क्यों नहीं रुकते आतंकी हमले?

Edited By Updated: 17 Nov, 2025 05:45 AM

why do terrorist attacks not stop

एक बार फिर आतंकवादी हमलों ने देश की राजधानी दिल्ली को दहला दिया। लाल किले के भीड़ भरे इलाके में ये जानलेवा विस्फोट उस साजिश से कहीं कम थे जो पूरी दिल्ली को दहलाने के लिए रची गई थी। इन आतंकी हमलों के पीछे पढ़े लिखे ऐसे लोग शामिल हैं जिनसे ऐसी...

एक बार फिर आतंकवादी हमलों ने देश की राजधानी दिल्ली को दहला दिया। लाल किले के भीड़ भरे इलाके में ये जानलेवा विस्फोट उस साजिश से कहीं कम थे जो पूरी दिल्ली को दहलाने के लिए रची गई थी। इन आतंकी हमलों के पीछे पढ़े लिखे ऐसे लोग शामिल हैं जिनसे ऐसी वहशियाना हरकत की उम्मीद नहीं की जा सकती। प्रश्न है कि जब देश की सुरक्षा एजैंसियां हर समय अपने पंजों पर रहती हैं उसके बावजूद भी देश की राजधानी जोकि सुरक्षा के लिहाज से काफी मुस्तैद मानी जाती है, वहां पर इतनी भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री लेकर एक आतंकी कैसे घूम रहा था? कैसे यह विस्फोटक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पहुंचा? हमारी रक्षा और गृह मंत्रालय की खुफिया एजैंसियां क्या कर रही थीं?

इन हमलों से सारा देश हतप्रभ है। पहलगाम में हुई आतंकवादी वारदात के 6 महीने बाद ही ये दूसरा बड़ा झटका लगा है। सवाल उठता है कि देश में आतंकवाद पर कैसे काबू पाया जाए? हमारा देश ही नहीं दुनिया के तमाम देशों का आतंकवाद के विरुद्ध एकतरफा सांझा जनमत है। ऐसे में सरकार अगर कोई ठोस कदम उठाती है तो देश उसके साथ खड़ा होगा। उधर तो हम सीमा पर लडऩे और जीतने की तैयारी में जुटे रहें और देश के भीतर आई.एस.आई. के एजैंट आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देते रहें तो यह लड़ाई नहीं जीती जा सकती। 
मैं पिछले 30 वर्षों से अपने लेखों में लिखता रहा हूं कि देश की खुफिया एजैंसियोंं को इस बात की पुख्ता जानकारी है कि देश के 350 से ज्यादा शहरों और कस्बों की सघन बस्तियों में आर.डी.एक्स. मादक द्रव्यों और अवैध हथियारों का जखीरा जमा हुआ है जो आतंकवादियों के लिए रसद पहुंचाने का काम करता है। प्रधानमंत्री को चाहिए कि इसके खिलाफ  एक ‘आप्रेशन क्लीन स्टार’ या ‘अपराधमुक्त भारत अभियान’ की शुरुआत करें और पुलिस व अर्धसैनिक बलों को इस बात की खुली छूट दें जिससे वे इन बस्तियों में जाकर व्यापक तलाशी अभियान चलाएं और ऐसे सारे जखीरों को बाहर निकालें।

गृहमंत्री अमित शाह ने दिल्ली में हुए धमाके के बाद अपने बयान में यह साफ  कहा कि आतंकियों को ऐसा सबक सिखाया जाएगा कि पूरी दुनिया देखेगी।  उल्लेखनीय है  कि कश्मीर के खतरनाक आतंकवादी संगठन  ‘हिजबुल मुजाहिद्दीन’ को दुबई और लंदन से आ रही अवैध आर्थिक मदद का खुलासा 1993 में मैंने ही अपनी वीडियो समाचार पत्रिका ‘कालचक्र’ के 10वें अंक में किया था। इस घोटाले की खास बात यह थी कि आतंकवादियों को मदद देने वाले स्रोत देश के लगभग सभी प्रमुख दलों के बड़े नेताओं और बड़े अफसरों को भी यह अवैध धन मुहैया करा रहे थे। इसलिए सी.बी.आई. ने इस कांड को दबा रखा था। घोटाला उजागर करने के बाद मैंने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और आतंकवादियों को आ रही आर्थिक मदद के इस कांड की जांच करवाने को कहा।सर्वोच्च अदालत ने मेरी मांग का सम्मान किया और भारत के इतिहास में पहली बार अपनी निगरानी में इस कांड की जांच करवाई। बाद में यही कांड  ‘जैन हवाला कांड’ के नाम से मशहूर हुआ। 

