क्या दूसरे चरण में और भी ज्यादा वोटिंग होगी?

Edited By Updated: 09 Nov, 2025 03:53 AM

will there be more voting in the second phase

बिहार चुनाव के पहले चरण का मतदान पूरे चुनाव को जलेबी बना रहा है। पिछली बार से करीब 8 फीसदी ज्यादा वोटिग हुई है। अभी चुनाव आयोग का अंतिम आंकड़ा बाकी है। माना जा रहा है कि 2020 में जहां 57 फीसदी वोटिंग हुई थी इस बार अंतिम आंकड़ा 67 को छू सकता है।

बिहार चुनाव के पहले चरण का मतदान पूरे चुनाव को जलेबी बना रहा है। पिछली बार से करीब 8 फीसदी ज्यादा वोटिग हुई है। अभी चुनाव आयोग का अंतिम आंकड़ा बाकी है। माना जा रहा है कि 2020 में जहां 57 फीसदी वोटिंग हुई थी इस बार अंतिम आंकड़ा 67 को छू सकता है। वैसे 2020 की इन्हीं सीटों की बात करें तो यह आंकड़ा तब का 46.7 था यानी इस बार जो मतदान हुआ वह इससे 17.96 फीसदी ज्यादा है। तो अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि इतना ज्यादा वोटर किसे निपटाने या किसे बचाने बूथ तक पहुंचा । 

पहले चरण में कुल 18 जिलों में मतदान हुआ इसमें से 10 जिलों में तो बम्पर वोटिंग हुई लेकिन बाकी 8 जिलों में भी पहले के मुकाबले ज्यादा वोटिंग हुई। इस का मतलब क्या निकाला जाए? एक तर्क यह है कि पूरे बिहार में कोई एक मुद्दा काम करता नजर आ रहा है। दूसरा तर्क यह है कि महिलाओं ने नीतीश कुमार को वोट दिया है। तीसरा तर्क है कि जेन-जी ने तेजस्वी यादव को नौकरी लगने का अग्रिम मिठाई वोट दिया है। कुछ लोग इसे सुनियोजित वोट चोरी से जोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि उन जिलों में सबसे ज्यादा वोटिंग हुई हैं जहां सबसे ज्यादा वोट काटे गए थे तो शुरूआत इसी आरोप की पड़ताल से करते हैं।

वोट प्रतिशत का बढऩा एस.आई.आर. के कारण संभव हो सका है। पहली सूची 7.89 करोड़ वोटरों की थी जिसे  घटाकर 7.42 करोड़ कर दिया गया। स्वाभाविक है कि एक भी वोट नहीं बढऩे की सूरत में भी वोट प्रतिशत में इजाफा होना ही है। अब सवाल हो सकता है कि 10 फीसदी वोट एस.आई.आर. के कारण बढ़ा हो लेकिन बाकी का 8-10 फीसदी अतिरिक्त वोट किसका है, किस मुद्दे पर है, किसके खाते में गया है, एन.डी.ए. या महागठबंधन के हिस्से आया है या एन.डी.ए. में नीतीश और महागठबंधन में तेजस्वी के लिए आया है या फिर प्रशांत कुमार (पी.के.) की स्वराज पार्टी के पास जा रहा है। वैसे पी.के. ने चुनाव का माहौल बनाया और नौकरी, पलायन,  आधे-अधूरे विकास जैसे मुद्दों को जोरदार ढंग से सामने रखा। इसके लिए बिहार की जनता पी.के. का शुक्रिया अदा तो करती है लेकिन क्या किंगमेकर की भूमिका में भी लाएगी या 5 साल इंतजार करने को कह रही है।

महिला वोटर बड़ी तादाद में निकलीं। क्या मान कर चला जाए कि 10 हजारी योजना काम कर गई। जब तक चुनाव आयोग महिला वोटर का आंकड़ा सामने नहीं रखता तब तक निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। वैसे भी अगर पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ज्यादा संख्या में निकली हैं तो इसमें हैरानी की बात नहीं है। पिछली बार भी 60 फीसदी महिलाओं ने वोट दिया था जबकि पुरुष वोटर का प्रतिशत 54 ही था। दिलचस्प तथ्य है कि उस समय भी एन.डी.ए. को महागठबंधन के मुकाबले एक फीसदी ज्यादा ही महिला वोट मिला था जबकि महागठबंधन को एन.डी.ए. के मुकाबले दो फीसदी ज्यादा पुरुषों का वोट मिला था। इसका मतलब यह नहीं है कि 2025 में भी 2020 को दोहराया जाएगा लेकिन इतना तय है कि सवा करोड़ महिलाओं के खाते में कुल मिलाकर करीब 12 हजार करोड़ रुपए जमा करना नीतीश कुमार के हक में जरूर जाना ही चाहिए। अगर ऐसा है तो क्या अगली किस्त का ऐलान दूसरे चरण से पहले हो जाएगा और उसमें ज्यादा से ज्यादा जीविका दीदी को शामिल करने की कोशिश होगी। पहला चरण कुल मिलाकर नीतीश कुमार के नाम रहा है। ऐसा आमतौर पर कहा जा रहा है तो क्या वह एन.डी.ए. के सबसे बड़े दल के रूप में सामने आ सकते हैं।

महिलाओं के साथ-साथ युवा वोटरों का उत्साह भी देखा गया। हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि बिहार में 18 से 35 साल के युवा वोटरों की संख्या महिला वोटरों से ज्यादा है लेकिन युवा वोटरों में युवतियां भी शामिल हैं। माना जा रहा है कि 10 हजारी महिला योजना के अलावा अगर किसी अन्य मुद्दे की चर्चा होती रही है तो वह तेजस्वी यादव के हर परिवार में एक को सरकारी नौकरी का वादा है। इसी तरह जीविका दीदी समूह की संयोजिका एक लाख दीदियों को 30 हजार रुपए की सरकार नौकरी देने की भी घोषणा की है। क्या कांटे के मुकाबले की आशंका ने दोनों गठबंधनों के मतदाताओं को प्रेरित किया? क्या यह डर हर जाति के मतदाता को खींच लाया कि अपनी-अपनी जाति के ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवारों को विधानसभा पहुंचाना है? कुछ का कहना है कि चूंकि एस.आई.आर. के बाद का पहला चुनाव था लिहाजा हर वोटर यह निश्चित कर लेना चाहता था कि उसका वोट पड़ जाए ताकि आगे के लिए कोई दिक्कत नहीं आए। पहले चरण की वोटिंग ने दोनों गठबंधनों को कोर्स करैक्शन का मौका दे दिया है। भाजपा को एहसास हो चला है नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं करने का सियासी जुआ भारी भी पड़ सकता है। महागठबंधन के दलों में आपसी समन्वय की कमी को क्या पूरा करने की कोशिश की जाएगी।-विजय विद्रोही 
 

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