किसान की हालत बदले बिना देश में खुशहाली नहीं आ सकती

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Jun, 2018 12:19 AM

without changing the condition of the farmer the country can not prosper

पिछले दिनों एक उद्योगपति ने किसानों के बारे में बड़ी चौंकाने वाली बात कही। एक जमाने में इंफोसिस की संस्थापक टीम के सदस्य रहे और आजकल भाजपा के नजदीक समझे जाने वाले उद्योगपति मोहनदास पाई ने कहा कि देश में सिर्फ 16 प्रतिशत किसान हैं। उन्हें सिर्फ...

पिछले दिनों एक उद्योगपति ने किसानों के बारे में बड़ी चौंकाने वाली बात कही। एक जमाने में इंफोसिस की संस्थापक टीम के सदस्य रहे और आजकल भाजपा के नजदीक समझे जाने वाले उद्योगपति मोहनदास पाई ने कहा कि देश में सिर्फ 16 प्रतिशत किसान हैं। उन्हें सिर्फ संख्या से मतलब नहीं था। वह एक राजनीतिक बात कह रहे थे कि देश में इतने छोटे से वर्ग को नाना प्रकार की सुविधाएं क्यों मिल रही हैं? किसानों की ऋण माफी की बात क्यों होती है? क्या देश किसानों को फसल का दाम देने का बोझ बर्दाश्त कर सकता है?

मैं आमतौर पर इस तरह की हवाई बहसों से दूर रहता हूं लेकिन मामला किसानों का था और एक बड़ा नाम इस तरह का अनर्गल प्रचार कर रहा था इसलिए मुझे इस बहस में कूदना पड़ा। जब उनसे इस आश्चर्यजनक आंकड़े का प्रमाण मांगा गया तो पता लगा कि यह निष्कर्ष किसान की एक गलत परिभाषा पर आधारित था। हमारे राष्ट्रीय आधिकारिक आंकड़ों की बजाय वल्र्ड बैंक के किसी अनुमान पर आधारित था।

और तो और, वह ठीक से गणित करना भी भूल गए थे। मैंने इन सबके प्रमाण पेश किए और उन्होंने कम से कम आंशिक रूप से अपनी बात वापस ले ली। बात आई-गई हो जानी चाहिए थी लेकिन यह सवाल पीछे छोड़ गई कि आखिर भारत में कितने किसान हैं?

जवाब आसान नहीं है। बचपन से हम सुनते आ रहे हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है लेकिन तब से अब तक हकीकत बहुत बदली है। शहरी आबादी अब एक-तिहाई से ज्यादा हो गई है। हर पीढ़ी में जमीन के बंटवारे के चलते खेत छोटे हुए हैं। यूं भी किसान की हालत ऐसी है कि हर कोई ज्यादा मुनाफे और इज्जत का काम ढूंढ रहा है। तो आखिर कितने लोग अब खेती में बचे हैं?

उत्तर ढूंढने के दो रास्ते हैं। पहला स्रोत है पिछली राष्ट्रीय जनगणना, जो 7 साल पहले सन् 2011 में हुई थी। इसमें हर काम करने वाले व्यक्ति (यानी कि किसी भी तरह का काम करके पैसा कमाने वाले) से उसका पेशा पूछा गया था। उस वक्त देश के 48 करोड़ कामगारों में से 26 करोड़ यानी 54.6 प्रतिशत कामगारों का रोजगार कृषि क्षेत्र में था।

ध्यान रहे कि यहां कृषि क्षेत्र का मतलब उसमें काश्तकारी से लेकर पशु पालन, मछली पालन और वन उपज को इक_ा करना शामिल है। अगर इसमें खेतीबाड़ी से बिल्कुल अलग काम को बाहर कर दिया जाए और यह मान लिया जाए कि पिछले 7 सालों में कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों की संख्या में कुछ कमी आई होगी, तब भी हम आसानी से यह कह सकते हैं कि देश की कम से कम आधी कामगार आबादी खेती-किसानी से जुड़ी है।

