जब हिटलर ने नेता जी से माफी मांगी

Edited By Updated: 18 Jan, 2022 06:28 AM

when hitler apologized to netaji

इस साल गणतंत्र दिवस समारोह की शुरूआत नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन 23 जनवरी से हो जाएगी। अभी तक गणतंत्र दिवस समारोह का औपचारिक आयोजन 24 जनवरी से शुरू होता

इस साल गणतंत्र दिवस समारोह की शुरूआत नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन 23 जनवरी से हो जाएगी। अभी तक गणतंत्र दिवस समारोह का औपचारिक आयोजन 24 जनवरी से शुरू होता है। भारत में स्वतंत्रता संग्राम के महानायक और ‘जय हिंद’ का नारा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक में हुआ था। उनके जन्मदिवस को नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती के रूप में मना कर उन्हें श्रद्धांजलि भी दी जाती है। गौरतलब है कि राजनेता और बुद्धिजीवी नेताजी को भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में उनके खास योगदान के लिए जाना जाता है।

सुभाष चंद्र बोस की जिंदगी से जुड़ी अहम बातें जानना सामयिक और ज्ञानवर्धक है। यह राष्ट्र के युवाओं के लिए खास तौर पर प्रेरणादायक भी है। सुभाष चंद्र बोस स्वामी विवेकानंद को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे। उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया था, जो अंग्रेजों का मुकाबला करने के लिए बनाई गई एक सैन्य रैजीमैंट थी। बोस ने आजाद हिन्द फौज के साथ एक महिला बटालियन भी गठित की थी, जिसमें उन्होंने रानी झांसी रैजीमैंट का गठन किया था। महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि सबसे पहले बोस ने ही दी थी। उन्होंने साल 1944 में रेडियो पर गांधी जी को राष्ट्रपिता कह कर स बोधित किया, तभी गांधीजी ने भी उन्हें नेताजी कहा। 

नेताजी ने लाखों युवाओं को आजादी के संघर्ष में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने मैट्रिक परीक्षा में दूसरा और भारतीय सिविल सेवा (आई.सी.एस.) परीक्षा में चौथा स्थान हासिल किया। उन्होंने अपनी आई.सी.एस. की नौकरी छोड़ दी और साल 1921 में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए इंगलैंड से भारत वापस आ गए। नेताजी ने कहा था कि स्वतंत्रता पाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेडऩा जरूरी है। स्वाधीनता संग्राम के लगभग अंतिम 2 दशकों के दौरान उनकी भूमिका एक सामाजिक क्रांतिकारी की रही थी। सुभाष चन्द्र बोस ने अहिंसा और असहयोग आंदोलनों से प्रभावित होकर ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में अहम भूमिका निभाई। ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ यह उनका बहुचॢचत नारा बना। 

उन्होंने जर्मनी में भारतीय स्वतन्त्रता संगठन और आजाद हिन्द रेडियो की स्थापना की।  29 मई, 1942 के दिन, सुभाष जर्मनी के सर्वोच्च नेता एडॉल्फ हिटलर से मिले, लेकिन हिटलर को भारत के विषय में विशेष रुचि नहीं थी। उन्होंने सुभाष को सहायता का कोई स्पष्ट वचन नहीं दिया। नेताजी ने उससे दस्ताना उतार कर हाथ मिलाने को कहा। उन्होंने कहा कि दोस्ती के बीच कोई दीवार नहीं आनी चाहिए और आगे के मिशन के लिए मदद मांगी। कई साल पहले हिटलर ने ‘माइन का फ’ नामक आत्मचरित्र लिखा था।

इस किताब में उन्होंने भारत और भारतीय लोगों की बुराई की थी। इस विषय पर सुभाष ने हिटलर से अपनी नाराजगी व्यक्त की। हिटलर ने अपने किए पर माफी मांगी और ‘माइन का फ’ के अगले संस्करण में वह परिच्छेद निकालने का वचन दिया। अपने संघर्षपूर्ण एवं अत्यधिक व्यस्त जीवन के बावजूद नेताजी सुभाष चन्द्र बोस स्वाभाविक रूप से लेखन के प्रति भी उत्सुक रहे। अपनी अपूर्ण आत्मकथा एक भारतीय यात्री (ऐन इंडियन पिलग्रिम) के अतिरिक्त उन्होंने दो खंडों में एक पूरी पुस्तक ‘द इंडियन स्ट्रगल’ भी लिखी, जिसका लंदन से ही प्रथम प्रकाशन हुआ था। यह पुस्तक काफी प्रसिद्ध हुई थी। 

नेताजी के पिता की इच्छा थी कि सुभाष आई.सी.एस. बनें, किन्तु उनकी आयु को देखते हुए केवल एक ही बार में यह परीक्षा पास करनी थी। उन्होंने पिता से 24 घण्टे का समय यह सोचने के लिए मांगा ताकि वह परीक्षा देने या न देने बारे कोई अन्तिम निर्णय ले सकें। वह सारी रात इसी असमंजस में जागते रहे। आखिर उन्होंने परीक्षा देने का फैसला किया और इंगलैंड चले गए। उन्होंने 1920 में वरीयता सूची में चौथा स्थान प्राप्त करते हुए परीक्षा पास कर ली। इसके बाद सुभाष ने अपने बड़े भाई शरत चन्द्र बोस को पत्र लिख कर उनकी राय जाननी चाही कि उनके दिलो-दिमाग पर तो स्वामी विवेकानन्द और महर्षि अरविन्द घोष के आदर्शों ने कब्जा कर रखा है, ऐसे में आई.सी.एस. बन कर वह अंग्रेजों की गुलामी कैसे स्वीकार कर पाएंगे? हममें से कितनों के अंदर यह जज्बा है? 

नेताजी को भारत का खून कभी भी नहीं भुला पाएगा। उनका शब्दघोष ‘जय हिन्द’ हम सबके लिए एक अमर वाक्य बन चुका है। नेताजी का जीवन कहता है कि हमारे समाज के लोगों को अपनी काबिलियत और चरित्र देश की बेहतरी में लगाना चाहिए, एक-दूसरे के चरित्रहनन और तुच्छ फायदों के लिए कीमती ऊर्जा बर्बाद नहीं करनी चाहिए। इस बार के गणतन्त्र दिवस समारोहों में नेता जी के जन्म से जुड़ी स्मृति को विशेष स्थान देने से राष्ट्र गौरवान्वित महसूस करेगा और देश में राष्ट्रीयता की भावना बलवती होगी।-डा. वरिन्द्र भाटिया 

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