प्लास्टिक के बारीक कण बन रहे आंतों के दुश्मन

Edited By Updated: 02 Sep, 2025 11:05 PM

fine plastic particles are becoming enemies of the intestines

पी.जी.आई. स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ की रिसर्च में आया सामने, माइक्रोप्लास्टिक से सेहत पर गहरा असर

चंडीगढ़ : हम रोजाना खाने, पीने या सांस के जरिए बिना जाने प्लास्टिक निगल रहे हैं। जो जाने-अनजाने कई बड़ी बीमारियों का खतरा बन रही है। पी.जी.आई. स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ के प्रोफैसर डॉ. रवींद्र खैवाल और उनकी टीम की नई रिसर्च में यह सामने आया है। इंडियन जर्नल ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में प्रकाशित यह  रिसर्च बताती है कि माइक्रोप्लास्टिक (5 मि.मी. से छोटे प्लास्टिक कण) हमारी आंतों, माइक्रोबायोटा और इम्यून सिस्टम को सीधा नुकसान पहुंचा रहे हैं। प्लास्टिक जब टूटकर बहुत छोटे-छोटे टुकड़ों में बदलता है तो इन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। यह कण पानी, मछली, समुद्री भोजन, दूध, नमक यहां तक कि बोतलबंद पानी और हवा में भी पाए गए हैं। रिसर्च में सामने है कि यह कण आंतों की दीवार से चिपककर सूजन, इन्फैक्शन और पाचन गड़बड़ी पैदा करते हैं। रिसर्चर की मानें तो माइक्रोप्लास्टिक केवल पर्यावरण की नहीं बल्कि इंसानी सेहत की भी गंभीर समस्या है। यह हमारी आंतों के बैक्टीरिया को बिगाड़कर इम्यून सिस्टम को कमजोर कर सकता है।


रिसर्च में चौंकाने वाले नतीजे 
रिसर्च में पाया गया कि माइक्रोप्लास्टिक से आंतों के अच्छे बैक्टीरिया कम हो जाते हैं और हानिकारक बैक्टीरिया बढ़ जाते हैं। साथ ही आंतों की परत कमजोर हो जाती है, जिससे हानिकारक तत्व शरीर में घुस जाते हैं। लगातार सेवन से लिवर और किडनी पर भी असर पड़ सकता है। माइक्रोप्लास्टिक सूजन और कई बार कैंसर जैसी बीमारियों की वजह भी बन सकते हैं। रिसर्च टीम के अनुसार इंसान रोजाना औसतन इतनी मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक निगल रहा है, जितनी एक क्रेडिट कार्ड के बराबर है। यानी सोचिए, बिना जाने आपके शरीर में हर हफ्ते प्लास्टिक का एक कार्ड चला जा रहा है। 

रिसर्च के आधार पर दिए सुझाव 
प्लास्टिक बोतल का पानी कम से कम इस्तेमाल करें।

गर्म खाना या चाय/कॉफी प्लास्टिक के कप में न पीएं।

पैक्ड और प्रोसैस्ड फूड की बजाय ताजा खाना चुनें।

सिंगल-यूज प्लास्टिक से दूरी बनाएं।


नीति और जागरूकता की जरूरत 
रिसर्च टीम का मानना है कि सरकार को माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण रोकने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे। डिस्पोजेबल प्लास्टिक के उत्पादन और इस्तेमाल को सीमित करना समय की मांग है। वरना आने वाले समय में यह समस्या महामारी की तरह फैल सकती है। अब वक्त है कि हम अपनी आदतें बदलें और प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगाएं, ताकि आने वाली पीढ़ियां सुरक्षित रहें।

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