दिव्य नुस्खा: शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और वित्तीय स्तर पर लाभ पाएं

Edited By ,Updated: 05 Jul, 2016 11:19 AM

yoga

योग एक संपूर्ण और स्पष्ट विज्ञान है। जो हजारों वर्ष पूर्व वैदिक ऋषियों द्वारा अभ्यास और गुरु-शिष्य परंपरा की प्राचीन प्रथा के माध्यम से अपने

योग एक संपूर्ण और स्पष्ट विज्ञान है। जो हजारों वर्ष पूर्व वैदिक ऋषियों द्वारा अभ्यास और गुरु-शिष्य परंपरा की प्राचीन प्रथा के माध्यम से अपने प्राचीन रूप में हमें दिया गया। यद्यपि आज की जीवन शैली एक बड़े परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। फिर भी योग के नियम आज भी वही हैं।

 

योग तेजी से सांस लेने के व्यायाम के बारे में नहीं है या अपने आप को बंधनों में बांधना नहीं है, यह स्वयं की एक सुंदर यात्रा है। साधक द्वारा योग का लाभ तभी अनुभव किया गया है जब वे अपनी संपूर्णता में अभ्यास करता है जैसे एक मरीज को डॉक्टर के नुस्खे से लाभ तभी होगा जब मरीज उसकी दवा संपूर्णता से लेता है वैसे ही योग एक दिव्य नुस्खे के रूप में देखा जाना चाहिए, जो व्यक्तियों की सुविधा के अनुसार बदला नहीं जा सकता। इन प्रथाओं का लाभ लेने के लिए इसका नियमित रूप से अभ्यास करना होगा क्योंकि बीमारी का इलाज डॉक्टर के पर्चे पढ़ने से नहीं हो सकता बल्कि दवा लेने की जरूरत होती है।

 

योग साधारण शब्दों में कहें, जीवन के सभी क्षेत्रों का और आत्मिक संयोग है। इसके लिए दुनिया त्याग कर और पहाड़ों पर जाने की जरूरत नहीं है। साधक एक गृहस्थ का जीवन व्यतीत कर सकते है। परिवार और समाज के प्रति अपनी सभी जिम्मेदारियों को क्रियान्वित करते हुए। हम सनातन क्रिया की विशिष्ट प्रथाओं पर एक श्रृंखला शुरू कर रहे हैं। जो शुद्ध रूप में अष्टांग योग है, ध्यान फाउंडेशन में साधक वर्षो से इसका अभ्यास कर रहे है और शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और वित्तीय स्तर पर लाभान्वित हुए हैंI ये अभ्यास  देश भर में सैकड़ों लोगों के साथ सांझा किया गया है और जो लोग इसका अभ्यास नियमित रूप से कर रहे हैं उन में सकारात्मक परिवर्तन देखा गया है। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि यह सभी लोग समाज के जिम्मेदार पदों पर नौकरी और व्यवसाय कर रहे हैं और अपने परिवारों की भी देखभाल कर रहे हैंl हम पहले कदम के साथ शुरू करते हैं उदर संबंधी श्वसन।

 

1. एक अटल लेकिन मुलायम सतह पर अपनी रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधे कर बैठ जाओ। वातावरण स्वच्छ,  हवादार लेकिन ज्यादा ठंडा न हो । सुनिश्चित करें कि आप अपनी पीठ को बिना किसी सहारे बैठे हैं।

 

2. अपनी आंखें बंद कर, नाक से सांस लेना शुरू करें। पूरे आसन के दौरान अपने मुंह से सांस नहीं लेना है।

 

3. अब अपने पेट की ओर अपने ध्यान को ले जाओ। बहुत धीरे-धीरे और बिना झुके सांस छोड़ो, सांस छोड़ते हुए अपने पेट को अंदर खींचो। अपनी सांस को बिना रोके, धीरे-धीरे सांस लेना शुरू करते हैं और हवा के पेट में भरने के साथ अपने पेट का विस्तार शुरू करते हैं। एक बार अपने पेट की पूरी क्षमता से सांस भरें फिर सांस छोड़ना शुरू करें।

 

4. जब तक संभव हो उदर की इस सांस को लेने और छोडने की प्रक्रिया को दोहराएं सीधे रीढ़ की हड्डी के साथ और तनाव के बिना धीरे-धीरे सांस लेने की गति को कमकर अपनी सांस की गहराई बढ़ाएं।

 

आज के तनाव भरे जीवन में हम सब एक तेज गति से सांस ले रहे हैं। शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक तनाव से हमारे शरीर की चयापचय बढ़ जाती है। चयापचय, सीधे शब्दों में कहें ऊर्जा की दर है जो शरीर की कोशिकाओं द्वारा खपत की जाती है। इस तनाव के कारण तेजी से सेल क्षीणता की ओर जाता है। यह सरल सांस लेने की तकनीक चयापचय कम कर देता है जिससे शरीर की सेल की जीवन अवधि बढ़ती है  लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह व्यक्ति की क्षमता को कम किए बिना।

 

योगी अश्विनी

www.dhyanfoundation.com

 

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