चौकीदार का चमत्कार, ‘मोदीमय’ हुआ भारत

Edited By ,Updated: 28 May, 2019 02:41 AM

wonder of the watchman india became  modi

यह एक ऐतिहासिक क्षण था जिसमें भारत मोदीमय हो गया। यह हिन्दुत्व बहुसंख्यकवाद की जीत थी। वह मतदाताओं को नए भारत के उदय के बारे में समझाने में सफल रहे। भाजपा ने 303 सीट जीतकर अब की बार 300 पार के वायदे को पूरा किया और यह बदलाव का एक ऐसा बिन्दु है...

यह एक ऐतिहासिक क्षण था जिसमें भारत मोदीमय हो गया। यह हिन्दुत्व बहुसंख्यकवाद की जीत थी। वह मतदाताओं को नए भारत के उदय के बारे में समझाने में सफल रहे। भाजपा ने 303 सीट जीतकर अब की बार 300 पार के वायदे को पूरा किया और यह बदलाव का एक ऐसा बिन्दु है जिसमें मोदी और भाजपा का वर्चस्व है। 

आज नमो शिखर पर हैं और मतदाताओं का उनमें पूर्ण विश्वास होने के कारण उन्हें कोई चुनौती देने वाला नहीं  है। पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद पुन: निर्वाचित होने वाले वह पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने और इस तरह से उन्होंने एक इतिहास की रचना कर डाली। नेहरू और इंदिरा के बाद वह पहले  प्रधानमंत्री हैं जो अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद पूर्ण  बहुमत में आए हैं। इससे पूर्व 1971 में इंदिरा गांधी अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद पूर्ण बहुमत में आई थीं। 

आज आम आदमी में अपनी पहचान की भावना पैदा हुई है और फलत: पूरे देश में कमल खिल रहा है। उन्होंने न केवल पुरानी मंडल, जातीय निष्ठाओं को तोड़ा है अपितु एक नए भारत में हिन्दुत्व के आधार पर राष्ट्रवाद की भावना बनी है। राष्ट्र की महानता और आंतरिक व बाहरी दुश्मनों से खतरे के बारे में लोगों को जागरूक किया है और जाति तथा वर्ग की खाइयों को पाटते हुए एक अखिल भारतीय पहचान बनाई है जिसमें ब्राह्मण, बनिया, अमीर, गरीब सब समा गए हैं। वर्ग और जाति का भेद मिट गया। मोदी ने यह भी स्पष्ट किया कि वह पूरी सत्ता चाहते हैं और उन्होंने यह संदेश दिया भी है और इस संदेश को गरीब, शहरी, ग्रामीण, महत्वाकांक्षी युवाओं और अपने विरोधियों तक पहुंचाया है। 

वह एक ऐसे नेता हैं जो विश्व के बड़े नेताओं में स्थान पाने के हकदार हैं। वह राष्ट्रीय गौरव, विकास और अवसर में विश्वास करते हैं। मोदी को मतदाताओं में अपनी लोकप्रियता का लाभ भी मिला है जो उन्हें मेहनती और भ्रष्टाचार मुक्त राजनेता के रूप में देखते हैं। विपक्ष की दुर्दशा के लिए वह स्वयं जिम्मेदार है। उन्होंने भाजपा के लिए एक ऐसा वातावरण पैदा किया जिससे उसे लाभ मिला। विपक्ष के नेता  अपने अहंकार और महत्वाकांक्षाओं को किनारे नहीं कर सके और वे मोदी के कामगार बनाम नामदार के नारे का मुकाबला नहीं कर पाए। कांग्रेस से लेकर समाजवादी, बसपा से लेकर राजद, सभी भ्रष्टाचार और वंशवादी पाॢटयां हैं। युवा मतदाता वंशवादी नेताओं से प्रभावित नहीं होते हैं क्योंकि ऐसे नेताओं के पास अपनी विरासत के अलावा कुछ नहीं है। 

