हनुमानजी से क्यों नाराज़ है द्रोणागिरि गांव के लोग? जानिए अनसुनी पौराणिक कथा

Edited By Updated: 13 Dec, 2025 03:35 PM

dronagiri village hanuman katha

भारत में भगवान हनुमान की पूजा-अर्चना हर जगह बड़े ही उत्साह और श्रद्धा से की जाती है, लेकिन उत्तराखंड के चमोली जिले की नीति घाटी में स्थित द्रोणागिरि गांव एक अपवाद है।

Dronagiri village Hanuman Katha: भारत में भगवान हनुमान की पूजा-अर्चना हर जगह बड़े ही उत्साह और श्रद्धा से की जाती है, लेकिन उत्तराखंड के चमोली जिले की नीति घाटी में स्थित द्रोणागिरि गांव एक अपवाद है। इस गांव के स्थानीय लोग आज भी पवनपुत्र हनुमान से नाराज़ हैं और उनकी पूजा-अर्चना नहीं करते। इतना ही नहीं, गांव में हनुमान जी का कोई मंदिर भी नहीं है और उनके सम्मान में लाल झंडा लगाना भी वर्जित माना जाता है। तो जानिए इसके पीछे की बेहद रोचक और अनोखी पौराणिक कथा के बारे में-

Dronagiri village Hanuman Katha

संजीवनी बूटी और द्रोणागिरि पर्वत
यह कहानी रामायण काल के लंका युद्ध के समय की है। जब मेघनाद के शक्ति बाण से लक्ष्मण मूर्छित हो गए, तो उनकी जान बचाने के लिए लंका के वैद्य ने हनुमानजी को हिमालय जाकर एक विशेष औषधि संजीवनी बूटी लाने को कहा वैद्य ने बताया कि यह बूटी द्रोणागिरि पर्वत पर ही मिलती है और इसका उपयोग सूर्योदय से पहले करना आवश्यक है। समय की कमी के कारण, हनुमानजी तुरंत उड़कर हिमालय के द्रोणागिरि पर्वत पर पहुंचे। जब हनुमानजी बूटी की पहचान नहीं कर पाए, तो उन्होंने गांव की एक बुजुर्ग महिला से संजीवनी बूटी के सही स्थान के बारे में पूछा। 

महिला ने उन्हें पर्वत के उस हिस्से की ओर इशारा किया जहां बूटी उगती थी। मार्गदर्शन मिलने के बावजूद, हनुमानजी संशय में पड़ गए क्योंकि वे अंधेरे में बूटी को ठीक से पहचान नहीं पा रहे थे। समय कम था, इसलिए उन्होंने विवेक का इस्तेमाल किया और जिस पर्वत के हिस्से पर संजीवनी उगती थी, उस पूरे भाग को उखाड़कर अपनी हथेली पर उठा लिया और लंका की ओर उड़ चले।

Dronagiri village Hanuman Katha

गांववालों की नाराजगी का कारण
द्रोणागिरि गांव के निवासियों के लिए यह पर्वत केवल एक भूखंड नहीं है, बल्कि यह उनका इष्टदेव है, जिसकी वे पीढ़ियों से पूजा करते आए हैं। हनुमानजी द्वारा उनके पूजनीय पर्वत के एक बड़े हिस्से को उखाड़कर ले जाना, गांववालों ने अपने आराध्य देव के अपमान के रूप में लिया। उन्हें इस बात का क्रोध था कि लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए हनुमानजी ने उनके देव तुल्य पर्वत को खंडित कर दिया। उनका मानना है कि हनुमानजी ने एक महान कार्य के लिए उनके पूजनीय पर्वत को क्षति पहुंचाई।

परंपरा जो आज भी जारी है
इसी नाराजगी के कारण, द्रोणागिरि गांव में आज भी हनुमानजी की पूजा नहीं की जाती और उनके सम्मान में कोई मंदिर नहीं है। इस गांव के लोग हनुमानजी के नाम की पूजा-अर्चना नहीं करते, हालांकि वे भगवान राम का आदर करते हैं। पौराणिक मान्यता यह भी है कि जिस बुजुर्ग महिला ने हनुमानजी को रास्ता दिखाया था, गांववालों ने उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया था।

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