‘जो अमरीका में हुआ वह भारत में क्यों नहीं होगा’

Edited By ,Updated: 08 Jan, 2021 06:03 AM

why won t it happen in the united states

आखिर अमरीका में वह हो गया जिसकी आशंका लंबे समय से की जा रही थी। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जिन शक्तियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, उन शक्तियों ने अपना असली, क्रूर और वीभत्स चेहरा दिखा दिया। ट्रम्प समर्थकों ने अमरीकी

आखिर अमरीका में वह हो गया जिसकी आशंका लंबे समय से की जा रही थी। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जिन शक्तियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, उन शक्तियों ने अपना असली, क्रूर और वीभत्स चेहरा दिखा दिया। ट्रम्प समर्थकों ने अमरीकी कांग्रेस पर ही हमला बोल दिया। यह तब हुआ जब संसद जो बाइडेन के राष्ट्रपति होने की औपचारिकता पूरी करने के लिए बैठी थी। अमरीका में इस बारे में चर्चा चल रही है कि ट्रम्प को अपना कार्यकाल पूरा होने के पहले ही महाभियोग लगा कर हटा दिया जाए। 

अमरीका के इतिहास में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। पिछले 200 साल में हारने वाले नेताओं ने आपत्तियां हजारों की हों, अदालत का दरवाजा खटखटाया हो लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ कि कुर्सी पर बैठा हुआ राष्ट्रपति चुनावी प्रक्रिया को लगातार डिस्क्रेडिट करे और यह मानने को तैयार न हो कि वह हार गया है। और जब सारे दरवाज़े बंद हो जाएं तो अपने समर्थकों को संसद पर ही हमले के लिए उकसाए। यह अकल्पनीय था। 

अमरीका में यह चिंता पिछले छह महीने से जताई जा रही थी कि ट्रम्प हारने के बाद शायद गद्दी नहीं छोड़ें। खुद ट्रम्प  ने इस बात के साफ संकेत दिए थे कि वह हारने पर आसानी से नए राष्ट्रपति के लिए जगह खाली नहीं करेंगे। हजारों लेख इस बारे में लिखे गए। कई विद्वानों ने यह समझने की कोशिश की थी कि अगर राष्ट्रपति ऐसा करते हैं तो फिर संविधान में इससे निपटने का रास्ता क्या हो सकता है। क्या सेना को बुलाकर उन्हें जबरन व्हाइट हाऊस से निकालना पड़ेगा? पर इन लोगों ने भी यह नहीं सोचा था कि ट्रम्प भीड़ को ही भड़का कर चुनाव के नतीजों को पलटने की कोशिश करेंगे। यह एक तरह से तख्ता पलट की कोशिश थी। फर्क सिर्फ इतना था कि यहां राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठा आदमी ही यह काम कर रहा था। 

सबसे पहले तो यह सवाल पूछना चाहिए कि ट्रम्प जैसा आदमी अमरीका का राष्ट्रपति कैसे बन जाता है? ऐसा कौन-सा अवगुण उनमें नहीं है जिसकी निंदा नहीं की जानी चाहिए। वह खुद एक लंपट से अधिक कुछ नहीं हैं, मोहल्ले के उचक्के की तरह उनमें हर वह बुरी आदत है जिसे कोई भी समाज पसंद नहीं करता है या कोई सभ्य व्यक्ति ऐसे आदमी को अपने घर में घुसने नहीं देता।

ये ट्रम्प ही थे जिन्हें कैमरे पर ये कहते सुना गया कि कैसे महिलाएं मशहूर आदमियों के जाल में खुद ही फंस जाती हैं। ये वही शख्स हैं जिसने कानून की खामियों का फायदा उठा कर बड़े पैमाने पर टैक्स की चोरी की। यह वही ट्रम्प हैं जो टैक्स न देना पड़े इसलिए कई बार अपने को दिवालिया घोषित करवाया। यह वही ट्रम्प हैं जिनके हजारों झूठों की लंबी फेहरिस्त न्यूयार्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट जैसे प्रतिष्ठित अखबारों ने बना रखी है। यह वहीं ट्रम्प हैं जो मीडिया को खुलेआम फेक न्यूज कहते रहे। 