नि:संदेह 2019 का जनादेश एक मील का पत्थर है जहां पर आम आदमी ने अपनी बुद्धि, विवेक और परिपक्वता का परिचय देते हुए हिन्दी भाषी क्षेत्रों में क्षेत्रीय क्षत्रपों की वोट बैंक की राजनीति तथा संकीर्णता और नग्न व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की मोहल्ला मानसिकता का अंत किया। उन्होंने लोगों की आकांक्षाओं को जगाकर एक सकारात्मक राजनीति का मार्ग प्रशस्त किया। इससे सिद्ध होता है कि जो जीता वही सिकन्दर। इसके अलावा लगता है मोदी कांग्रेस मुक्त भारत के अपने सपने को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं क्योंकि 9 राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों में कांग्रेस का सफाया हो चुका है और पार्टी ने केवल 52 सीटों पर जीत दर्ज की है जो भाजपा के अकेली उत्तर प्रदेश की सीटों से भी कम है। यही नहीं घाव पर नमक छिड़कने का कार्य अमेठी में राहुल की हार ने किया जोकि 1980 से गांधी परिवार का गढ़ रहा है।

कमजोर नेता साबित हुए राहुल
एक समय था कि कांग्रेस अपराजेय थी जिसने 55 वर्षों तक राज किया और अब उसका नामो-निशान नहीं दिखाई दे रहा है। पार्टी राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ विधानसभाओं में अपनी जीत को नहीं भुना पाई और एक ऐसे चुनौतीदाता के रूप में अपनी स्थिति नहीं बनाई जिससे मोदी भयभीत हों। यही नहीं मोदी की तुलना में राहुल कमजोर नेता साबित हुए और वह मोदी की अपील का मुकाबला करने की रणनीति नहीं बना पाए। हालांकि उन्होंने प्रियंका को भी चुनावी मैदान में उतारा किन्तु वह भी निष्प्रभावी रहीं। वह राजनीतिक संवाद कायम नहीं कर पाईं और न ही कोई आकर्षक विचार दे पाईं। राफेल के मुद्दे पर चौकीदार चोर है को रटने का उलटा प्रभाव पड़ा। 

मोदी ने चौकीदार शब्द को ही हड़प लिया व अपने नाम के आगे चौकीदार लगाना शुरू कर दिया और लोगों में यह संदेश दिया कि  चोर मचाए शोर। राहुल की न्याय योजना पर किसी ने भरोसा नहीं किया। हार के बाद राहुल ने त्यागपत्र देने की पेशकश की किन्तु कांग्रेसी चाहते हैं कि पार्टी वंशवाद के शिकंजे में ही जकड़ी रहे। यह एक तरह से अंधे द्वारा अंधे को मार्ग दिखाने का मामला है क्योंकि कोई भी आगे की दिशा के बारे में नहीं जानता। पार्टी को ईमानदारी से आत्मावलोकन करना होगा और परिवार के समक्ष ‘जो हुक्म सरकार’ की संस्कृति को बदलना होगा क्योंकि इससे वोट नहीं मिल रहे हैं। पार्टी को नए नेताओं को लाना होगा और अपनी विश्वसनीयता प्राप्त करनी होगी तथा एक जिम्मेदार और प्रभावी विपक्ष के रूप में व्यवहार करना होगा। 

जहां तक क्षेत्रीय क्षत्रपों का सवाल है द्रमुक, वाई.एस.आर., बीजद को छोड़कर सबकी स्थिति स्पष्ट है। उनका न कोई कार्यक्रम है और न ही कोई नेता है। वे जातीय गणित पर विश्वास करते हैं। सामाजिक इंजीनियरिंग की बातें करते हैं, मोदी विरोधी नारे देते हैं और धर्मनिरपेक्षता की विकृत परिभाषा देते हैं जिसके चलते बहुसंख्यक उनसे दूर हो जाते हैं और अल्पसंख्यक भी उनके साथ नहीं आ पाते। आज मायावती-अखिलेश का बुआ-भतीजे का महागठबंधन विलुप्त हो गया है। ममता पूरी तरह घायल हैं, नायडू इतिहास बन गए हैं और पवार सिमट गए हैं। यही नहीं मतदाताओं ने खिचड़ी सरकार को भी अस्वीकार किया है। 

