उद्यमियों पर जेल की सजा की हजारों धाराएं क्यों

Edited By ,Updated: 23 Feb, 2022 05:24 AM

why thousands of sections of jail sentence on entrepreneurs

कल्पना कीजिए कि एक फैक्टरी मालिक को अपनी फैक्टरी का शौचालय साफ न रखने की सजा देशद्रोह की सजा के बराबर है। केंद्र व राज्यों के बिजनैस कानून के पालन में जाने-अनजाने हुई चूक पर हजारों धाराएं उन्हें जेल की सलाखों के पीछे ले जा सकती हैं। कारोबार पर कानूनी

कल्पना कीजिए कि एक फैक्टरी मालिक को अपनी फैक्टरी का शौचालय साफ न रखने की सजा देशद्रोह की सजा के बराबर है। केंद्र व राज्यों के बिजनैस कानून के पालन में जाने-अनजाने हुई चूक पर हजारों धाराएं उन्हें जेल की सलाखों के पीछे ले जा सकती हैं। कारोबार पर कानूनी अंकुश के लिए पंजाब में 31 कानूनों,1427 नियमों के पालन और जेल की सजा की 1273 धाराओं की तलवार उद्यमियों के सिर पर लटकी है। देश की आजादी के समय से ‘ओवर रैगुलेशन’ के शिकार उद्यमियों को इनके चंगुल से छुड़ाने के केंद्र व राज्य सरकार द्वारा किए गए अब तक के प्रयास बहुत कम हैं। 

जबरदस्ती की कई तरह की धाराओं के दुरुपयोग से भ्रष्टाचार और इंस्पैक्टर राज बेलगाम बढ़ रहा है। एक उद्यमी द्वारा जाने-अनजाने में श्रमिकों की सुविधाओं में मामूली चूक होने पर भी दंड के प्रावधान भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.)1860 के तहत हत्या और लापरवाही के कारण मौत जैसे जघन्य अपराधों के बराबर हैं। फैक्टरी के शौचालय की नियमित सफाई के अलावा हर 4 महीने में एक बार सफेदी न कराने पर उद्यमी पर राजद्रोह के अपराध के बराबर 1 से 3 साल की सजा का मामला दर्ज हो सकता है। 

फैक्टरी एक्ट-1948 और पंजाब फैक्टरी रूल्स-1952 के तहत नियमों का पालन न करने पर जेल की सजा के लिए 485 धाराएं लगाई गई हैं। शौचालय की सफाई कायम न रखने पर फैक्टरी एक्ट-1948 की धारा 92 और 93 में अधिकतम 2 वर्ष की जेल या 1 लाख रुपए का जुर्माना या दोनों का ही प्रावधान है, जबकि धारा 94 के तहत 3 साल तक जेल की सजा या 2 लाख रुपए तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। पुरुष और महिला कर्मचारियों के लिए अलग-अलग शौचालय न होना और उन्हें बगैर रंगाई-पुताई के रखने की चूक के लिए भी नि:संदेह एक वैधानिक चेतावनी हो सकती है, न कि हमारे उद्यमियों को जेल की सजा। 

संगठित और गैर-संगठित क्षेत्र के 50 करोड़ से अधिक श्रमिकों के कल्याण के लिए 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को 4 नए कोड में समेटा गया है, लेकिन उद्यमियों पर जेल की सजा की तलवार फिर भी लटकी है। दुर्भाग्य से केंद्र सरकार के 4 नए लेबर कोड-वेज कोड, सोशल सिक्योरिटी कोड, ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हैल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस एवं इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड भी उद्यमियों को जेल की सजा के प्रावधान से मुक्ति का भरोसा नहीं दे पाए। नए कोड के तहत नियमों के किसी भी प्रावधान के पालन में चूक पर 3 महीने जेल की सजा या एक लाख रुपए तक का जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। इससे पहले के नियमों में 6 महीने तक की जेल की सजा और 10,000 रुपए तक का जुर्माना था। 