ये वही ट्रम्प हैं जो सरेआम मुसलमानों, लैटिन अमरीकी लोगों के खिलाफ नफरत फैलाने से नहीं चूकते। यह वही ट्रम्प हैं जो नस्लवादी संगठनों की आलोचना नहीं करते। यह वही ट्रम्प हैं जिन्होंने एक अश्वेत नागरिक की पुलिस के हाथों मौत हो जाने पर सड़कों पर हो रहे प्रदर्शन को कुचलने के लिए सेना का आह्वान किया था और ‘ब्लैक लाइव्ज मैटर’ आंदोलन का मजाक उड़ाया था। 

अमरीका दुनिया के आधुनिक इतिहास का सबसे पुराना लोकतंत्र है। 1776 में अमरीका के 13 राज्यों ने एक साथ ब्रिटेन के शासन के खिलाफ बगावत की। तकरीबन 6 साल तक अमरीका को आजादी हासिल करने के लिए ब्रिटेन की फौज से जंग लडऩी पड़ी थी। जार्ज वाशिंगटन ने इस अमरीकी फौज का नेतृत्व किया था और वही पहले राष्ट्रपति भी बने। एक लिहाज से अमरीका को आधुनिक समय का पहला रिपब्लिक भी कह सकते हैं। तब से लेकर अब तक उसको दुनिया के सामने एक आदर्श की तरह पेश किया जाता रहा था और यह कहा जाता था कि तमाम मतभेदों के बावजूद अमरीका में मिल बैठ कर आपसी मतभेदों को सुलझा लिया जाता है। पर ट्रम्प  ने इस मिथक को चूर-चूर कर दिया। 

सी.एन.एन. के एक एंकर ने सही कहा है कि ट्रम्प ने ‘मतभेदों को वेपनाइज’ किया यानि मतभेद जो लोकतंत्र की मूल आत्मा है, उसे ही एक हथियार के तौर पर ट्रम्प ने इस्तेमाल किया। अलग विचार या विरोधी विचार रखने वालों को देश के दुश्मन की तरह से पेश किया, ऐसे लोगों के खिलाफ हिंसा और नफरत का वातावरण बनाया। क्या यह मानसिकता आज भारत में नहीं देखी जा सकती है? क्या यह सच नहीं है कि सोशल मीडिया और टी.वी. के जरिए विरोधियों और अल्पसंख्यक तबके के खिलाफ नफरत और हिंसा का माहौल नहीं बनाया जा रहा है? 

शाहीन बाग प्रोटैस्ट, कोरोना के समय तबलीगी जमात पर हमला और अब किसान आंदोलन को खालिस्तानी बताने की कोशिश, इस ओर इशारा नहीं करते कि भारत में भी कमोबेश वैसी ही स्थिति बना दी गई है। सत्ता से इत्तेफाक न रखने वालों को देशद्रोही बताना, देश का दुश्मन कहना, एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। ऐसे में इस आशंका से कैसे इंकार किया जा सकता है कि जो कुछ अमरीका में हुआ देर-सवेर वह स्थिति भारत में नहीं होगी? 

आखिर समाज को क्या हो गया है कि वह ऐसे नेताओं की बातों पर भरोसा करने लगा है, उन्हें अपना नेता मान मरने-मारने पर उतारू हो जाता है? क्या समाज पूरी तरह से बदल गया है? क्या जनता पर पागलपन सवार हो गया है? क्या लिबरल समाज यह आत्म मंथन करने को तैयार है? ट्रम्प और उन जैसों की निंदा करना तो आसान है पर आत्म-परिष्कार के लिए आत्म-मंथन करने को कितने राजी हैं? मुझे लगता है समस्या बेहद गंभीर है और यह समझना कि जो अमरीका में हुआ, वह एक अपवाद है, बेहद आत्मघाती कदम साबित होगा।-आशुतोष
 

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