उन दिनों हांगकांग से ‘फार ईस्टर्न इकोनॉमिक रिव्यू’  के संवाददाता ने ‘हवाला कांड’ पर मेरा इंटरव्यू लेकर कश्मीर में तहकीकात की और फिर  जो रिपोर्ट छपी, उसका निचोड़ यह था कि आतंकवाद को पनपाए रखने में बहुत से प्रभावशाली लोगों के हित जुड़े हैं। उस पत्रकार ने तो यहां तक लिखा कि कश्मीर में आतंकवाद एक उद्योग की तरह है। जिसमें बहुतों को मुनाफा हो रहा है। आतंकवाद को रसद पहुंचाने का मुख्य जरिया है हवाला कारोबार। अमरीका के वल्र्ड ट्रेड सैंटर के आतंकी हमले के बाद से अमरीका ने इस तथ्य को समझा और हवाला कारोबार पर कड़ा नियन्त्रण कर लिया। नतीजतन तब से आज तक वहां आतंकवाद की कोई घटना नहीं हुई। जबकि भारत में हवाला कारोबार बेरोकटोक जारी है। इस पर नियन्त्रण किए बिना आतंकवाद की श्वास नली को काटा नहीं जा सकता। एक कदम संसद को उठाना है, ऐसे कानून बनाकर जिनके तहत आतंकवाद के आरोपित मुजरिमों पर विशेष अदालतों में मुकद्दमे चला कर 6 महीनों में सजा सुनाई जा सके। जिस दिन मोदी सरकार ये 3 कदम उठा लेगी उस दिन से भारत में आतंकवाद का बहुत हद तक सफाया हो जाएगा।

यह चिंता का विषय है कि तमाम दावों और आश्वासनों के बावजूद पिछले चार दशकों में कोई भी सरकार आतंकवाद के खिलाफ  कोई कारगर उपाय कर नहीं पाई है। हर देश के नेता आतंकवाद को व्यवस्था के खिलाफ  एक अलोकतांत्रिक हमला मानते रहे हैं और बेगुनाह नागरिकों की हत्याओं के बाद यही कहते रहे हैं कि आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पर कई दशक बीत जाने के बाद भी विश्व में आतंकवाद के कम होने या थमने का कोई लक्षण हमें दिखाई नहीं देता। नए हालात में जरूरी हो गया है कि आतंकवाद के बदलते स्वरूप पर नए सिरे से समझना शुरू किया जाए। हो सकता है कि आतंकवाद से निपटने के लिए बल प्रयोग ही अकेला उपाय न हो। क्या उपाय हो सकते हैं उनके लिए हमें शोध-परख अध्ययनों की जरूरत पड़ेगी। अगर सिर्फ  70 के दशक से अब तक यानी पिछले 40 साल के अपनी सोच विचारदृष्टि, अपनी कार्यपद्धति पर नजर डालें तो हमें हमेशा तदर्थ उपायों से ही काम चलाना पड़ा है। इसका उदाहरण कंधार विमान अपहरण के समय का है जब विशेषज्ञों ने हाथ खड़े कर दिए थे कि आतंकवाद से निपटने के लिए हमारे पास कोई सुनियोजित व्यवस्था ही नहीं है। मातम की इस घड़ी में रोने की बजाय सीमा सुरक्षा पर गिद्धदृष्टि और दोषियों को कड़ा जवाब देने की कार्रवाई की जानी चाहिए। पर यह भी याद रहे कि हम जो भी करें वह दिलों में आग और दिमाग में बर्फ  रखकर करें।-विनीत नारायण

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