आदित्यनाथ सरकार ने दुबे को ‘सर्वाधिक वांछित अपराधी’ बना दिया वह थी कानपुर के बिकरू गांव में दुबे के आवास के नजदीक 8 पुलिस कर्मियों की हत्या। 9 जुलाई को उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में दिखाई दिए जाने से पहले वह कई दिनों तक भागता रहा। उसे मध्यप्रदेश पुलिस ने दबोचा। बाद में उत्तर प्रदेश पुलिस कानपुर के क्षेत्र में उसे एक मुठभेड़ में मारने में सफल रही। हम अभी तक मुठभेड़ की असल कहानी जानने में सफल नहीं हुए हैं क्योंकि पुलिस के काफिले का पीछा कर रहे मीडिया कर्मियों को दूर रखा गया था। मुठभेड़ में की जाने वाली हत्याओं को पुलिस द्वारा न्यायेत्तर हत्याएं माना जाता है। शहर के अंडरवल्र्ड से निपटने के लिए मुम्बई पुलिस ने यह तरीका अपनाया था। मुख्य प्रश्र यह है कि क्या उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा की गई मुठभेड़ उसे चुप कराने के लिए थी, इससे पहले कि वह अपने संबंधों की ‘अनकही कहानियां’ बयान कर दे? हैरानीजनक बात यह है कि 1999 के बाद से उसके खिलाफ 60 केस दर्ज होने तथा कई मुकद्दमें अदालतों की भूल-भुलैयां में गुम होने के बावजूद गैंगस्टर दुबे कई अवसरों पर बचने में सफल रहा, जो बड़ी अच्छी तरह से तैयार किए गए शो लगते हैं। 

माफिया राज
अनिश्चित तौर पर लोगों को चक्कर में डाला जा सकता था। ऐसा कहा जाता है कि अज्ञानता एक वरदान है। यद्यपि प्रशासन के प्रमुख मुद्दों के मामले में अधिकारियों में अज्ञानता के साथ मुखरता की कमी हमारे जैसे एक लोकतांत्रिक देश के लिए और कुछ नहीं बल्कि एक दोहरा अभिशाप है। 

ये प्रश्र भी पूूछे जा सकते हैं : यहां से हम कहां जाएंगे? हम किस तरह का सिस्टम चला रहे हैं और किसके लाभार्थ? माफिया राज तथा राजनीतिक-पुलिस राज को एक बहुत पतली रेखा विभाजित करती है। ऐसी परिस्थितियों में लोग किस ओर रुख करें? क्या मुठभेड़ में खुशी महसूस करने वाले पुलिस बल की ओर? परेशान करने वाली बात यह है कि ऐसे लगभग सभी मामलों में मुख्य भूमिका, सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए, सत्ताधारी गुट की होती है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार का अपराधियों को खत्म करने का मार्च 2018 से ‘आप्रेशन एनकाऊंटर्स’ का एक बड़ा रिकार्ड है। मगर फिर निष्पक्षता तथा न्याय की प्रक्रिया का क्या हुआ? लोकाचार का एक परेशान करने वाला गुण नया राजनीति स्टाइल है, जिसमें सहनशीलता तथा अनुशासन दोनों की कमी है। मैं ऐसा माफिया राज का समर्थन करने के लिए नहीं, बल्कि अपराधों तथा अपराधियों से निपटने के लिए न्याय की उचित प्रक्रिया की जरूरत पर जोर देने के लिए कह रहा हूं। यहां तक कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी कई अवसरों पर इस ओर संकेत किया है। 

यद्यपि क्या किया जा सकता है जब राजनीति का नया ढांचा जमीन से जुड़े लोगों वाला नहीं है जो लोगों की जरूरतों के प्रति नहीं बल्कि बाहुबलियों तथा स्थानीय माफिया के प्रति संवेदनशील है। उन्हें या तो सीधे कीमत चुकाई जाती है या अर्थव्यवस्था के नए उच्च विकास वाले क्षेत्रों द्वारा उनका प्रबंधन किया जाता है जिनमें शराब माफिया, तस्कर तथा निहित स्वार्थों वाले राजनीतिज्ञों का मिश्रण शामिल होता है। ऐसा दिखाई देता है कि इस प्रक्रिया के अंतर्गत लोकतंत्र को नए सिरे से परिभाषित किया जा रहा है। 

