कांग्रेस की ‘खुदकुशी’ कौन रोकेगा

Edited By ,Updated: 20 Feb, 2020 01:36 AM

who will stop the congress suicide

कांग्रेस की खुदकुशी कौन रोकेगा? कब तक कांग्रेस खुदकुशी के रास्ते पर चलेगी? प्रदेशों में खुदकुशी पर खुदकुशी कर रही है कांग्रेस। हर कांग्रेसी का अपना-अपना राग है। एकजुटता और एक लाइन में खड़ा होना कांग्रेसी कब के भूल चुके हैं। कभी कांग्रेस का कोई शीर्ष...

कांग्रेस की खुदकुशी कौन रोकेगा? कब तक कांग्रेस खुदकुशी के रास्ते पर चलेगी? प्रदेशों में खुदकुशी पर खुदकुशी कर रही है कांग्रेस। हर कांग्रेसी का अपना-अपना राग है। एकजुटता और एक लाइन में खड़ा होना कांग्रेसी कब के भूल चुके हैं। कभी कांग्रेस का कोई शीर्ष नेता कांग्रेस के पक्ष में हवा बनाता है, कांग्रेस को पहले जैसा सक्रिय करने की कोशिश करता है तो फिर दूसरा-तीसरा, चौथा कांग्रेसी नेता उस पर पानी फेर देता है। 

तेजाबी,हिंसक और आत्मघाती बयानबाजी भी कहां रुकती है। खुशफहमी भी कहां रुकती है। खुशफहमी का ऐसा प्रदर्शन कि हम तेजाबी, हिंसक और आत्मघाती बयानबाजी करेंगे, फिर भी जनता उन्हें वोट डालने के लिए मजबूर, बाध्य और नतमस्तक है। सत्ता से दूर होना इन्हें स्वीकार नहीं है, सत्ता काल की मानसिकता से अलग होना इन्हें स्वीकार नहीं है, व्यवहार ऐसा कि मानो वे अभी भी केन्द्रीय सत्ता पर बैठे हैं। यह अभी भी नरेन्द्र मोदी को अपशब्द कहने, अपमानित करने, ङ्क्षहसक वाक्य विन्याश गढऩे से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं जबकि यह स्पष्ट हो गया कि कांग्रेसी नरेन्द्र मोदी को जितना अपशब्द कहते हैं, जितना अपमानित करते हैं, जितना हिंसक वाक्य विन्याश गढ़ते हैं, उतना ही नरेन्द्र मोदी मजबूत होकर उभरते हैं, उतना ही अधिक जनादेश प्राप्त कर सामने आते हैं। 

कांग्रेस के आम कार्यकत्र्ता बेबस और लाचार 
इन सब कारणों से कांग्रेस के आम कार्यकत्र्ता बेबस हैं, लाचार हैं जबकि कांग्रेस के नेता भी दिग्भ्रमित हैं, उन्हें तो यह मालूम ही नहीं होता कि कब उनके राजनीतिक मुद्दे और राजनीतिक अभियान पर कौन कांग्रेस का वरिष्ठ नेता पानी फेर देगा, यह निश्चित नहीं है। जब अनुशासन की बागडोर कमजोर होती हैं, विचारधारा जब स्पष्ट नहीं होती है, सक्रियता के राजनीतिक मुद्दों पर लाभ-हानि का विचार नहीं होता है तब कोई राजनीतिक संगठन कमजोर ही होता है, लगातार पतन की ओर ही जाता है, चुनावों में हार को ही प्राप्त करता है। कांग्रेस में ऐसा ही होता चला आ रहा है। 

अभी-अभी दिल्ली में कांग्रेस शून्य की कमजोर स्थिति तक पहुंच गई। दिल्ली जहां पर कांग्रेस का 15 साल तक शासन रहा था, जहां पर कांग्रेस की विरासत में विकास की बहुत बड़ी राजनीतिक पूंजी थी वहां पर कांग्रेस का शून्य तक पहुंच जाना बहुत बड़ा वैचारिक प्रश्न खड़ा करता है, कांग्रेस की जड़ों में ही कमजोरी को स्पष्ट करता है और यह संकेत देता है कि कांग्रेस के अंदर में कमजोरियों को दूर करने के लिए अभी तक कोई सीख विकसित नहीं हुई है। लोकतंत्र में ऐसा उदाहरण कम ही देखने को मिलता है कि राजनीतिक शून्यता को प्राप्त करने के बावजूद भी खुशियां मनाई जाती हैं, खुशियां व्यक्त की जाती हैं। क्या यह सही नहीं कि दिल्ली में अपनी हार से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता खुश थे। कांग्रेस का कोई वरिष्ठ नेता यह कहता है कि हमें तो भाजपा को सत्ता से दूर रखने पर खुशी है, कोई कांग्रेसी नेता कहता है कि हमें तो अरविन्द केजरीवाल की जीत पर खुशी है। 

