पंजाबियों को भिखमंगे होने का एहसास क्यों करवाया जा रहा है

Edited By ,Updated: 29 Nov, 2021 04:09 AM

why are punjabis being made to feel like beggars

पंजाब, जिसे देश का अन्नदाता कहा जाता है, ने हाल ही में तीन कृषि कानूनों को रद्द करवाने में प्रमुख भूमिका निभाई है। यह राज्य अब विधानसभा चुनावों के दरवाजे पर खड़ा है। सभी राजनीतिक दल

पंजाब, जिसे देश का अन्नदाता कहा जाता है, ने हाल ही में तीन कृषि कानूनों को रद्द करवाने में प्रमुख भूमिका निभाई है। यह राज्य अब विधानसभा चुनावों के दरवाजे पर खड़ा है। सभी राजनीतिक दल इस चुनावी संग्राम में पूरे जोर-शोर से कूद पड़े हैं। हर ओर से मुफ्त, मुफ्त और मुफ्त का शोर सुनाई दे रहा है। 

सारे देश का पेट भरने का सामथ्र्य रखने वाले पंजाब की जनता इतनी भूखी-नंगी और नाकारा हो गई है कि किसी पार्टी का नेता कह रहा है कि हम चुनाव जीत कर आटा, दाल, चावल मुफ्त देंगे, कोई कह रहा है कि हम बिजली मुफ्त देंगे, कोई बसों में सफर मुफ्त करवाने का वायदा कर रहा है, कोई बिजली के बकाए माफ करने और कोई डिफाल्टरों के कर्जे माफ करने का विश्वास दिला रहा है। कोई मुफ्त तीर्थ यात्रा करवाने का लारा लगा रहा है तो कोई महिलाओं को घर बैठे-बिठाए पैसे बांटने की बात कह रहा है। कोई लड़कियों के विवाह पर शगुन देने के लिए कह रहा है तो कोई मुफ्त मोबाइल, लैपटॉप, स्कूटी, साइकिल आदि बांटने का लारा लगा रहा है। 

पंजाबियों को भिखमंगे होने का एहसास क्यों करवाया जा रहा है? जागती जमीं वाले तथा इंकलाबी इतिहास के सृजक पंजाबियों पर भूखे-नंगे तथा मांग कर खाने वाली कौम का लेबल क्यों लगाया जा रहा है? हम हैरान हैं कि इन राजनीतिक दलों का कोई भी नेता यह क्यों नहीं कहता कि मैं पंजाब को ड्रग माफिया, रेत माफिया, जंगल माफिया, ट्रांसपोर्ट माफिया, केबल माफिया, गैंगस्टर माफिया, जमीन माफिया से निजात दिलवाऊंगा। 

मैं पंजाब में उद्योग लेकर आऊंगा और रोजगार के इतने अवसर पैदा करूंगा। कोई नहीं कह रहा कि स्कूलों, कालेजों में अध्यापकों-लैक्चरारों की अनगिनत खाली पड़ी असामियां भर कर गत पांच वर्षों से सड़कों पर धक्के खाते, पानी की टंकियों पर चढ़ते, पुलिस के डंडे खाते, पानी की तेज बौछारें सहते टैट तथा यू.जी.सी. पास शिक्षित नौजवानों को रोजगार देगा। कोई नहीं कह रहा कि पंजाब के सरकारी अस्पतालों की दशा सुधार कर वहां काबिल डाक्टर, पैरामैडीकल स्टाफ तथा दवाएं व अन्य जीवन रक्षक सुविधाएं उपलब्ध करवाएंगे। 

कोई नहीं कह रहा कि नशों में डूब रही नौजवान पीढ़ी जो ड्रग माफिया तथा गैंगस्टरों के हाथों में खेल रही है, अपराधों की ओर बढ़ रही है, उसे रोकने के लिए उनके हाथों में नशे व हथियारों की बजाय काम के औजार पकड़वाएंगे। कोई नहीं कह रहा कि पंजाब में अपने अंधेरे भविष्य को देखते हुए विदेशों की ओर रुख कर रही प्रतिभा को पंजाब में रोकने का प्रयास करूंगा। खुम्बों की तरह उग आए लाखों आईलैट्स सैंटरों के माध्यम से विदेशी कम्पनी को जा रहा पंजाब का अनगिनत पैसा रोक कर उसे पंजाब की तरक्की के लिए खर्च करूंगा। 