वोहरा पैनल के निष्कर्ष
यह मुझे वोहरा समिति के जांच परिणामों की याद दिलाता है। अक्तूबर 1993 में एन.एन. वोहरा समिति ने राजनीति के अपराधीकरण की समस्या का अध्ययन किया और मार्च 1993 में मुम्बई बम विस्फोटों में दाऊद इब्राहीम गैंग की गतिविधियों पर आलोचनात्मक नजर डाली। रिकार्ड में कहा गया कि कैसे सभी दलों के राजनीतिज्ञों के संरक्षण तथा सुरक्षा के अंतर्गत वास्तव में आपराधिक गैंग्स द्वारा एक समानांतर सरकार चलाई जा रही है। मैंने भारत की वाणिज्यिक राजधानी में एक अंग्रेजी समाचार पत्र में बिताए वर्षों के दौरान अपराधों तथा पुलिस बीट को कवर कर रहे एक वरिष्ठ स्टाफर की मदद से मुम्बई के अंडरवल्र्ड की कार्रवाइयों की एक स्पष्ट तस्वीर प्राप्त की। वोहरा रिपोर्ट में संकेत दिया गया कि कैसे वर्षों के दौरान अपराधी स्थानीय निकायों, राज्य विधानसभाओं तथा संसद में चुने जाने में सफल रहे। 

कथित तौर पर वोहरा रिपोर्ट की अप्रकाशित टिप्पणियों में अत्यंत विस्फोटक जानकारी है। ऐसा बताया जाता है कि इनमें कुछ ऐसे राजनीतिज्ञों तथा नौकरशाहों के नाम हैं जो दाऊद इब्राहीम की मदद कर रहे थे। मगर कौन परवाह करता है? मुझे नहीं लगता कि वर्षों के दौरान देश के सत्ताधारी अधिष्ठानों ने वोहरा समिति  के चौंकाने वाले खुलासों की परवाह की होगी। यहां तक कि 1997 में सुप्रीमकोर्ट द्वारा दिए गए दखल को भी तत्कालीन सत्ताधारियों द्वारा गंभीरतापूर्वक नहीं लिया गया। 

बाहुबल, धनबल
1986 में सी.बी.आई. ने बम्बई सिटी पुलिस तथा अंडरवल्र्ड के बीच सांठ-गांठ बारे एक रिपोर्ट जारी की। माफिया गैंग अवैध शराब बनाने, जुए, वेश्यावृत्ति व तस्करी, मादक पदार्थों व ड्रग तस्करी में शामिल थे। बाहुबल का एक नैटवर्क विकसित करने के लिए धनबल का खुले रूप से इस्तेमाल किया जाता था जिसका राजनीतिज्ञ चुनावों के दौरान इस्तेमाल कर सकते थे। भारत के अपराध जगत के यह मूल तथ्य हमें बागी विधायकों के दृष्टांत की ओर ले जाते हैं। कोई हैरानी नहीं कि हम देश में सार्वजनिक जीवन में मूल्यों में एक बढ़ती गिरावट देख रहे हैं। वोहरा समिति ने सही कहा था कि ‘राज्यों अथवा केंद्र में अपराध के संबंध सरकार की कार्यप्रणाली पर अस्थिरता के प्रभाव डाल सकते हैं।’ 

दरअसल हमें कानपुर में गैंगस्टरों के खिलाफ कार्रवाइयों को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है ताकि प्रशासन की प्रणाली में सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाए जा सकें। उत्तर प्रदेश सरकार ने एक जांच समिति नियुक्त की है। इसके पास अध्ययन के लिए एक सीमित क्षेत्र होगा। मैं समझता हूं कि उत्तर प्रदेश की सरकार को गठजोड़ की इस समस्या को हमारी लोकतांत्रिक राजनीति के एक व्यापक कैनवस पर देखने की जरूरत है। देश को आज बहुत बुरी तरह से राजनीतिक, पुलिस तथा न्यायिक सुधारों की जरूरत है। क्या यह नागरिकों का एक सपना ही रह जाएगा, जो भारत तथा लोगों के कल्याण के बारे में सोचते हैं।-हरि जयसिंह

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!