क्या आप जानते हैं किस देवता की कितनी बार करनी चाहिए परिक्रमा ?

Edited By Jyoti,Updated: 23 May, 2019 04:57 PM

benefits of parikrama in temple

क्या आप मंदिर में भगवान की पूजा के बाद उनकी परिक्रमा करते हैं। अब सोच रहे होंगे कि ये कैसा प्रश्न है।

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क्या आप मंदिर में भगवान की पूजा के बाद उनकी परिक्रमा करते हैं। अब सोच रहे होंगे कि ये कैसा प्रश्न है। भला ये तो सब जानते हैं हिंदू धर्म की प्राचीन परंपराओं के अनुसार मंदिर में भगवान की पूजा के बाद उनकी परिक्रमा करना अति आवश्यक होता है। इसलिए मंदिर व धार्मिक स्थल पर जाने वाला प्रत्येक व्यक्ति परिक्रमा करता ही है। कोई ये परिक्रमा 3 की गिनती में करता है तो कोई 7 की गिनती में। कहने का भाव है कि हर कोई इसे अपने मन मुताबिक करता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शास्त्रों में इससे जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताई गई हैं जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे। जी हीं, शास्त्रों में प्रत्येक देवी-देवता के बारे में बताया है कि किस देवी-देवता की कितनी बार परिक्रमा करनी चाहिए।
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तो चलिए आपको बताते हैं इससे जुड़ी कुछ खास बातें-
हिंदू शास्त्रों के अनुसार पूजा-पाठ करते समय भगवान की प्रदक्षिणा यानि परिक्रमा करने का विधान है। ये एक अनिवार्य परंपरा है, इसका पालन प्राचीन समय से लेकर आज भी पूजा-पाठ में किया जाता है।

मान्यताओं की मानें तो परिक्रमा से पापों का नाश होता है। विज्ञान की नज़र से देखें तो शारीरिक ऊर्जा के विकास में भी मंदिर की परिक्रमा का खासा महत्व है। माना जाता है कि भगवान की प्रतिमा और मंदिर की परिक्रमा हमेशा दाहिने हाथ की ओर से शुरू करनी चाहिए, क्योंकि प्रतिमाओं में मौज़ूद सकारात्मक ऊर्जा उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है। बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर इस सकारात्मक ऊर्जा से हमारे शरीर का टकराव होता है, इस वजह से परिक्रमा का लाभ नहीं मिल पाता। दाहिने का अर्थ दक्षिण भी होता है, इस कारण से परिक्रमा को प्रदक्षिणा भी कहा जाता है।
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परिक्रमा की संख्या
सूर्य देव की सात, श्रीगणेश की चार, भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की चार, देवी दुर्गा की एक, हनुमानजी की तीन, शिवजी की आधी प्रदक्षिणा करने का नियम है। शिवजी की आधी प्रदक्षिणा ही की जाती है, इस संबंध में मान्यता है कि जलधारी को लांघना नहीं चाहिए। जलधारी तक पंहुचकर परिक्रमा को पूर्ण मान लिया जाता है।

परिक्रमा करते समय इस मंत्र का करें जाप-
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।
तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।

अर्थात- जाने-अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए। परमेश्वर मुझे सद्बुद्धि प्रदान करें।

परिक्रमा का तरीका-
किसी भी देवमूर्ति या मंदिर में चारों ओर घूमकर परिक्रमा की जाती है। कुछ मंदिरों में मूर्ति की पीठ और दीवार के बीच परिक्रमा के लिए जगह नहीं होती है, ऐसी स्थिति में मूर्ति के सामने ही गोल घूमकर प्रदक्षिणा की जा सकती है।
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