Edited By Jyoti,Updated: 02 Dec, 2020 12:57 PM
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक मास के बाद मार्गशीर्ष मास का आरंभ होता है। सनातन धर्म में आने वाले प्रत्येक मास की तरह इस माह का भी अधिक महत्व होता है।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक मास के बाद मार्गशीर्ष मास का आरंभ होता है। सनातन धर्म में आने वाले प्रत्येक मास की तरह इस माह का भी अधिक महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं की मानें तो इसमें कहा गया है कि प्रत्येक मास की पूर्णिमा तिथि जिस नक्षत्र से युक्त होती है, उस नक्षत्र के आधार पर ही उस मास का नामकरण होता है, मार्गशीर्ष मास की बात करें तो इस माह की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होती है, इसलिए इसे मार्गशीर्ष नाम दिया गया है। हालांकि इसके अलावा इसे मगसर, मंगसिर, अगहन, अग्रहायण आदि नामों से भी जाना जाता है। पावन कहे जाने वाले इस मास की महिमा गीता में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने बताई है। यहां जानें इसमें वर्णित श्लोक-
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।
मासानां मार्गशीर्ष Sहमृतूनां कुसुमाकरः।।
अर्थात- गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम और छंदों में मैं गायत्री छंद हूं तथा महीनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में बसंत मैं हूं। अतः इस महीने में भगवान श्री कृष्ण की उपासना की बड़ी ही महिमा है। इस महीने में भगवान श्री कृष्ण की उपासना करने से व्यक्ति को जीवन में हर तरह की सफलता प्राप्त होती है और वो हर तरह के संकट से बाहर निकलने में सक्षम होता है।
इनमें सब बातों से ये स्पष्ट होता है कि इस मास में भगवान विष्णु की पूजा आदि का कितना महत्व है। तो आइए आपको बताते हैं कि इस मास में भगवान विष्ण के अलावा किस चीज़ की पूजा करनी चाहिए।
अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि धार्मिक और वास्तु शास्त्र के अनुसार शंख की पूजा करना काफी लाभकारी माना जाता है। मगर मार्गशीर्ष मास की बात करें इस दौरान ये महत्व और अधिक हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार ये मास शंख पूजन के लिए विशेष होता है। कहा जाता है जो भी व्यक्ति इस मास में दक्षिणवर्ती शंख को भगवान श्री कृष्ण का पंचजन्य शंख मानकर पूजा करता है उसकी समस्त इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। तो आइए जानते हैं स दौरान कैसे करनी चाहिए शंख की पूजा-
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी स्वरूप कहा जाता है। जिसके बिना लक्ष्मी जी की आराधना संपूर्ण नहीं मानी जाती। अगहन मास में खास तौर पर लक्ष्मी पूजन करते समय दक्षिणावर्ती शंख की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
शंख पूजन सामग्री की सूची :
दक्षिणावर्ती शंख, कुंमकुंम, चावल, जल का पात्र, कच्चा दूध, एक स्वच्छ कपड़ा, एक तांबा या चांदी का पात्र (शंख रखने के लिए), सफेद पुष्प, इत्र, कपूर, केसर, अगरबत्ती, दीया लगाने के लिए शुद्ध घी, भोग के लिए नैवेद्य. चांदी का वर्क आदि।
कैसे करें पूजन -
प्रात: काल में स्नान कर स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण करें, पटिए पर एक पात्र में शंख रखें, फिर कच्चे दूध और जल से शंख को स्नान करवाएं।
अब स्वच्छ कपड़े से उसे पोंछें और उस पर चांदी का वर्क लगाएं।
इसके बाद घी का दीया और अगरबत्ती जलाएं।
फिर शंख पर दूध-केसर के मिश्रित घोल से श्री एकाक्षरी मंत्र लिखें, उसे चांदी अथवा तांबा के पात्र में स्थापित कर दें।
शंख पूजन के मंत्र का जप करते हुए कुमकुम, चावल तथा इत्र अर्पित करके सफेद पुष्प चढ़ाएं तथा नैवेद्य का भोग लगाकर पूजन संपन्न करें।
अगहन मास में निम्न मंत्र से शंख पूजा करनी चाहिए-
त्वं पुरा सागरोत्पन्न विष्णुना विधृत: करे।
निर्मित: सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते।
तव नादेन जीमूता वित्रसन्ति सुरासुरा:।
शशांकायुतदीप्ताभ पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते॥