महिलाओं को चुनावों में कम प्रतिनिधित्व क्यों

Edited By Updated: 15 Dec, 2022 05:18 AM

why women are under represented in elections

संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण प्रदान करने वाला एक विधेयक 2 दशकों से अधिक समय से लंबित है।

संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण प्रदान करने वाला एक विधेयक 2 दशकों से अधिक समय से लंबित है। लगभग सभी राजनीतिक दल चुनाव से पहले अपने घोषणा पत्र में महिलाओं को आरक्षण देने का वायदा तो करते हैं लेकिन चुनावों के बाद अक्सर आसानी से भूल जाते हैं। कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनावों में महिलाओं के लिए 40 प्रतिशत का कोटा लागू करके एक अच्छी पहल की थी। लेकिन इस साल के शुरू में हुए चुनावों में चार राज्यों में ऐसा नहीं हुआ। हालांकि यह एक अच्छी पहल थी लेकिन गुजरात और हिमाचल प्रदेश के हालिया विधानसभा चुनावों में भी इसे आगे नहीं बढ़ाया गया। अन्य प्रमुख राजनीतिक दल महिलाओं के लिए अधिक आरक्षण देने की बात करते रहते हैं।

महिलाएं लगभग आधी मतदाता हैं। लेकिन टिकट बांटते समय यह बात भुला दी जाती है। महिलाओं की भूमिका आमतौर पर मतदाताओं के रूप में शुरू और समाप्त होती है। नतीजतन उन्हें लुभाने के लिए रियायतें और मुफ्त सुविधाओं का सभी पार्टियां ऑफर करती हैं।  महिलाओं को मासिक नकद भुगतान, मुफ्त दोपहिया वाहन, लैपटॉप, मोबाइल और ऐसे अन्य प्रोत्साहनों का प्रलोभन दिया जाता है। गुजरात में इस बार विभिन्न राजनीतिक दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों की कुल 139 महिला उम्मीदवार मैदान में उतरी थीं जिनमें से केवल 40 मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों से संबंधित थीं। इनमें से केवल 15 विजयी हुईं, जिनमें से 14 भाजपा से और एक कांग्रेस से थी।

इसी तरह हिमाचल प्रदेश में 68 सीटों के लिए केवल 24 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं। इनमें से केवल एक विजेता बनकर उभरी। हिमाचल विधानसभा में रीना कश्यप (भाजपा) एकमात्र महिला विधायक होंगी। उन्होंने कांग्रेस की दयाल प्यारी को हराया। भाजपा ने 6 महिला उम्मीदवार (8 प्रतिशत) चुनाव में उतारी थीं। कांग्रेस ने केवल 3 (4 फीसदी) महिलाओं को उतारा था। दिलचस्प बात यह है कि महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में 4.5 प्रतिशत से अधिक मतदान किया और चुनाव के अंतिम परिणाम में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

जहां कांग्रेस ने महिलाओं के लिए 1500 रुपए मासिक वजीफा देने का वायदा किया था, वहीं भाजपा ने एक अलग विज्ञप्ति जारी कर नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 33 फीसदी आरक्षण, गर्भवती महिलाओं के लिए 25,000 रुपए का अनुदान, स्कूली छात्राओं के लिए बाइसाइकिल और उच्च शिक्षा हासिल करने वाली छात्राओं के लिए स्कूटर देने का वायदा किया था। राज्यों और संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 15 प्रतिशत भी नहीं है। मौजूदा लोकसभा में यह महज 14.94 फीसदी है जबकि राज्यसभा में 14.05 प्रतिशत महिलाएं हैं। यदि राज्यों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में महिलाओं का सर्वाधिक प्रतिनिधित्व है।

यहां पर 14.44 फीसदी विधायक महिलाएं हैं। 8 राज्य ऐसे हैं जहां महिलाओं की आबादी पुरुषों से ज्यादा है लेकिन विधानसभाओं में उनका प्रतिनिधित्व महज 5 से 8 प्रतिशत था। वास्तव में मिजोरम और नागालैंड जैसे कुछ राज्यों में कोई महिला विधायक नहीं है। जबकि संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने के लिए लंबे समय से लंबित बिल को बढ़ाने में मदद मिलेगी। महिलाओं के प्रतिनिधित्व को प्रोत्साहित करने के लिए राजनीतिक दलों को आंतरिक नीतियां बनानी चाहिएं।
 

आईसलैंड, नार्वे, नीदरलैंड्स सहित कई ऐसे देश हैं जो लैंगिक समानता के लिए जाने जाते हैं। उनके पास महिलाओं को लेकर उच्च हिस्सेदारी है। महिलाओं ने अपनी संसदों में उच्च प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि राजनीतिक दलों के पास सुनिश्चित करने के लिए आंतरिक नीतियां होती हैं। संसद और विधायी निकायों में महिलाओं के भीतर प्रतिनिधित्व का व्यापक प्रभाव होगा और उन्हें बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। शिक्षा, खेल, कार्पोरेट जगत, बैंकिंग, वित्त, विज्ञान और इंजीनियरिंग सहित विभिन्न क्षेत्रों में महिलाएं बहुत अच्छा कार्य कर रही हैं। कई लोगों ने राजनीति में भी बहुत अच्छा काम किया है लेकिन निर्वाचित निकायों में घोर अपर्याप्त प्रतिनिधित्व बना हुआ है। यह निराशाजनक बात है। यह उच्च समय है कि या तो बिल पारित किया जाए ताकि राजनीतिक दल महिलाओं को न्यूनतम प्रतिनिधित्व देने के लिए आंतरिक आह्वान करें। -विपिन पब्बी

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