Edited By ,Updated: 08 Nov, 2025 05:24 AM

हमारे प्राकृतिक, मानवीय और आर्थिक संसाधन किसी भी विकसित देश से कम नहीं हैं बल्कि अनेक क्षेत्रों में हमारा वर्चस्व है जैसे कि हिमालय पर्वत शृंखला, नदियों की विशालता, मूल्यवान खनिज पदार्थ, घने जंगल, वैकल्पिक ऊर्जा के अक्षय भंडार तथा सभी तरह के मौसम।...
हमारे प्राकृतिक, मानवीय और आॢथक संसाधन किसी भी विकसित देश से कम नहीं हैं बल्कि अनेक क्षेत्रों में हमारा वर्चस्व है जैसे कि हिमालय पर्वत शृंखला, नदियों की विशालता, मूल्यवान खनिज पदार्थ, घने जंगल, वैकल्पिक ऊर्जा के अक्षय भंडार तथा सभी तरह के मौसम। सबसे अधिक युवाओं की संख्या है। उनके व्यापार करने, औद्योगिक इकाइयां बनाने और घरेलू उपभोग और निर्यात के लिए वैश्विक बाजार में प्रतियोगी बनने की अपार संभावनाएं हैं। इतना कुछ होते हुए भी भारत पर अविकसित या विकासशील देश होने का ठप्पा लगा हुआ है। ऐसा क्यों?
उद्योगों की स्थिति और उद्यमियों की आपबीती: देश में उद्यमिता का विकास और अपना छोटा, मध्यम या बड़ा उद्योग लगाने के लिए अनेक योजनाएं लगातार बनाई जाती रही हैं लेकिन घोषणा करने के बाद सरकार भूल जाती है कि उन पर अमल भी करना और करवाना होता है। आंकड़ों के अनुसार इन योजनाओं के जरिए जो इकाइयां शुरू हुईं, युवाओं के सपनों का आधार बनीं और विश्व स्तरीय उत्पाद बनाने में अग्रणी बनने का सपना संजोए थीं, उनमें से 60 प्रतिशत से अधिक और कुछ क्षेत्रों में 95 प्रतिशत तक बंद हो गईं, घाटे के कारण बीमारू बन गईं तथा उनके संचालक कर्जदार होकर सब कुछ बेच कर किसी नौकरी की तलाश करने लगे। परिणामत: उद्योगों की विकास दर 4 प्रतिशत से कम हो गई जबकि विकसित देश कहलाने के लिए यह 10 से 20 प्रतिशत वार्षिक होनी चाहिए थी। प्रदेशों की राजधानियों और प्रमुख शहरों में औद्योगिक विकास प्राधिकरण स्थापित हैं। इनकी कार्यप्रणाली समझने के लिए एक मित्र युवा उद्यमी की आपबीती इस प्रकार है -
एक अथॉरिटी सन् 2016-17 में एक औद्योगिक सैक्टर में जमीन प्राप्त करने के लिए विज्ञापन देती है। लोग आवेदन करते हैं, जरूरी राशि जमा करते हैं और ड्रा होने पर जो सफल होते हैं, वे आगे की योजना बनाने लगते हैं। मित्र को जब उक्त आबंटन हुआ तो खुश ही नहीं, सुनहरे भविष्य की कल्पना करने लगा। सैक्टर में जाता है तो देखता है कि वहां जंगल जैसा वातावरण है, मवेशी घूम रहे हैं और पास में बसे गांवों के लोग उस जगह का इस्तेमाल कूड़ा-कचरा, गंदगी फैलाने और शौच के लिए करते हैं। जो प्लाट मिला था, उसका काल्पनिक अनुमान ही लगाया जा सकता था कि कहां होगा। उस व्यक्ति ने बैंक से लोन लेकर किस्तें देने और निर्माण के लिए आवश्यक प्रबंध किए लेकिन जो हालत थी, उसे देखकर उसे बेहोशी होने लगी। किसी तरह लगभग 3 वर्ष बाद यह स्थिति आई कि वह अपना प्लाट पहचान सके। सड़कों, नालियों का निर्माण होता दिखा। उसके बाद कोरोना के कारण सब कुछ बंद हो गया। इस सब में 5-6 वर्ष निकल गए, 2022-23 तक कुछ उद्यमियों ने निर्माण किया और शेष भी करने की योजना बनाने लगे क्योंकि अथारिटी द्वारा निर्माण के लिए दी गई समय सीमा समाप्त होने वाली थी।