कोई नहीं कह रहा कि पंजाब की उजड़ती इंडस्ट्री को पुन: पैरों पर खड़ा होने तथा पंजाब में व्यापार के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध करवाऊंगा। कोई नहीं कह रहा कि आम नागरिक को शिक्षा, स्वास्थ्य तथा सुरक्षा के मूल संवैधानिक अधिकार यकीनी बनाऊंगा। कोई नहीं कह रहा कि पंजाब की नष्ट हो रही विरासती संस्कृति को संभालने का कोई प्रयास करूंगा। 

यहां तो सभी लीडर बरसाती मेंढकों की तरह मुफ्त, मुफ्त और मुफ्त का राग अलाप रहे हैं। इन्हें भला कोई पूछे कि पंजाब तो पहले ही लगभग 3 लाख करोड़ रुपए का कर्जदार हुआ पड़ा है। वित्त मंत्री रोज खजाना खाली होने का रोना रोते हैं। आपके पास कौन-सा अलादीन का चिराग है जिससे रातों-रात सरकारी खजाने भर जाएंगे तथा सब कुछ मुफ्त लुटा देंगे। ‘पल्ले नहीं धेला करती मेला-मेला’ वाला हिसाब हुआ पड़ा है इनका। अच्छी-भली मेहनतकश, गौरवशाली तथा अनखीली पंजाबी कौम को जबरन हाथ फैलाने के लिए मजबूर क्यों कर रहे हो? इनके हाथों में मुफ्त का लैपटॉप पकड़ाने की बजाय इन हाथों को मेहनत करके कमाने तथा खाने के योग्य बनाओ ताकि बाबे नानक का विश्वव्यापी फलसफा ‘किरत करो, वंड छको ते नाम जपो’ व्यावहारिक रूप में प्रफुल्लित हो सके। 

इससे भी अधिक जरूरत है पंजाबियों को इन मदारियों के हाथों का जमूरा न बन कर इनसे प्रश्न पूछने की। जैसे कि ‘गुरु’ अपनी ही सरकार से बांहें फैला-फैला कर पूछ रहा है तथा अपनी ही सरकार को प्रश्नों के कटघरे में खड़ा कर रहा है। अन्यथा भेड़ों को मुफ्त कंबल बांट कर बाद में उनकी ही ऊन मूंडने पर नंग-धड़ंगी  होकर रह जाएंगी। इनसे प्रश्न पूछना आम जनता का संवैधानिक अधिकार है। अन्यथा मुफ्त के लारे लगा कर यह पंजा हमारा गला घोंट देगा। तराजू डंडी मार कर हमारा हिस्सा छीनती रहेगी, हाथी हमारे अरमानों को अपने पैरों के नीचे रौंद कर निकल जाएगा, झाड़ू अंदर-बाहर सभी का सब कुछ पोंछ देगा तथा कीचड़ में उगा कमल हमें भी दलदल में धकेल देगा। 

इन राजनीतिक पहलवानों के सिरों पर कलगियां अलग-अलग रंग की हो सकती हैं लेकिन इनके चरित्र एक ही हैं, जनता को लूटने, पीटने तथा बांटने के ढंग-तरीके एक ही हैं। इनका लक्ष्य एक है। कंधे हमारे हैं और निशाना भी एक है। पंजाबियो, इनसे पहले पिछले 5 वर्षों का हिसाब मांगना चाहिए। इनको याद दिलाओ कि पिछले चुनावी घोषणापत्र के कितने वायदे पूरे किए गए? पूछो कि आप ये मुफ्त के लंगर क्या पिछले पांच वर्षों में दोनों हाथों से की गई लूट से लगाओगे?

इनसे कहो कि हमारी मेहनत का सही मोल डालो, हमारे बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दो। उनको रोजगार दो, हमें अच्छा स्वास्थ्य तथा स्वच्छ वातावरण दो। भ्रष्टाचार, व्यभिचार, गैंगवार, बलात्कार, चोरबाजारी, लूटखसूट, दंगे-फसादों, धरनों, हड़तालों, रोज के बंदों से छुटकारा दिलाओ। हम पंजाबी हैं, हमने पहले भी अपनी कौम की इज्जत की खातिर बहुत मूल्य चुकाया है पर अब फिर चुकाने के लिए तैयार हैं। हमें आपका कुछ भी मुफ्त में मंजूर नहीं। पंजाबियो, हिन्दी कवि दुष्यंत का यह शे’र हमेशा याद रखें : 

‘रहनुमाओं की अदाओं पे फिदा है दुनिया,
इस बहकती दुनिया को संभालो यारो।
कौन कहता है आकाश में सुराख नहीं हो सकता,
बस एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।’-डा. धर्मपाल साहिल
 

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