Edited By ,Updated: 22 Sep, 2023 05:49 AM
टमाटर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सी.पी.आई.) मुद्रास्फीति जो साल- दर-साल जुलाई में 201.5 प्रतिशत थी, कम होती जा रही है। खेतों से नई आपूर्ति के कारण कीमतें कम हो गई हैं। जो सरकारी खरीद के अभाव में महाराष्ट्र में गिर कर 5 रुपए प्रति किलोग्राम हो गई हैं।
टमाटर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सी.पी.आई.) मुद्रास्फीति जो साल- दर-साल जुलाई में 201.5 प्रतिशत थी, कम होती जा रही है। खेतों से नई आपूर्ति के कारण कीमतें कम हो गई हैं। जो सरकारी खरीद के अभाव में महाराष्ट्र में गिर कर 5 रुपए प्रति किलोग्राम हो गई हैं। लेकिन खाद्य मुद्रास्फीति जल्द ही कम नहीं होगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि अनाज विशेषकर गेहूं और चावलों की कीमतों में मुद्रास्फीति अभी भी ऊंची है। अगस्त सी.पी.आई. मुद्रास्फीति में अनाज का योगदान लगभग उतना ही है जितना टमाटर (15.49 प्रतिशत बनाम 15.5 प्रतिशत) का है। सरकार अनाज मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में क्यों विफल रही है। यह थोड़ा रहस्य है।
सरकार का कहना है कि इस साल गेहूं का रिकार्ड उत्पादन हुआ है। पिछले वर्ष के लिए भी यही कहा गया था। इसने मई 2022 से गेहूं के निर्यात पर और अगस्त 2022 से आटे और इसी तरह के उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस साल जून से इसने व्यापारियों, मिल मालिकों,थोक विक्रेताओं और खुदरा शृंखलाओं पर 3 हजार टन से अधिक गेहूं रखने पर प्रतिबंध लगा दिया है। छोटे खुदरा विक्रेता और दुकानें 10 टन से अधिक का स्टॉक नहीं कर सकते। इन उपायों के बाद भी रिकार्ड उत्पादन के समय के लिए निश्चित रूप से सरकार बमुश्किल 26.1 मिलियन टन गेहूं खरीदने में सफल रही है जो चालू रबी सीजन के 34 मिलियन टन के लक्ष्य से कम है।
पिछले साल कमी अधिक गंभीर थी। सरकार ने 43.3 मिलियन टन के लक्ष्य के मुकाबले 18.8 मिलियन टन की खरीद की। आपूर्ति तक पहुंचने के लिए 15 वर्षों में पहली बार उपयोग किए जा रहे स्टॉक पर नियंत्रण और सीमा जैसे सख्त उपायों से खरीद में सुधार करने में ज्यादा मदद नहीं मिली। सरकार ने महंगाई को कम नहीं किया। सरकार अपने मुफ्त भोजन कार्यक्रम के लिए इतनी ऊंची कीमतों पर गेहूं कैसे खरीदेगी? निजी खरीददारों के साथ प्रतिस्पर्धा में बाजार मूल्य पर खरीददारी करने से सरकारी खजाना दिवालिया हो जाएगा। गेहूं आयात करना पहुंच से बाहर था। मध्य प्रदेश जैसे गेहूं उत्पादक राज्य में चुनाव के वर्ष में यह राजनीतिक रूप से बेहद शर्मनाक होगा। बाजार की कीमतों को कम करने का निर्णय लिया गया था।
हालांकि किसानों की आय को जान-बूझकर कम करने का मतलब किसानों की आय को दोगुना करने के प्रधानमंत्री के निर्देशों की अवहेलना करना था। सरकारी स्टाक से गेहूं को उसकी आॢथक लागत (खरीद, परिवहन और भंडारण) से कम कीमत पर बेचने से बाजार की कीमतें एम.एस.पी. स्तर तक नीचे आ गईं। अगस्त तक गेहूं सी.पी.आई. मुद्रा स्फीति 9 प्रतिशत से ऊपर हो गई। गेहूं की खरीद फिर से अपने लक्ष्य से पीछे रहने के कारण आने वाले त्यौहारी सीजन में मुद्रा स्फीति बढ़ सकती है। इससे बचने का एकमात्र तरीका गेहूं का आयात करना है। जैसा कि 2016-17 में किया गया था जब दिवंगत रामविलास पासवान खाद्य आपूर्ति के प्रभारी थे। पिछले साल मई से भारत की खाद्य अर्थव्यवस्था का कुप्रबंधन तत्काल सुधार की मांग करता है। सरकार किसानों की कमाई पर जुर्माना लगाने और बाजारों को विकृत करने के बाद भी कीमतों को पर्याप्त रूप से कम करने में कामयाब नहीं हुई है।
केंद्र को बताना होगा कि गेहूं का सारा रिकार्ड उत्पादन कहां गायब हो गया। यदि गर्मी की लहरें भारत के गेहूं उत्पादन को नुक्सान पहुंचा रही हैं और सरकार के मुफ्त भोजन कार्यक्रम को खतरे में डाल रही है तथा मुद्रास्फीति को बढ़ावा दे रही है तो सरकार रिकार्ड उत्पादन के अपने संदिग्ध आख्यान पर क्यों अड़ी हुई है। गरीबों के लिए भेजा गया कोई भी चावल देश से बाहर क्यों लीक होना चाहिए? विपक्ष या तो भारत के खाद्य बाजारों में गड़बड़ी से अंजान है या परेशान नहीं है।-पूजा मेहरा