इस व्यक्ति ने सोचा था कि 2 साल में यूनिट लग जाएगा और बैंक की किस्तें व अन्य खर्च निकलने लगेंगे और जीवन खुशहाली की तरफ बढऩे लगेगा। लेकिन सपना चकनाचूर हुआ, बैंक की देनदारी बढ़ गई और सोचने लगा किसी तरह यूनिट चालू हो जाए। अथारिटी को इस बात से कोई सरोकार नहीं था कि उद्यमी की मुश्किलें आसान की जाएं, उसे अपनी वसूली से मतलब था। स्थिति यह थी कि यूनिट तक कर्मचारियों का पहुंचना आसान नहीं था। अब हर कोई उद्यमी तो इन चीजों का प्रबंध नहीं कर सकता। प्रशासन की हकीकत: अब इसे समझिए। नक्शा पास कराने और सभी औपचारिकताएं पूरी करने में एक से डेढ़ साल लगना मामूली बात है।
अथारिटी एक बार में कमी नहीं बताती, लगभग हर महीने एक कमी बताती है जिसके पूरा करने पर दूसरी कमी बताई जाती है। कम्पलीशन सर्टीफिकेट लेने के लिए 6 महीने से एक साल तक लग जाता है। फिर फंक्शनल सर्टीफिकेट के लिए यही प्रक्रिया अपनाई जाती है। अधिकारियों से लेकर सी.ई.ओ. या चेयरमैन तक यही सुनने को मिलता है कि यही चलन है। होना तो यह चाहिए था कि औद्योगिक सैक्टर में प्लाट आबंटन से पहले ही सड़क, आवागमन के साधन, बिजली, पानी आपूर्ति की व्यवस्था, सीवर कनैक्शन आदि हो जाना चाहिए था। क्या कभी कोई मुख्यमंत्री इस स्थिति का मुआयना और प्रशासनिक लापरवाही के लिए किसी को दंडित करेगा, युवा उद्यमियों को राहत देने के लिए कोई ठोस नीति तैयार करने की पहल करेगा, इसकी संभावना न के बराबर है।
युवा उद्यमी प्रॉपर्टी डीलर और काम कराने वाले की खोज करता है। नियम ऐसे हैं कि उन्हें समझना और पूरा करना टेढ़ी खीर है परंतु पालन करना मजबूरी है और इसमें समय बर्बाद होना निश्चित है। 5 घंटे में होने वाला काम 5 दिन में हो जाए तो समझ सकते हैं लेकिन 5 महीने से ज्यादा या अनेक वर्ष लगना मामूली बात है। निराश और हताश होकर वह अपनी यूनिट के लिए किराएदार या खरीदार खोजने लगता है।
आर्थिक शक्ति बनने का सपना: औद्योगिक विकास ही विकसित देशों की श्रेणी में ला सकता है। विनिर्माण, रोजगार सृजन और निर्यातक देशों में अपनी पहचान उद्योगों द्वारा आधुनिक टैक्नोलॉजी अपनाने से ही बन सकती है। इसके लिए बंद हो चुकी और घाटे में डूबी इकाइयों के पुनरुद्धार की जरूरत है। इससे करोड़ों श्रमिकों का भविष्य सुरक्षित होगा, अपने घोषित स्मार्ट औद्योगिक नगरों की स्थापना के लक्ष्य को पूरा करना आसान होगा। सरकार यह सब जानती है। एक बात और स्पष्ट कर दें कि ऋण माफी और सबसिडी से बीमार इकाइयों का इलाज करना सरकार की गलतफहमी है क्योंकि कोई भी उद्यमी अपनी यूनिट जानबूझकर बंद नहीं करता बल्कि मजबूती से डटे रहने का हरसंभव प्रयास करता है लेकिन जो बड़े उद्योगपति हैं वे उसे निगलने में कामयाब हो ही जाते हैं।- पूरन चंद सरीन