Edited By ,Updated: 14 Jun, 2015 11:12 AM
सो तो है ही राजन। देखिए न कालयवन का वध उन्होंने किस प्रकार कराया। उन्होंने जरासंध को किस प्रकार यमलोक पहुंचाया। कोई कह सकता था कि इन भयंकर योद्धाओं पर विजय प्राप्त करने वाला भी इस संसार में कोई है।’’ संजय बोले।
‘‘सो तो है ही राजन। देखिए न कालयवन का वध उन्होंने किस प्रकार कराया। उन्होंने जरासंध को किस प्रकार यमलोक पहुंचाया। कोई कह सकता था कि इन भयंकर योद्धाओं पर विजय प्राप्त करने वाला भी इस संसार में कोई है।’’ संजय बोले।
‘‘यही तो मैं भी कहता हूं संजय। कृष्ण वासुदेव जब तक पांडवों के साथ हैं तब तक पांडवों को पराजित करना देवताओं के वश की भी बात नहीं है। कर्ण और दुर्योधन की तो बिसात ही क्या है।’’ धृतराष्ट्र ने कहा।
‘‘सत्य वचन महाराज। अर्जुन के संबंध में मैंने सुना है कि उन्होंने धनुर्विद्या में अपनी दक्षता दिखाकर भगवान शंकर को भी प्रसन्न कर लिया है। देवाधिदेव भगवान शंकर स्वयं भील का वेश धारण करके उनके पास गए और उनसे युद्ध किया। वह अर्जुन के युद्ध कौशल से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने ब्रह्मंड को भी भस्म करने वाला महाप्रलंयकारी पाशुपत अस्त्र अर्जुन को प्रदान कर दिया। अर्जुन की तपस्या से प्रसन्न होकर सब लोकपालों ने आकर अर्जुन के दर्शन करके उन्हें अपने-अपने दिव्य अस्त्र प्रदान किए और उनमें से प्रत्येक अस्त्र के मंत्र और विधि भी उन्हें सिखा दी। अर्जुन का बल ऐसा है, उनकी शक्ति अपरिमित है और कर्ण उनका सामना नहीं कर पाएगा।’’ संजय ने कहा।
‘‘यही तो मैं भी कहता हूं संजय। पांडवों को मेरे पुत्रों ने बड़ा कष्ट दिया है। इसके बावजूद पांडवों की शक्ति बढ़ती ही जा रही है। फिर जब कृष्ण वासुदेव और बलराम पांडवों के पक्ष में युद्ध करने के लिए यादवों को लाएंगे तो अर्जुन के धनुष की टंकार और भीम की गदा का प्रहार सह सकने वाला हमारे पक्ष में कोई भी बलवान राजा नहीं है। मैंने दुर्योधन की बातों में आकर अपने हितैषियों की बातें नहीं मानीं। जान पड़ता है कि बाद में इन बातों को सोच-सोच कर मुझे पछताना पड़ेगा।’’ धृतराष्ट्र ने एक लम्बी सांस लेकर कहा।
(क्रमश:)