मैटरनिटी बैनिफिट एक्ट-1961 के तहत नियमों का उल्लंघन करने पर 3 महीने से 1 साल तक जेल की सजा और जुर्माना हो सकता है। कर्मचारी राज्य बीमा निगम अधिनियम (ई.एस.आई.सी. एक्ट)1948 में धारा 85 के तहत 1 वर्ष तक की जेल और 5000 रुपए तक जुर्माना हो सकता है। कर्मचारियों के वेतन से की गई कटौती का भुगतान ई.एस.आई.सी. को जमा न करने पर धारा 85-ए के तहत आपराधिक विश्वासघात के बराबर निर्धारित आई.पी.सी. की धारा 406 के तहत 5 साल तक की जेल की सजा हो सकती है। इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट 1947 के तहत 6 महीने तक की कैद या 5000 रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है। 

हम में से कोई भी देश के जरूरी श्रम कल्याण सुधारों और नियमों के खिलाफ नहीं है, लेकिन उद्यमियों को अनुकूल और संपन्न व्यावसायिक माहौल के लिए जबरन जेल के प्रावधान सही नहीं हैं। ‘इंस्पैक्टर राज’ के आतंक से कारोबार करने में आसानी की धारणा धराशायी हो रही है। 31 साल के आर्थिक सुधारों के बाद भी इंस्पैक्टर राज की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में पंजाब सरकार ने 44 विभागों द्वारा लागू किए गए 1498 जरूरी कंप्लायंसेज को खत्म किया है। हालांकि कोराबार को आसान करने के लिए ऐसे और कंप्लायंसेज को खत्म किए जाने की जरूरत है। श्रम कानून में ही जेल की सजा के लगभग 500 प्रावधान हैं, जो मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर की विफलता का एक बड़ा कारण है। 

एम.एस.एम.ईज के विकास में बाधा : पंजाब  में लगभग 2.70 लाख सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यम (एम.एस.एम.ईज) हैं। अक्सर कहा जाता है कि ये उद्यमी एम.एस.एम.ईज की श्रेणी में ही रहना पसंद करते हैं क्योंकि कारोबार को और बढ़ाने की कोशिश में वे एक ऐसी अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन जाते हैं जिसमें एक वर्ष में कम से कम 400 से अधिक ऐसे नियमों का पालन जरूरी होगा, जिनमें चूक उन्हें जेल की सलाखों के पीछे धकेल सकती है। 

आगे का रास्ता : कहा जा रहा है कि उद्यमियों के लिए कई सारे नियमों के पालन में चूक पर जेल की सजा के प्रावधान को खत्म करने के लिए कानून आयोग  द्वारा  एक ‘रैगुलेटरी इंपैक्ट एसैसमैंट कमेटी’ का गठन किया जा रहा है। इस दिशा में तीन बिंदुओं पर यदि नीति आयोग और पंजाब सरकार विचार करती है तो उद्यमियों को जेल की सजा के कई प्रावधानों से राहत मिल सकती है। 

पहला, नियमों का पालन न होने को प्रक्रियात्मक चूक माना जाए और जेल की सजा की बजाय जुर्माना या अस्थायी रूप से काम पर रोक लगाई जा सकती है। दूसरा, पर्यावरण को जानबूझकर नुक्सान, श्रमिकों की सुरक्षा में लापरवाही, लोन डिफाल्ट और टैक्स चोरी के मामलों में ही जेल की सजा का प्रावधान कायम रहे। तीसरा, सभी श्रम सुधार और कारोबार कानूनों को एक व्यापक कानून के तहत लाकर उद्यमियों और श्रमिकों की गरिमा, बेहतर अर्थव्यवस्था और रोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकते हैं। (सोनालीका ग्रुप के वाइस चेयरमैन एवं कैबिनेट मंत्री रैंक मेंं पंजाब प्लानिंग बोर्ड के वाइस चेयरमैन)-अमृत सागर मित्तल

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