भाजपा सत्ता लूटने में असफल रही, यह तो सच है पर अरविन्द केजरीवाल की जीत पर आपको क्या प्राप्त हुआ? अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली में कांग्रेस सत्ता को ही हरा कर अपनी सत्ता कायम की थी। अब तो अरविन्द केजरीवाल जितना मजबूत होगा उतना ही आप यानी कांग्रेस कमजोर होगी? सबसे बड़ी बात यह है कि जब आपको अरविन्द केजरीवाल की जीत पर खुशी है तो फिर दिल्ली में आप ने अपने प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा और दिल्ली के प्रभारी चाको से इस्तीफा क्यों लिया? आम जनता यह समझी कि सुभाष चोपड़ा और चाको से इस्तीफा लेना मात्र बलि का बकरा बनाना जैसा ही है। कमजोर कडिय़ों को बलि का बकरा बनाने की जगह उन कारणों को देखा जाता और इस्तीफा भी उन्हीं से लिया जाता, जिसके कारण कांग्रेस की स्थिति ऐसी दयनीय हुई है तो ज्यादा अच्छा रहता। 

जनता के बीच कोई एक बार नहीं बल्कि बार-बार जगहंसाई आपने खुद कराई 
लोकतंत्र में विरोध की राजनीति तब शक्तिशाली होती है जब भाषा सभ्य होती है, आंकड़े महत्वपूर्ण होते हैं, तथ्य और मुद्दे स्पष्ट होते हैं। तथ्य और मुद्दे अगर स्पष्ट हैं तब भी रक्तरंजित भाषा और अस्वीकार भाषा लाभ हासिल करने से रोक देती है। जब कांग्रेस के शीर्ष श्रेणी के नेता कहते हैं कि हम सावरकर नहीं हैं जो माफी मांग लेंगे, हम मर जाएंगे पर माफी नहीं मांगेंगे। पर जनता देखती है कि आप सुप्रीम कोर्ट में गलत तथ्य देने पर एक बार नहीं बल्कि कई बार माफी मांग चुके हैं। फिर जनता में आपकी छवि सभ्य और मजबूत नेता की नहीं बनती है। जनता के बीच जगहंसाई ही होती है। जनता के बीच कोई एक बार नहीं बल्कि बार-बार जगहंसाई आपने खुद कराई है। जब आप बोलते हैं कि बेरोजगारी से त्रस्त लोग मोदी की पिटाई करेंगे तब मोदी यह कह कर सहानुभूति लूट लेते हैं कि हम अपनी पीठ मजबूत कर रहे हैं, आप आइए और हम पर लाठियां बरसाइए। 

यानी आपके हथकंडे से ही आपके ऊपर वार करने में नरेन्द मोदी सफल हो जाते हैं। दूसरी, तीसरी और चौथी श्रेणी के कांग्रेस नेता ही नहीं बल्कि जनाधार विहीन कांग्रेसी नेता जब नरेन्द्र मोदी को अपमानित भाषा का शिकार बनाते हैं और उनको विनाशक तथा हिटलर कहते हैं तब पूरी कांग्रेस पार्टी अराजक श्रेणी में खड़ी हो जाती है। कांग्रेस पार्टी एक राजनीतिक पार्टी नहीं दिखती है बल्कि अभिमानी संगठन के तौर पर खड़ी दिखती है। 

यह सही है कि भाजपा लगातार अपने पतन की ओर जा रही है, वह लगातार प्रदेशों में हार रही है। पर कांग्रेस भाजपा के विकल्प के तौर पर खड़ी क्यों नहीं हो रही है। महाराष्ट्र, झारखंड जैसे प्रदेशों में जहां भाजपा सत्ता से बाहर हो गई वहां पर भी कांग्रेस प्रथम स्थान हासिल क्यों नहीं कर पाई, वहां क्षेत्रीय दलों की लटकन क्यों बन गई? बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस अपनी दयनीय स्थिति से कब ऊपर उठेगी, यह नहीं कहा जा सकता है। बिहार और उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू होना पड़ रहा है। प्रियंका गांधी का अवतार भी कांग्रेस के लिए वरदान साबित नहीं हुआ। भाजपा से बहुसंख्यक वर्ग को वापस लाने की कोई राजनीतिक नीति कहां है? आपको अरविन्द केजरीवाल से सीख लेने की जरूरत है।-विष्णु गुप्त

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