Edited By Prachi Sharma,Updated: 28 Jul, 2025 07:14 AM

Ahichhatra: आहिच्छत्र की पावन भूमि पर पांव रखते ही एक अलौकिक भाव मन में जाग उठा, जैसे यह कोई साधारण स्थान नही बल्कि आत्मा को झकझोर देने वाला तीर्थ हो। बचपन की वे स्मृतियां, जब सपनों में नाग देवता आते थे, सहसा सामने मूर्त रूप में प्रकट हो गईं। यहां...
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Ahichhatra: आहिच्छत्र की पावन भूमि पर पांव रखते ही एक अलौकिक भाव मन में जाग उठा, जैसे यह कोई साधारण स्थान नही बल्कि आत्मा को झकझोर देने वाला तीर्थ हो। बचपन की वे स्मृतियां, जब सपनों में नाग देवता आते थे, सहसा सामने मूर्त रूप में प्रकट हो गईं। यहां प्रत्येक मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमाएं, जिनके चारों ओर नागों की मूर्तिकला, जैसे हर पत्थर बोल रहा हो- यह वह भूमि है जहां तपस्या ने साक्षात् दिव्यता को जन्म दिया।
आहिच्छत्र, जिसे प्राचीनकाल में शंख्यावती और छत्रवती के नाम से जाना जाता था, उत्तर भारत की प्राचीन पंचाल राजधानी रही है। महाभारत और वैदिक ग्रंथों में इसकी महत्ता वर्णित है लेकिन जैन श्रद्धालुओं के लिए इसकी महत्ता का कारण इससे कहीं अधिक आध्यात्मिक है। यहीं भगवान पार्श्वनाथ ने कठोर तप के पश्चात केवल ज्ञान प्राप्त किया था। यह वही क्षण था जब कामठ ने उनकी साधना में विघ्न डालने के लिए मूसलधार वर्षा की और तभी नागराज धरनेन्द्र ने अपने हजारों फनों से पार्श्वनाथ को छत्र की तरह ढक लिया, जबकि पद्मावती देवी उनके चारों ओर कुण्डली मारकर बैठ गईं। यह दैवी दृश्य जैसे आज भी हवा में गूंजता है, और तब समझ आता है कि इसे आहिच्छत्र क्यों कहा गया- नागों का छत्र।
मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही एक आध्यात्मिक ऊर्जा से साक्षात्कार होता है। प्राचीन दिगंबर मंदिर में विराजमान ‘टिकाल वाले बाबा’, तीन चौबीसी का भव्य मंदिर, पार्श्वनाथ-पद्मावती मंदिर और हजारों प्रतिमाओं से युक्त श्वेतांबर मंदिर, यह सब मिलकर ऐसा लगता है मानो तीर्थ नहीं, अपितु मोक्ष का कोई द्वार हो। यहां की कथा ही नहीं, कण-कण में आत्मशुद्धि का अनुभव होता है। यह तीर्थ अतिशय क्षेत्र है, जहां चमत्कार होते हैं। मान्यता है कि यहां के मंदिर के कुएं का जल रोगों को दूर करता है। हर साल चैत्र कृष्ण अष्टमी से श्रावण शुक्ल सप्तमी तक यहां मेला लगता है, जो लाखों श्रद्धालुओं को आत्मिक शांति देता है।
आहिच्छत्र सिर्फ एक ऐतिहासिक स्थल नहीं, बल्कि उस दिव्य चेतना का साक्षी है, जहां आत्मा ने केवल ज्ञान को प्राप्त किया। केवल ज्ञान, जो जैन दर्शन के अनुसार आत्मा की परम स्थिति है। अनंत ज्ञान, दर्शन, सुख और चारित्र का मेल। यह तभी संभव है जब आत्मा अपने चार ज्ञान-बाधक कर्मों ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय को पूर्णतः नष्ट कर देती है। तब न कोई भ्रम, न कोई अवरोध, केवल निर्मल, दिव्य ज्ञान शेष रहता है।
भगवान पार्श्वनाथ ने इसी भूमि पर केवल ज्ञान प्राप्त किया, और वह क्षण आज भी श्रद्धालुओं के हृदय में जीवंत है। यह तीर्थ आत्मा को वैराग्य, तप, करुणा और मोक्ष के पथ पर ले जाता है। यहां आकर कोई खाली नहीं लौटता या तो श्रद्धा से, या अनुभूति से, या आत्मा के किसी गहरे प्रश्न के उत्तर से भर जाता है।
आहिच्छत्र आज भी वैसी ही पावनता से भरा है, जैसे हजारों वर्षों पहले था। यह नमन है उस धरती को जहां भगवान स्वयं ज्ञान के प्रकाश बनकर प्रकट हुए और वह प्रकाश आज भी हर श्रद्धालु के हृदय को आलोकित करता है।

Dr. Tanu Jain, Civil Servant and Spiritual Speaker
Ministry of defence