Edited By jyoti choudhary,Updated: 27 Dec, 2025 03:17 PM

दुनिया की दो महाशक्तियों के बीच तनाव एक बार फिर चरम सीमा पर पहुंच गया है। मामला ताइवान का है लेकिन इसकी तपिश वाशिंगटन से लेकर बीजिंग तक महसूस की जा रही है। अमरीका ने जैसे ही ताइवान को हथियारों का एक विशाल जखीरा देने का फैसला किया, चीन का गुस्सा 7वें...
बिजनेस डेस्कः दुनिया की दो महाशक्तियों के बीच तनाव एक बार फिर चरम सीमा पर पहुंच गया है। मामला ताइवान का है लेकिन इसकी तपिश वाशिंगटन से लेकर बीजिंग तक महसूस की जा रही है। अमरीका ने जैसे ही ताइवान को हथियारों का एक विशाल जखीरा देने का फैसला किया, चीन का गुस्सा 7वें आसमान पर पहुंच गया। चीन ने जवाबी कार्रवाई करते हुए अमरीका की बड़ी-बड़ी डिफैंस कंपनियों के दरवाजे अपने यहां हमेशा के लिए बंद करने का फरमान सुना दिया है। चीन ने जो कदम उठाया है, वह बेहद सख्त और व्यापक है। अमरीका की 20 डिफैंस कंपनियां और 10 बड़े अधिकारी अब चीन की ‘ब्लैकलिस्ट’ में डाल दिए गए हैं।
बोइंग से लेकर डिफैंस दिग्गजों तक सभी पर गिरी गाज
इन प्रतिबंधित कंपनियों की लिस्ट में विमान बनाने वाली मशहूर कंपनी बोइंग की सेंट लुइस ब्रांच का नाम सबसे ऊपर है। इसके अलावा नॉर्थ्राप ग्रुम्मन सिस्टम्स कॉर्पोरेशन और एल3 हैरिस मैरीटाइम सर्विसेज जैसी दिग्गज कंपनियों पर भी गाज गिरी है। एक मीडिया चैनल की रिपोर्ट के मुताबिक, चीनी विदेश मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि यह सिर्फ कागजी कार्रवाई नहीं है। इन कंपनियों और व्यक्तियों की चीन में मौजूद हर तरह की संपत्ति को फ्रीज (जब्त) कर दिया जाएगा। इसका सीधा मतलब है कि इनका पैसा और प्रॉपर्टी सब ब्लॉक हो जाएगा। साथ ही चीन का कोई भी घरेलू संगठन या व्यक्ति इनके साथ किसी भी तरह का व्यापार नहीं कर सकेगा। सख्ती इतनी ज्यादा है कि डिफैंस फर्म एंडुरिल इंडस्ट्रीज के फाऊंडर और प्रतिबंधित फर्मों के 9 सीनियर एग्जीक्यूटिव्स को अब चीन में एंट्री तक नहीं मिलेगी।
‘रैड लाइन’ क्रॉस हुई तो किसी भी हद तक जाने को तैयार
इस पूरी कार्रवाई के पीछे बीजिंग का तर्क बिल्कुल स्पष्ट है। चीन ताइवान को अपना अभिन्न अंग मानता है और यह मुद्दा उसकी संप्रभुता की रूह है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने दो टूक शब्दों में कहा कि ताइवान का मुद्दा चीन-अमरीका रिश्तों के बीच एक ऐसी ‘रैड लाइन’ है, जिसे किसी भी हाल में पार नहीं किया जाना चाहिए। चीन ने अमरीका को चेतावनी देते हुए कहा है कि वह ताइवान की आजादी की मांग करने वाली ‘अलगाववादी ताकतों’ को गलत संकेत देना बंद करे। बीजिंग ने साफ किया है कि अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार है। उसका कहना है कि ताइवान के मामले में अगर अमरीका की तरफ से उकसावे की कार्रवाई जारी रही, तो चीन इसका और भी कड़ा और ठोस जवाब देगा।
आखिर किस बात पर भड़का चीन?
अब सवाल उठता है कि आखिर अमरीका ने ऐसा क्या कर दिया जिससे ड्रैगन इतना भड़क गया? दरअसल, अमरीका के डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने ताइवान को अब तक के सबसे बड़े हथियार पैकेज में से एक को मंजूरी दी है। यह सौदा करीब 11.1 अरब डॉलर का है, जो एक रिकॉर्ड रकम है। इस पैकेज में कोई छोटी-मोटी बंदूकें नहीं, बल्कि जंग का रुख पलटने वाले हथियार शामिल हैं। इसमें अत्याधुनिक मिसाइलें, भारी तोपें, हिमर्स रॉकेट लॉन्चर और खतरनाक ड्रोन शामिल हैं। चीन को डर है कि इन हथियारों से ताइवान की सैन्य ताकत बढ़ेगी, जो सीधे तौर पर चीन की सुरक्षा के लिए चुनौती है। हालांकि, ताइवान को हथियारों की यह प्रस्तावित बिक्री अभी अमरीकी कांग्रेस की मंजूरी के अधीन है लेकिन इस प्रस्ताव ने ही दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट घोल दी है।