लेकिन 2011 की जनगणना ने एक चौंकाने वाली बात भी बताई। अब देश में अपनी जमीन पर खेती करने वाले किसान 12 करोड़ से भी कम यानी कामगारों का 24.6 प्रतिशत ही बचे हैं। उनकी तुलना में खेत मजदूरी करने वालों की संख्या कहीं अधिक यानी 14 करोड़ से ज्यादा या कामगारों का लगभग 30 प्रतिशत है। जमीन के बंटवारे के चलते औसत जोत बहुत छोटी हो गई है। देश के दो-तिहाई खेत अब एक हैक्टेयर यानी अढ़ाई एकड़ से छोटे हैं।

अगर बारीक छलनी से किसानों की संख्या के आंकड़े की परीक्षा करनी हो तो दूसरा रास्ता है। सन् 2012 से 2013 के बीच भारत के सैंपल सर्वेक्षण संगठन ने अपने राष्ट्रीय सर्वेक्षण के 70वें राऊंड में किसानों की अवस्था का विशेष सर्वेक्षण किया था। इस सर्वेक्षण ने व्यक्तियों की बजाय ग्रामीण भारत में उन परिवारों की शिनाख्त की जो मुख्यत: खेती पर निर्भर करते हैं। 

इस सर्वेक्षण के हिसाब से देश के गांवों में कुल 15.6 करोड़ परिवार थे जिनमें से 9 करोड़ परिवार यानी ग्रामीण भारत के 58 प्रतिशत परिवार ऐसे थे जिन्हें किसान परिवार कहा जा सकता है यानी ये वे परिवार थे जिन्होंने पिछले साल भर में खेतीबाड़ी की थी और खेती से प्राप्त आमदनी परिवार के गुजर-बसर का प्राथमिक या दूसरा प्रमुख स्रोत था।

पूरे देश के सभी परिवारों के अनुपात के रूप में देखें तो यह 38 प्रतिशत बनता है। यह सर्वेक्षण शहरी इलाकों में नहीं हुआ लेकिन अब सरकारी परिभाषा के हिसाब से कई बड़े गांव उनसे जुड़े कस्बे या छोटी मंडियां भी शहर बन गई हैं, वहां भी कुछ किसान परिवार रहते हैं। अगर उन्हें भी इस गिनती में जोड़ दें तो देश के कम से कम 40 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिन्हें किसान परिवार कहा जा सकता है। यहां भी याद रखने की जरूरत है कि इन किसान परिवारों के लिए भी खेतीबाड़ी उनकी आमदनी का मुख्य स्रोत हो सकता है लेकिन एकमात्र नहीं है। औसतन एक किसान परिवार अपनी कुल आमदनी का आधे से भी कुछ कम खेतीबाड़ी से कमा पाता है।

इस सारे शोध का कपड़छान निचोड़ यही है कि 21वीं सदी के दूसरे दशक में भी भारत कृषि प्रधान देश है। किसान आज भी इस देश का सबसे बड़ा वर्ग है। भारत में आज भी 40 प्रतिशत और 50 प्रतिशत के बीच किसान हैं। किसान की हालत बदले बिना देश में खुशहाली नहीं आ सकती लेकिन आज किसान का मतलब बदल रहा है। आज किसान के बारे में सोचते वक्त अपनी जमीन पर खुद खेती करने वाले किसान के साथ-साथ उस किसान के बारे में सोचना पड़ेगा जो बटाई या ठेके पर खेती करता है, जो खेत मजदूरी से आजीविका कमाता है। किसान आंदोलन को देश का ध्यान किसान की ओर खींचते हुए खुद अपना ध्यान छोटे किसान और खेत मजदूर पर रखना होगा।        योगेन्द्र यादव   yyopinion@gmail.com

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