मतदाताओं का मानना है कि इससे विभिन्न जातियों में टकराव के चलते सामाजिक उथल-पुथल होती है तथा प्रशासन और अर्थव्यवस्था को नुक्सान पहुंचता है। इसके चलते राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय पाॢटयों की भूमिका सिमटती जा रही है। अब वे केवल राज्यों की राजनीति में प्रासंगिक रह गई हैं वह भी जाति आधारित राजनीति में नए समीकरण बनाकर। 

यह मानना गलत होगा कि भारतीय राजनीति से जातिवाद का अंत हो जाएगा किन्तु फिलहाल मोदी ने जाति को वर्ग में बदल दिया है। उन्होंने कहा कि आज देश में केवल दो ही जातियां हैं। एक वे हैं जो गरीब हैं और दूसरे वे हैं जो उनको गरीबी से उठाना चाहते हैं। अन्य कोई जाति नहीं है। मैं गलती कर सकता हूं लेकिन देश को आगे बढ़ाने की दिशा में मैं निरन्तर कार्य करूंगा। अवसर, विकास और राष्ट्रीय गौरव इस वर्ग के लिए प्रिय हैं। यह सच है कि मोदी के 2014 का विकास और अच्छे दिन का वायदा सफल नहीं हुआ किन्तु फिर भी अपनी आॢथक विफलताओं के बावजूद वह असंख्य शौचालयों, पक्के मकानों का निर्माण कर, गैस कनैक्शन उपलब्ध कराकर, जन धन खाते खुलवाकर, सरकार का पैसा लाभार्थी तक पहुंचाना सुनिश्चित कर और संकटग्रस्त किसानों को दो हजार रुपए बांटकर जीत प्राप्त करने में सफल हुए और यह उनके स्वच्छ, उत्तरदायी और ईमानदार इरादों को जताता है। 

सरकार के समक्ष चुनौतियां
किन्तु आने वाले माह उनके लिए चुनौतीपूर्ण  होंगे क्योंकि बेरोजगारी 45 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। तेल के दाम बढ़ रहे हैं, किसान संकट में हैं, उपभोक्ता कम खरीदारी कर रहे हैं और अर्थव्यवस्था में मंदी आ रही है। जीत का जश्न समाप्त होने के बाद रोजी-रोटी का मुद्दा आगे हो जाएगा। 2014 में मोदी ने भारत को पुन: पटरी पर लाने के लिए 10 वर्ष का समय मांगा था अब उन्हें यह समय मिल गया है। देखना है कि क्या होता है। नमो को इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि भारतीय राजनीति गतिशील है और यहां के मतदाता किसी पार्टी से बंधे नहीं हैं। उन्हें जनादेश प्राप्त है इसलिए उन्हें अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बड़े कदम उठाने चाहिएं क्योंकि एक सुदृढ़ अर्थव्यवस्था से आने वाले समय में राजनीतिक लाभ मिलेगा। क्या इसमें वह सफल होंगे? 

कुल मिलाकर 2019 के चुनाव मोदी के व्यक्तित्व और उनकी महानता को दर्शाते हैं। इसलिए समय आ गया है कि वह लुटियन खान मार्कीट गैंग सहित भयभीत और विभाजित राजनेताओं के साथ संवाद कायम करें। मतदाताओं ने उन्हें एक ऐतिहासिक अवसर दिया है और उन्हें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि सत्ता के साथ जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं। उन्हें इस बात के लिए बहुत सारा समय, प्रयास और नेतृत्व क्षमता का उपयोग करना होगा कि चुनाव प्रचार के दौरान उत्पन्न हुई कटुता को कैसे दूर किया जाए, विपक्ष तक कैसे  पहुंचा जाए, यह साबित कैसे किया जाए कि उनके पास शक्तियों का केन्द्रीयकरण होने के बावजूद वह हर किसी को साथ लेकर चल सकते हैं। क्या यह  फकीर इसमें सफल होगा?-पूनम आई. कौशिश

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!